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Vastu tips: सफलता प्राप्त करने के लिए अपनाएं ये उपाए - Importance of directions - IMPORTANCE OF DIRECTIONS

प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनियों ने हमारे जीवन में भविष्य में घटने वाली घटनाओं और उनके प्रभाव को बताने के लिए ग्रहों का अध्ययन किया और आज जन्म कुंडली के माध्यम से इन चीजों का पता लगाया जा सकता है ठीक उसी प्रकार से हमारे घर ऑफिस और प्रतिष्ठा में वास्तु शास्त्र के माध्यम से भी व्यापार और कार्य क्षेत्र में उन्नति और उसमें आ रही बाधा को दूर करने में वास्तु शास्त्र का सही उपयोग होना बहुत जरूरी है. वास्तु शास्त्र में दिशाओं का बड़ा महत्व है.

वास्तु की दिशाओं का महत्व
वास्तु की दिशाओं का महत्व (फाइल फोटो)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 9, 2024, 8:12 AM IST

बीकानेर.हर व्यक्ति के जीवन में किसी न किसी तरह की कोई समय बनी रहती है और अपने कार्य में मेहनत के बावजूद भी कई बार असफलता हाथ लगती है. जिस तरह से जन्मकुंडली में ग्रहों का महत्व है उसी तरह से जातक के मकान और प्रतिष्ठान में वास्तु शास्त्र का बहुत महत्व है. जीवन में लक्ष्यों को पूरा करने या समस्याओं को सुलझाने के लिए वास्तुशास्त्र में अलग-अलग दिशाओं में स्थित ऊर्जा का उपयोग किया जाता है. वास्तुविद राजेश व्यास बताते हैं कि वास्तु शास्त्र के अनुसार दिशाओं का महत्व और उनका उपयोग सही तरीके से किया जाए तो व्यक्ति को सफलता जरूर मिलती है.

पूर्व दिशा :पूर्व दिशा सूर्योदय की दिशा है. इस दिशा से सकारात्मक व ऊर्जावान किरणें हमारे घर में प्रवेश करती हैं. यदि घर का मुख्य द्वार इस दिशा में है तो बहुत अच्छा है। खिड़की भी रख सकते हैं.

पश्चिम दिशा : घर का रसोईघर या टॉयलेट इस दिशा में होना चाहिए. रसोईघर और टॉयलेट पास- पास न हो, इसका भी ध्यान रखें.

उत्तर दिशा :इस दिशा में घर के सबसे ज्यादा खिड़की और दरवाजे होने चाहिए. घर की बालकॉनी व वॉश बेसिन भी इसी दिशा में होना चाहिए. यदि मेनगेट इस दिशा में है और अति उत्तम.

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दक्षिण दिशा :दक्षिण दिशा में किसी भी प्रकार का खुलापन, शौचालय आदि नहीं होना चाहिए. घर में इस स्थान पर भारी सामान रखें. यदि इस दिशा में द्वार या खिड़की है तो घर में नकारात्मक ऊर्जा रहेगी और ऑक्सीजन का लेवल भी कम हो जाएग. इससे घर में क्लेश बढ़ता है.

उत्तर-पूर्व दिशा :इसे ईशान दिशा भी कहते हैं। यह दिशा जल का स्थान है. इस दिशा में बोरिंग, स्वीमिंग पूल, पूजास्थल आदि होना चाहिए. इस दिशा में मुख्य द्वार का होना बहुत ही अच्छा रहता है.

उत्तर-पश्चिम दिशा : इसे वायव्य दिशा भी कहते हैं. इस दिशा में बेडरूम, गैरेज, गौशाला आदि होना चाहिए.

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दक्षिण-पूर्व दिशा :इसे घर का आग्नेय कोण कहते हैं. यह ‍अग्नि तत्व की दिशा है. इस दिशा में गैस, बॉयलर, ट्रांसफॉर्मर आदि होना चाहिए.

दक्षिण-पश्चिम दिशा : इस दिशा को नैऋत्य दिशा कहते हैं. इस दिशा में खुलापन अर्थात खिड़की, दरवाजे बिलकुल ही नहीं होना चाहिए. घर के मुखिया का कमरा यहां बना सकते हैं. कैश काउंटर, मशीन आदि इस दिशा में रख सकते हैं.

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