देहरादून: देशभर में आज रक्षाबंधन धूमधाम से मनाया जा रहा है. बहनें अपने भाईयों की कलाईयों पर भरोसे का धागा बांध रही हैं. ये भरोसा न केवल अपनी बहनों की रक्षा, सुरक्षा का है बल्कि समाज की हर महिला के सम्मान से जुड़ा है, मगर इन कुछ दिनों में ऐसी घटनाएं हुई हैं जिससे इस भरोसे को तार तार किया है. देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में भी महिला सुरक्षा, सम्मान को कलंकित करने वाली खबरें सामने आई. रुद्रपुर नर्स रेप हत्याकांड, देहरादून नाबालिग गैंगरेप, हल्द्वानी सुशीला तिवारी अस्पताल में नाबालिग से दुष्कर्म का प्रयास, ये वो घटनाएं हैं जो बीते कुछ दिनों में सामने आई हैं. इन सभी घटनाओं ने महिला सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हुए हैं.
निर्भया कांड के बाद भी नहीं बदले हालात: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में घटे निर्भया कांड को याद कर आज भी सिरहन हो उठती है. इतने विभत्स कांड का दाग देश के दामन पर लगने के 12 साल बाद कोलकाता में एक बहन के साथ फिर ऐसा ही कृत्य किया जाता है. फिर देश एकजुट होकर सड़कों पर उतरता है. ये आंदोलन हो रही रहा होता है कि देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में निर्भया कांड को दोहराया जाता है. उत्तराखंड परिवहन की बस में मानसिक रूप से कमजोर किशोरी को पांच 'राक्षसों' के कारण फिर उसी दर्दनाक स्थिति से गुजरना पड़ता है.
दुष्कर्म की घटनाओं से उठे सवाल:ये जो भी घटनाएं सामने आई हैं उसके बाद कुछ सवाल हैं जो अनायास ही जहन में आते हैं. जो लोग ऐसा दानवी कृत्य करते हैं उन आरोपियों का भी तो घर परिवार होगा. घर में मां-बहनें होंगी. वो इसके बाद कैसे अपने घर-परिवार में रह पाते हैं. इन आरोपियों ने भी तो बीते सालों में रक्षाबंधन के त्योहार पर अपनी बहनों से राखियां बंधवाई होंगी. उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिया होगा. ये लोग भी तो अपने घर की महिलाओं के सम्मान के लिए आवाज बुलंद करते होंगे, फिर घर से बाहर निकलते ही अन्य महिलाओं के लिए इनकी भावनाएं कैसे बदल गई?
सवाल कुछ और भी हैं...:कैसे इन सभी आरोपियों ने इस तरह की जघन्य घटनाओं को अंजाम दिया? कैसे ये जघन्य अपराध करते वक्त इनके हाथ नहीं कांपे, कैसे इनको अपनी बहनों का ख्याल नहीं आया? क्या दुष्कर्म, हत्या के आरोपी महिलाओं का सम्मान, सुरक्षा चेहरा या रिश्ता देखकर करते हैं? इन सब घटनाओं को देखकर तो ऐसा ही लगता है.
इन घटनाओं में शामिल आरोपियों को भरा-पूरा परिवार है. देहरादून ISBT गैंगरेप की बात करें तो इस घटना में शामिल आरोपियों की उम्र 30 से 57 साल के बीच है. ये सभी अपने परिवार चलाने के लिए ही नौकरी करते हैं. सवाल यहां केवल आरोपियों का ही नहीं हैं. बल्कि ये भी है कि ऐसा कृत्य करने वाले लोगों के परिवार को किस घृणा से गुरजना पड़ता होगा. कोई मां-बाप अपने बेटे को हाथों में हथकड़ी लगाए नहीं देखना चाहते और वो भी ऐसा घृणित कार्य को करने के बाद. उन मां-बाप पर क्या गुजरती होगी. उस बहन पर क्या गुजरती होगी जो कल तक उस भाई के घर आने पर जश्न मनाती थी, जो उसके हाथ पर राखी बांधकर उसे अपनी रक्षा का दायित्व सौंपती थी.