मथुराः दीवाली के दूसरे दिन कान्हा की नगरी में गोवर्धन पूजा का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. गोवर्धन पूजा में शामिल होने के लिए दूसरे राज्यों के साथ विदेशी करीब 2 लाख श्रद्धालु पहुंचे हैं. श्रद्धालुओं ने गोवर्धन महाराज के दर्शन कर दुग्धाभिषेक किया. इसके साथ ही अपने हाथों से बनाए गए अनेक प्रकार के व्यंजनों का ठाकुर जी को भोग लगाया गया. इसके साथ ही गिरिराज पर्वत की 21 किलोमीटर की परिक्रमा लगाई.
बता दें कि गिरिराज जी की नगरी गोवर्धन में पूजा का विशेष महत्व होता है. यहां गाय के गोबर से पूजा नहीं होती बल्कि पर्वत की पूजा का विशेष महत्व होता है.इसलिए सुबह से ही श्रद्धालु गिरिराज जी को दुग्ध अभिषेक करने के साथ-साथ अनेक प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाना शुरू कर दिया था.
गोवर्धन पूजा करते श्रद्धालु. (Video Credit; ETV Bharat) इसके साथ ही श्रद्धालुओं ने कस्बे में परिक्रमा मार्ग से होते हुए 21 किलोमीटर की शोभायात्रा भी निकली. गोवर्धन पूजा के दिन 21 किलोमीटर की परिक्रमा लगाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. श्री राम जन्मभूमि मंदिर अयोध्या के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास कहते हैं "गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के दौरान शुरू हुई थी. गोवर्धन पूजा महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है.
क्यों पूजे जाते हैं गोवर्धन पर्वत?
मान्यता है कि त्रेता युग में रावण ने सीता का हरण किया और लंका पर चढ़ाई करने के लिए रामसेतु निर्माण के लिए पत्थरों की आवश्यकता थी. सुग्रीव की सेना में शामिल हनुमान जी सहित नर वानर पुल का निर्माण करने के लिए पत्थर इकट्ठे कर रहे थे. तभी हनुमान जी को एक विशाल पर्वत दिखाई दिया. इस पर पर्वत ने हनुमान जी से कहा, मैं एक शर्त पर आपके साथ चलूंगा कि मुझे प्रभु राम के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हो. हनुमान जी ने हां कर दी और पर्वत को लेकर चल दिए. कुछ दूर जा कर सुग्रीव की तरफ से संकेत मिले कि पुल का निर्माण पूरा हो चुका है और अब पत्थरों की आवश्यकता नहीं है. इसके बाद हनुमान जी ने इस विशाल पर्वत को ब्रज में ही विराजमान कर दिया था. तब पर्वत ने हनुमान जी से कहा, मुझे प्रभु राम के दर्शन कैसे होंगे. हनुमान जी ने कहा हे पर्वत महाराज पुल का निर्माण पूरा हो चुका है. इसलिए मैं आपको इस स्थान पर विराजमान कर रहा हूं. द्वापर युग में प्रभु राम कृष्ण के रूप में इस धरती पर जन्म लेंगे और आपको उनके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होगा.
श्रीकृष्ण ने दिया था कलयुग में पूजे जाने का आशीर्वादःदूसरा पौराणिक इतिहास है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ मथुरा का राजा कंस ग्वालों पर अत्याचार करता था. दुखी होकर ग्वाल बाल श्रीकृष्ण से कहते थे कि ब्रज की रक्षा करने वाला कोई नहीं है क्या. इसके बाद कृष्ण और बलराम ने कंस का वध कर दिया. इसके बाद ब्रज में खुशहाली आ गई. तब से सभी ग्वाल बाल कहने लगे कि आज से हम सब लोग आपकी (श्रीकृष्ण) की पूजा करेंगें. इस बात से इंद्रदेव क्रोधित हो गए और पूरे ब्रज क्षेत्र में घनघोर बारिश करने लगे. सात दिनों तक बारिश के प्रकोप से ग्वाल बाल भयभीत हो गए. तब श्नीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कन्नी अंगुली पर धारण कर सबकी रक्षा की. खुश होकर बृजवासियों ने कन्हैया को अनेक प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया गया. तभी से यह परंपरा चली आ रही है. दिवाली के दूसरे दिन अन्नकूट का भोग ठाकुर जी को लगाया जाता है. गिरिराज जी की नगरी में पर्वत की पूजा की जाती है. द्वापर युग में कृष्ण ने पर्वत को आशीर्वाद दिया कि आप कलयुग में कृष्ण के रूप में इस पर्वत की पूजा होगी.
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