JDU के लिए बेहद जरूरी है अगिआंव सीट पर कब्जा जमाना (ETV Bharat) पटना:देशभर में 13 राज्यों के 26 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहा है, जिसमें बिहार का अगिआंव सीट भी शामिल है. आगामी 1 जून को बिहार के भोजपुर जिले के अगिआंव सीट पर उपचुनाव होना है. ऐसे में जदयू ने एक बार फिर से पूर्व विधायक प्रभुनाथ प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया है. ऐसे में सीएम नीतीश इस उपचुनाव के जरिए शाहाबाद में वापस से अपनी उपस्थिति दर्ज करने की कोशिश में लगे हुए हैं.
हत्या मामले में जा चुकी है विधायकी: दरअसल, अगिआंव विधानसभा से माले के पूर्व विधायक मनोज मंजिल को हत्या मामले में सजा सुनाया गया था, जिसके बाद उन्हें अपनी विधायकी गंवानी पड़ी थी. ऐसे में अब वहां लोकसभा चुनाव के साथ उपचुनाव भी कराया जा रहा है. वहीं इसका परिणाम भी 4 जून को आएगा.
JDU ने पिछले उम्मीदवार को मैदान में उतारा:बता दें कि लोकसभा चुनाव के बीच हो रहे विधानसभा उपचुनाव में जदयू ने 2020 के उम्मीदवार को ही फिर से चुनाव मैदान में उतारा है. बिहार में कई ऐसी विधानसभा सीटें हैं जो 2008 में ही अस्तित्व में आई हैं. इन्हीं में से एक विधानसभा सीट है अगिआंव. यहां 2010 में पहली बार चुनाव हुए थे. भोजपुर जिले का यह एक मात्र सुरक्षित सीट है.
लोजपा के कारण हारी थी जदयू: साल 2020 में अगिआंव विधानसभा सीट पर 52.08 फीसदी मतदान हुआ था और माले के मनोज मंजिल ने जदयू के उम्मीदवार प्रभु नाथ प्रसाद को हरा दिया था. लोजपा की ओर से राजेश्वर पासवान और रालोसपा के उम्मीदवार मनोरम राठौर ने वोट काटने का काम किया था, जिसका नुकसान जदयू को उठाना पड़ा. केवल अगिआंव ही नहीं शाहाबाद के सभी विधानसभा में लोजपा के कारण जदयू को हार मिली. महागठबंधन के घटक दल को कई सीटों पर जीत मिल गई थी.
2010 में पहली बार हुआ था चुनाव: वहीं, भोजपुर जिले की एक मात्र अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट अगिआंव आरा लोकसभा क्षेत्र में आती है. 2008 में बिहार में परिसीमन हुआ था, जिसके बाद यह सीट बनी थी. 2010 में यहां पहली बार चुनाव हुए और भारतीय जनता पार्टी को जीत हासिल हुई, उसके बाद 2015 के चुनाव में जदयू ने जीत दर्ज की. उस समय जल्दी हो महागठबंधन में शामिल था. लेकिन 2020 में जब जदयू एनडीए के साथ था तब लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के कारण यह सीट गवाना पड़ा.
पहले नक्सली इलाके में गिना जाता था अगिआंव: वहीं, इस सीट पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के बड़े समर्थक माने जाते हैं. यह इलाका नक्सली इलाके में गिना जाता था. अगिआंव में वोटरों की संख्या को देखें तो यहां करीब पौने तीन लाख वोटर हैं. अगिआंव की अलग सीट बनने से पहले ये जगह सहार विधानसभा के रूप में जाना जाता था.
अगिआंव का जातीय समीकरण:अगिआंव विधानसभा का जातीय समीकरण देखें तो 2010 में पिरो और जगदीशपुर विधानसभा के कुछ भाग को काटकर अस्तित्व में आई. अगिआंव विधानसभा से पहले विधायक भाजपा के शिवेश कुमार बने थे. यहां के जातीय समीकरण में प्रमुख रूप से राजपूत वोटर 30 हजार, यादव वोटर 60 हजार, पिछड़ा अतिपिछड़ा 40 हजार , भूमिहार वोटर 25 हजार , पासवान वोटर करीब 20 हजार, अल्पसंख्यक 20 हजार के करीब हैं.
अगिआंव विधानसभा की प्रमुख बातें:साल 2008 के परिसीमन मेंपीरो और जगदीशपुर के कुछ भाग को काटकर अगिआंव को नया विधानसभा बनाया गया था. यह अनुसूचित जाति के लिए भोजपुर जिले की एक मात्र सुरक्षित सीट है. अगिआंव विधानसभा में करीब पौने तीन लाख वोटर है, जो कि आरा लोकसभा क्षेत्र में आता है. यहां साल 2010 में पहली बार चुनाव हुआ था. जहां से 2010 में बीजेपी, 2015 में जदयू और 2020 में माले को जीत मिली थी. ऐसे में इस बार होने वाले उप चुनाव में जदयू से प्रभु नाथ प्रसाद और माले के के शिव प्रकाश रंजन चुनावी मैदान में आमने-सामने हैं.
"विधानसभा उपचुनाव में लोकसभा के चुनाव का असर पड़ेगा. स्थानीय मुद्दे तो होंगे हैं लेकिन मोदी मैजिक के कारण विधानसभा उपचुनाव में नीतीश कुमार को वाक ओवर मिलेगा. जदयू के लिए इस बार प्लस पॉइंट इसलिए भी है क्योंकि इस बार जदयू के वोट के साथ बीजेपी का वोट तो होगा ही. साथ ही चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा का वोट भी होगा. जीतन राम मांझी का भी वोट होगा. 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा दोनों ने उम्मीदवार उतारा था जिसका भी नुकसान जदयू को हुआ था. इसलिए इस बार जदयू आसानी से यह सीट निकाल सकता है." - प्रिय रंजन भारती, राजनीतिक विशेषज्ञ
"माले के तरफ से भी अगिआंव विधानसभा उपचुनाव में फिर से जीत का दावा किया जा रहा है. तो वहीं, दूसरी तरफ जदयू का साफ कहना है कि इस बार महागठबंधन के मुकाबले एनडीए में पांचों गठबंधन एक साथ है और आरा लोकसभा क्षेत्र में आरके सिंह ने भी बहुत काम किया है. तो इस बार जीत जदयू की ही होगी. आरा लोकसभा के साथ अगिआंव विधानसभा की सीट भी हम लोग जीतेंगे." - मनोरंजन गिरी, प्रवक्ता, जदयू
जदयू की होगी वापसी:राजनीतिक विशेषज्ञ रवि अटल का कहना है कि शाहाबाद इलाके में पहले एनडीए का ही परचम लहराता था. लेकिन 2020 में परिस्थिति और समीकरण कुछ इस ढंग से बनी कि एनडीए को बहुत नुकसान हुआ. लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है और बदले हुए परिस्थितियों का लाभ जदयू को मिलेगा. महागठबंधन की तरफ से कड़ी चुनौती दी जाएगी, लेकिन नीतीश कुमार एनडीए के सभी सहयोगियों की मदद से इस क्षेत्र में फिर से अपनी वापसी कर सकेंगे.
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