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ओबीसी रिजर्वेशन: कमलनाथ से लेकर अब तक, रास्ता हुआ साफ या अभी भी हैं मुश्किलें ? - MP OBC RESERVATION

जबलपुर हाई कोर्ट के हालिया फैसले से अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलने की राह आसान हो गई है. पढ़िए हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर से बातचीत पर आधारित विश्वजीत सिंह राजपूत की रिपोर्ट..

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ओबीसी आरक्षम की डगर (Etv Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 30, 2025, 12:34 PM IST

Updated : Jan 30, 2025, 2:09 PM IST

जबलपुर: मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की तरफ से 27 फीसदी आरक्षण की मांग की जा रही थी. कमलनाथ सरकार ने इसे कानूनी जामा पहना दिया था लेकिन इसको हाईकोर्ट में लगातार चुनौती दी जा रही थी. फिलहाल मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 27 प्रतिशत आरक्षण की कठिनाइयों को खत्म कर दिया है. हालांकि अभी भी इससे जुड़ी कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई है. इस मामले में कब क्या-क्या हुआ जानना जरूरी है.

कमलनाथ सरकार ने दिया था 27% ओबीसी आरक्षण

मध्य प्रदेश में 2018 तक अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण मिलता था. 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले ही मध्य प्रदेश में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग कई बार उठ चुकी थी. ओबीसी नेताओं का दावा था कि मध्य प्रदेश में उनकी आबादी 51% है इसलिए उन्हें 14% से बढ़कर 27% आरक्षण मिलना चाहिए. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां इस मुद्दे पर राजनीति कर रही थीं.

हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर (Etv Bharat)

लेकिन कांग्रेस के वादे पर भरोसा जताते हुए ओबीसी वर्ग ने कांग्रेस को जमकर समर्थन दिया और उनकी वजह से कमलनाथ सरकार में आ पाए. सरकार में आने के बाद कमलनाथ ने अपना वादा निभाया और उन्होंने अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का कानून विधानसभा से पारित कर दिया.

सरकार के फैसले को हाई कोर्ट में दी गई पहली चुनौती

इससे पहले कि 27% आरक्षण लागू हो पाता दो दिन पहले ही मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में इस मामले से जुड़ी पहली याचिका लगाई गई. इसे अतिशी दुबे नाम की एक डॉक्टर ने लगाया था और पीजी नीट परीक्षा में ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण को चुनौती दी. कोर्ट ने मामले में स्टे दे दिया. हालांकि हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर का कहना है "यह स्टे केवल इसी याचिका में दिया गया था. इसी को आधार बनाकर पीएससी मेडिकल ऑफिसर्स की भर्ती में भी अंतिम आदेश पारित करवा लिया गया."

शिवराज सरकार ने 14% आरक्षण की अनुमति मांगी

इसके बाद मध्य प्रदेश में सरकार बदल गई और शिवराज सिंह चौहान दोबारा मुख्यमंत्री बने. प्रदेश सरकार ने तत्कालीन महाधिवक्ता से उनका मत मांगा. उन्होंने शासन को बताया कि तीन मामलों में शासन 27% आरक्षण को स्टे दे चुका है इसलिए नई भर्तियां 14% आरक्षण के माध्यम से ही की जाएं. शिवराज सरकार ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से अनुमति मांगी कि प्रदेश में कर्मचारियों की कमी है और सरकार 14% ओबीसी आरक्षण के साथ भर्ती प्रक्रिया को आगे बढ़ना चाहती है.

हालांकि उस समय तक ओबीसी आरक्षण के कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कोई फैसला नहीं हुआ था. लेकिन हाईकोर्ट ने 13 जुलाई 2021 को सरकार को 14 फीसदी आरक्षण के साथ भर्ती प्रक्रिया जारी करने का आदेश दे दिया.

राज्य में विरोध के बाद दिया गया 27 फीसदी आरक्षण

सरकार ने 2021 में 14 फीसदी ओबीसी आरक्षण के साथ भर्तियां पूरी की. जिसके खिलाफ ओबीसी आंदोलन शुरू हो गया. शिवराज सरकार का कई जगह विरोध हुआ. 24 अगस्त 2021 को मध्य प्रदेश सरकार के 5 कैबिनेट मंत्रियों, ओबीसी नेता, महाधिवक्ता और मुख्यमंत्री की बैठक हुई. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस बात की जानकारी दी गई की 27 प्रतिशत आरक्षण पर रोक नहीं है.

शिवराज सिंह चौहान ने कैबिनेट मंत्री रामखेलावन पटेल के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई और महाधिवक्ता से अभिमत लिया गया. इस मामले में 26 अगस्त 2021 को सरकार की ओर से एक परिपत्र जारी किया गया जिसमें लिखा गया कि जिन तीन मामलों में हाई कोर्ट का स्टे है, उन्हें छोड़कर बाकी पदों पर भर्ती प्रक्रिया ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देते हुए जारी की जाए.

यूथ फॉर इक्वलिटी ने ओबीसीको मिलने वाले 27 प्रतिशत आरक्षण को रोकने की मांग की

लेकिन इससे पहले की सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण लागू कर पाती इस मामले में एक अवमानना याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई. इसके साथ ही यूथ फॉर इक्वालिटी संगठन ने 26 अगस्त 2021 के परिपत्र को असंवैधानिक बताते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलने वाले 27 प्रतिशत आरक्षण को रोकने की मांग की. कोर्ट ने उसकी याचिका के आधार पर परिपत्र स्टे लगा दिया.

कोर्ट से 27 प्रतिशत आरक्षण पर रोक के बादराज्य सरकार ने 87/13 का नया फार्मूला अपनाया

स्टे होने की वजह से एक बार फिर भर्ती प्रक्रिया रुक गई, लेकिन इस बार राज्य सरकार ने 87/13 का नया फार्मूला अपनाया. राज्य सरकार ने बताया कि इसमें कुल मिलाकर 113 प्रतिशत का रिजल्ट बनाया जाएगा. इसमें 87% भर्ती पुराने आरक्षण के आधार पर होगी. जिसके तहत 14 प्रतिशत आरक्षण के साथ 87 प्रतिशत पर सरकार नियुक्ति कर सकती थी. बचे हुए 13 प्रतिशत पदों पर नियुक्ति होल्ड रखी गयी थी. इसका अंतिम फैसला हाई कोर्ट के आदेश के आने के बाद किया जाएगा.

अन्य पिछड़ा वर्ग की तरफ से2021 के स्टे को दी गई चुनौती

अन्य पिछड़ा वर्ग के याचिकाकर्ताओं ने यूथ फॉर इक्वालिटी की तरफ से लगाई गई याचिका को चुनौती दी. सीनियर एडवोकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर का कहना है " यूथ फॉर इक्वालिटी की ओर से यह याचिका गिरीश कुमार सिंह की तरफ से पेश की गई थी. गिरीश वर्तमान में सागर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. अन्य पिछड़ा वर्ग की ओर से यह तर्क दिया गया कि गिरीश का इस मामले में सीधा कोई संबंध नहीं है. उनका ट्रांसफर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हो चुका है. यूथ फॉर इक्वालिटी ने 2021 के सरकार के परिपत्र को चुनौती दी है. परिपत्र को चुनौती देने का अधिकार यूथ फॉर इक्वलिटी को नहीं है. यूथ फॉर इक्वालिटी ने कानून को चुनौती नहीं दी है, इसलिए उनकी चुनौती को जायज नहीं माना जा सकता. और कोर्ट ने यूथ फॉर इक्वलिटी की याचिका खारिज कर दी."

अब 27 प्रतिशत आरक्षण का रास्ता साफ

वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर का कहना है "इस याचिका के खारिज होने के बाद 87/13 का फार्मूला भी खत्म हो गया है. अब 2021 की स्थिति बन गई है. जिसमें सरकार की ओर से 27 प्रतिशत आरक्षण जारी रखने की बात कही गई थी."

सुप्रीम कोर्ट की याचिकाएं डाल सकती हैं बाधा

लेकिन अभी भी ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण के खिलाफ 100 से ज्यादा याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं. हालांकि किसी भी में 27% आरक्षण को स्टे नहीं है. ऐसे में जब तक किसी नई याचिका में सुप्रीम कोर्ट कोई स्टे ना दे दे तब तक मध्य प्रदेश में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण जारी माना जा सकता है.

Last Updated : Jan 30, 2025, 2:09 PM IST

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