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राज्यसभा चुनाव में CM सुक्खू के हिस्से आया था सियासी दुख, गिरते-गिरते बची थी सरकार, मुश्किलों भरा रहा 2024 - HIMACHAL POLITICAL CRISIS

हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार के लिए साल 2024 मुश्किलों भरा रहा. साल की शुरुआत ही चुनौतीपूर्ण रही और सरकार गिरते-गिरते बची.

Himachal political crisis
हिमाचल का सियासी मुद्दा (ETV Bharat GFX)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Dec 26, 2024, 7:42 AM IST

शिमला:हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार के लिए 2024 का सियासी सफर काफी मुश्किलों से भरा रहा. नए साल की शुरुआत में ही दूसरे महीने में यानी 27 फरवरी को हिमाचल में हुए राज्यसभा चुनाव में ऐसा संकट आया कि सरकार गिरते-गिरते बची. आखिर में ये सियासी संकट 4 जून को विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आने के साथ टल तो गया, लेकिन सुक्खू सरकार को अभी भी कई तरह की चुनौतियों से पार पाना पड़ रहा है. वित्तीय संकट से जूझ रही सरकार को निर्दलीय विधायकों का अपने पदों से इस्तीफा देने के बाद एक ही साल में दो उपचुनाव का भी सामना करना पड़ा.

6 विधायकों ने की थी कांग्रेस सरकार से बगावत

वहीं, हिमाचल में हुए राज्यसभा चुनाव का नतीजा पूरे देश की सियासत में भी खूब चर्चा में रहा था. जिसमें कांग्रेस के छह विधायकों ने पार्टी से बगावत करते हुए राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग कर अपनी ही सरकार को मुश्किलों में डाल दिया था. जिस कारण कांग्रेस की सरकार वाले राज्य में भाजपा के राज्यसभा उम्मीदवार हर्ष महाजन चुनाव जीत गए थे. 68 विधायकों वाले हिमाचल में बीजेपी के पास सिर्फ 25 विधायक थे और 3 निर्दलीय विधायक थे, लेकिन राज्यसभा चुनाव में हुई क्रॉस वोटिंग ने ऐसा माहौल बदला कि 40 विधायकों के साथ पूर्ण बहुमत वाली सुक्खू सरकार में कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी चुनाव हार गए थे. जिसके बाद हिमाचल में हुए सियासी ड्रामे से सुक्खू सरकार संकट में घिर गई थी.

34-34 वोट मिलने के बाद 'ड्रा ऑफ लॉट्स' से हुआ था फैसला

हिमाचल विधानसभा में राज्यसभा चुनाव में तीन निर्दलीय और 6 कांग्रेस विधायकों की क्रॉस वोटिंग के बाद बीजेपी उम्मीदवार हर्ष महाजन को 34 वोट मिले थे और कांग्रेस उम्मीदवार को भी 34 ही वोट पड़े थे. इसके बाद फैसला ड्रॉ ऑफ लॉट्स से किया गया. जिसमें लॉटरी से जीत का फैसला हुआ और इसमें भी बीजेपी उम्मीदवार हर्ष महाजन बाजीगर साबित हुए थे.

ऐसे अल्पमत में आने से बची थी सुक्खू सरकार

राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग प्रकरण के बाद हिमाचल की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे थे, लेकिन 28 फरवरी को विधानसभा स्पीकर कुलदीप सिंह पठानिया ने एक दिन पहले ही सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया था. विधानसभा अध्यक्ष के इस फैसले से सुक्खू सरकार अल्पमत में आने से बच गई थी. वहीं, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने 17 फरवरी को बजट पेश किया था जो 28 फरवरी को बिना विपक्ष के ही पारित हो गया था.

दरअसल 28 फरवरी की सुबह ही संसदीय कार्य मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने बीजेपी विधायकों को निष्कासित करने का प्रस्ताव पेश कर दिया था. हर्षवर्धन चौहान ने कहा था कि 27 फरवरी को बीजेपी के सदस्यों ने स्पीकर से गलत व्यवहार किया था. इसका हवाला देते हुए उन्होंने नियम 319 के तहत नेता विपक्ष जयराम ठाकुर समेत कई विधायकों को निष्कासित करने का प्रस्ताव पेश किया था. जिसे पारित करने के बाद बीजेपी विधायकों ने हंगामा शुरू कर दिया था. इस बीच स्पीकर ने बीजेपी के 15 विधायकों को निष्कासित कर दिया था. जिसके लिए कुछ देर के लिए सत्र की कार्यवाही स्थगित की गई थी और मार्शल ने बीजेपी विधायकों को सदन से बाहर किया गया था. उसके बाद 28 फरवरी को ही दोपहर करीब ढाई बजे बजट को पारित करने के लिए रखा गया और सदन में बिना विपक्ष की मौजूदगी के ही बजट पारित हो गया था. जिसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी. हिमाचल विधानसभा का बजट सत्र 14 फरवरी से शुरू हुआ था और 29 फरवरी तक चलना था, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने एक दिन पहले ही 28 फरवरी को विधानसभा अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी थी. इस फैसले के साथ ही सदन में सुक्खू सरकार अल्पमत में आने से बच गई थी.

29 फरवरी को अयोग्य घोषित किए गए 6 बागी विधायक

हिमाचल प्रदेश विधानसभा स्पीकर कुलदीप सिंह पठानिया ने 29 फरवरी को राज्यसभा चुनाव में बगावत करने वाले सभी 6 बागी विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था. उन्होंने कहा कहा था कि दल-बदल कानून के तहत 6 माननीय विधायकों के खिलाफ मंत्री हर्ष वर्धन के जरिए विधानसभा सचिवालय को शिकायत मिली थी. जिसके बाद दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाया था. स्पीकर कुलदीप सिंह पठानिया ने कहा था कि 'विधायकों ने चुनाव तो कांग्रेस पार्टी से लड़ा, लेकिन 6 विधायकों ने पार्टी के व्हिप का उल्लंघन किया था. विधानसभा अध्यक्ष ने जिन विधायकों को अयोग्य घोषित किया था, उसमें सुधीर शर्मा, रवि ठाकुर, राजेंद्र सिंह राणा, चैतन्य शर्मा, देवेंद्र भुट्टो, इंद्र दत्त लखनपाल शामिल थे. इन सभी विधायकों ने व्हिप का उल्लंघन किया था.

हिमाचल में 6 सीटों पर 16 मार्च को उपचुनाव का ऐलान

हिमाचल में राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के बाद उपजे सियासी संकट के बीच 16 मार्च को देश में लोकसभा चुनाव का सात चरणों में ऐलान हो गया. वहीं, हिमाचल प्रदेश में आखिरी चरण में 1 जून को मतदान होना था. इस दौरान हिमाचल में लोकसभा चुनाव के साथ ही 6 विधायकों के अयोग्य घोषित करने के साथ खाली हुई विधानसभा सीटों धर्मशाला, कुटलैहड़, सुजानपुर, गगरेट, लाहौल एवं स्पीति और बड़सर विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का ऐलान किया गया था. ऐसे में हिमाचल में 1 जून को लोकसभा चुनाव के साथ ही 6 विधानसभा सीटों में उपचुनाव के लिए मतदान हुआ. जिसका नतीजा 4 जून को घोषित किया गया. जिसमें कांग्रेस ने चार विधानसभा सीटों कुटलैहड़, सुजानपुर, गगरेट व लाहौल एवं स्पीति में हुए उपचुनाव में जीत हासिल की थी. वहीं, दो विधानसभा सीटों धर्मशाला और बड़सर में भाजपा ने बाजी मारी थी. इसके बाद सदन में कांग्रेस विधायकों की संख्या बढ़कर 34 से 38 हो गई थी. ये संख्या बहुमत के आंकड़े से 3 अधिक थी. जिससे सुक्खू सरकार पर आया संकट टल गया था.

फिर 40 हुई थी कांग्रेस विधायकों की संख्या

हिमाचल में कांग्रेस विधायकों की बगावत के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने 6 विधायकों को अयोग्य करार कर दिया था. जिससे साल 2022 में विधानसभा चुनाव में चुनकर आए 40 विधायकों की संख्या घटकर 34 तक पहुंच गई थी. वहीं, 1 जून को खाली हुई विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ. जिसका नतीजा 4 जून को घोषित किया गया. जिसमें चार सीटें जीतने के बाद कांग्रेस विधायकों की संख्या 34 से बढ़कर 38 हो गई थी. इसके अलावा निर्दलीय विधायक भी सुक्खू सरकार से खुश नहीं थे. 27 फरवरी को राज्यसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में मतदान कर निर्दलीय विधायकों की सरकार के खिलाफ नाराजगी नजर आई थी. वहीं, 16 मार्च को लोकसभा सहित प्रदेश में खाली हुई 6 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का ऐलान कर दिया था. जिसके बाद 22 मार्च को निर्दलीय विधायकों ने भी भाजपा पर अपना भरोसा जताते हुए विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप दिया था. विधानसभा अध्यक्ष ने इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया, लेकिन निर्दलीय विधायक इस्तीफा स्वीकार न होने पर भी 23 मार्च को भाजपा में शामिल हो गए.

वहीं, इस्तीफा स्वीकार न करने का मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया था. जहां से फिर मामला विधानसभा अध्यक्ष के पास भेजा गया. ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने लोकसभा चुनाव व 6 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव का परिणाम घोषित होने से एक दिन पहले 3 जून को निर्दलीय विधायकों होशियार सिंह (देहरा), आशीष शर्मा (हमीरपुर) और केएल ठाकुर (नालागढ़) का इस्तीफा स्वीकार कर लिया था. इस तरह से हिमाचल में फिर से खाली हुई हमीरपुर, नालागढ़ व देहरा विधानसभा सीटों पर 10 जुलाई को मतदान हुआ. जिसमें भाजपा ने तीन निर्दलीय विधायकों को अपना प्रत्याशी बनाया था. जिसका नतीजा 13 जुलाई को घोषित किया गया. इस उपचुनाव में नालागढ़ व देहरा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशियों की जीत हुई थी. वहीं, हमीरपुर सीट पर भाजपा चुनाव जीतने में सफल हुई थी. इस तरह से 2 सीटें जीतने पर कांग्रेस विधायकों का संख्या बल 38 से बढ़कर फिर से 40 तक पहुंच गया. जो अब बहुमत के आंकड़े से 5 सीटें अधिक है.

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