उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

हाईकोर्ट ने कहा- पांच साल में पांच बार ट्रांसफर करना दुर्भावनापूर्ण, सरकार से जवाब तलब - ALLAHABAD HIGH COURT ORDER

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court order ) ने सरकारी कर्मचारी के पांच बार स्थानांतरण मामले को प्रथमदृष्टया दुर्भावना पूर्ण माना है. इस मामले में कोर्ट ने स्थानांतरण आदेश पर रोक लगाते हुए सरकार से जवाब तलब किया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Photo Credit: ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 25, 2024, 10:44 PM IST

प्रयागराज :इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क़ृषि विभाग में कार्यरत कर्मचारी का पांच वर्ष के कार्यकाल में पांच बार स्थानांतरण करने को अधिकारियों द्वारा प्रशासनिक शक्ति का दुरुपयोग करार दिया है. कोर्ट ने कहा कि पांच साल में पांच बार स्थानांतरण करना प्रथमदृष्टया दुर्भावना पूर्ण लग रहा है. कोर्ट ने इस मामले में सरकार से तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है. न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की कोर्ट ने अपर निदेशक (प्रशासन) उप्र, कृषि निदेशालय के 29 जून 2024 के आदेश पर रोक लगा दी है.

अभियोजन के अनुसार बुलंदशहर के याची पुनीत सिंह की 2019 में अनुकंपा के आधार पर क़ृषि विभाग में नियुक्ति की हुई थी. पहली नियुक्ति गौतमबुद्ध नगर में दी गई. वहां वर्ष 2022 तक नियुक्त रहा. वर्ष 2022 में ही गौतमबुद्ध नगर से कासगंज, एटा में स्थानांतरित कर दिया गया. फिर वर्ष 2022 में कासगंज से मेरठ में स्थानांतरित कर दिया गया. पुनः 3 सितंबर 2022 को याची को मेरठ से बुलन्दशहर स्थानांतरित कर दिया गया. 29 जून 2024 को याची का पांच साल की छोटी अवधि में पांचवां स्थानांतरण कर दिया गया. इस आदेश को याची पुनीत सिंह ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. सुनवाई के बाद कोर्ट ने स्थानांतरण को दुर्भावनापूर्ण मानते हुए इस पर रोक लगा दी है और तीन सप्ताह में सरकार से जवाब मांगा है.

क्रूरता साबित करने के लिए नाबालिग बेटी का बयान तलाक के लिए पर्याप्त आधार : हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग के बयान को पिता की क्रूरता साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य मानते हुए पति-पत्नी के तलाक को मंजूरी दे दी है. कोर्ट ने पारिवारिक न्यायधीश के उस निर्णय को पलट दिया जिसमें उन्होंने क्रूरता के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं होने की बात कही थी. कोर्ट ने कहा कि मां की ओर से पति पर लगाए गए क्रूरता के आरोपों को साबित करने के लिए नाबालिग बेटी का बयान पर्याप्त है और यह तलाक की अर्ज़ी मंजूर करने का पर्याप्त आधार है.

अभियोजन पक्ष के अनुसार कोर्ट ने बरेली की मंजूषा की ओर से परिवार न्यायालय के आदेश के विरुद्ध अपील स्वीकार कर ली है. अपील पर न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डी रमेश की पीठ ने सुनवाई की. मंजुषा का 1999 में विवाह हुआ था, उसके दो बच्चे भी हुए. 2011 के बाद पति-पत्नी के बीच मतभेद शुरू हुआ और गंभीर होता गया. मंजुषा ने पति पर क्रूरता करने का आरोप लगाते हुए परिवार न्यायालय बरेली में तलाक का वाद दायर किया. परिवार न्यायालय ने तलाक की याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि पति पर क्रूरता के आरोप अस्पष्ट हैं. इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई.

हाईकोर्ट ने दलीलों को सुनने व तथ्यों का अवलोकन करने के बाद कहा कि क्रूरता को साबित करने के लिए नाबालिग बेटी का बयान पर्याप्त साक्ष्य था, क्योंकि इसे कभी चुनौती नहीं दी गई. कोर्ट ने कहा कि जब नाबालिग बच्ची ने विशेष रूप से यह बयान दिया कि उसके पिता ने कई मौकों पर उसकी मां का गला घोंटने की कोशिश की. नाबालिग के इस बयान के आगे क्रूरता का कोई अन्य सबूत पेश करने की जरूरत नहीं है.

अतिक्रमण के निरीक्षण में व्यवधान डालने पर प्रधान पति पर 50 हजार रुपये हर्जाना

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शंकरगढ़ ब्लाॅक के पहाड़ी कला गांव में तालाब भूमि पर अतिक्रमण के निरीक्षण के दौरान व्यवधान डालने और दर्ज एफआईआर की विवेचना में हस्तक्षेप करने के लिए प्रधानपति धर्मेन्द्र सिंह पर 50 हजार रुपये हर्जाना लगाया है. साथ ही फर्जी मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर एसीजेएम अदालत में लंबित मुकदमे राज्य बनाम आत्मा प्रसाद सिंह व अन्य की कार्यवाही रद्द कर दी है.

यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने पहाड़ी कला गांव निवासी अधिवक्ता प्रवीण कुमार सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है. याचिका पर हाईकोर्ट ने डीएम को मौके की जांच करने का आदेश दिया था. जब तालाब भूमि के अतिक्रमण का निरीक्षण विवाद के कारण पूरा नहीं हो सका और दोनों ओर से एफआईआर दर्ज कराई गई. पुलिस ने दोनों मामलों में चार्जशीट दाखिल की, कोर्ट ने सम्मन जारी किया है, जिसे याचिका में चुनौती दी गई.

हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार की ड्यूटी कानून व्यवस्था कायम रखने की है, लेकिन इस मामले में वह विफल रही. कोई कार्रवाई नहीं की गई. गांव की निर्वाचित प्रधान रबर स्टाम्प बनी हुई है और प्रधानपति सारा काम कर रहा है. याची का कहना था कि फर्जी मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर शिकायतकर्ता ने एफआईआर दर्ज कराई है. विवेचक ने मौके पर मौजूद अधिकारियों का बयान नहीं लिया और चार्जशीट दाखिल कर दी जबकि कोई अपराध बनता ही नहीं है. इसके अलावा निरीक्षण कोर्ट आदेश के क्रम में किया जा रहा था, जिसमें प्रधानपति ने हस्तक्षेप किया और निरीक्षण नहीं होने दिया. उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. उसने विवेचना पर अपना प्रभाव डाला. सुनवाई के बाद कोर्ट ने लंबित मुकदमे राज्य बनाम आत्मा प्रसाद सिंह व अन्य की कार्यवाही रद्द कर दी है.

यह भी पढ़ें : कैथी टोल प्लाजा का कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने का आदेश निरस्त; हाईकोर्ट ने कहा- पहले से कार्रवाई का मन बनाकर नोटिस जारी करना गलत - Allahabad High Court order

यह भी पढ़ें : कांवड़ मार्ग पर मांस की दुकानें बंद करने के आदेश को हाईकोर्ट में दी गई चुनौती

ABOUT THE AUTHOR

...view details