शिमला: चार लोकसभा सीटों वाले छोटे राज्य हिमाचल इस समय देश की राजनीति में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. ये चर्चा मंडी सीट पर बॉलीवुड क्वीन कंगना रनौत को भाजपा टिकट मिलने के बाद से शिखर पर है. कंगना की उम्मीदवारी के बाद मीडिया की सुर्खियों में आई मंडी सीट पर नया समीकरण बनता दिख रहा है. यहां पहले प्रतिभा सिंह के चुनाव लड़ने की संभावना थी, लेकिन हाल ही में दिल्ली की मीटिंग में विक्रमादित्य सिंह के नाम की भी चर्चा हुई है. अब मंडी के सियासी मैदान में नया मोड़ आता दिखाई दे रहा है. क्या मंडी में अब मुकाबला क्वीन वर्सेज रानी न होकर क्वीन वर्सेस किंग होगा?
प्रतिभा सिंह क्योंथल रियासत से संबंध रखती हैं और विवाह के बाद वे बुशहर राजघराने की रानी हुई. बुशहर के राजपरिवार के राजा वीरभद्र सिंह अब इस संसार में नहीं हैं. उनके देहावसान के बाद औपचारिक रूप से विक्रमादित्य सिंह का राजतिलक हुआ है और वे बुशहर के राजा हैं. अब मंडी सीट पर विक्रमादित्य सिंह के नाम की चर्चा के बाद आसार हैं कि यहां मुकाबला बॉलीवुड क्वीन बनाम बुशहर रियासत के राजा और हिमाचल सरकार के युवा कैबिनेट मंत्री विक्रमादित्य सिंह के बीच हो सकता है. ऐसे में मंडी सीट पर किस तरह से समीकरण बदलेंगे, उसकी चर्चा यहां की जाएगी.
कंगना के कारण हॉट सीट बनी मंडी:अपने दमदार अभिनय से बॉलीवुड में खास जगह बनाने वाली कंगना रनौत हिमाचल की ही रहने वाली हैं. कंगना अपने बेबाक बयानों के लिए अकसर चर्चा में रहती हैं. क्वीन के राजनीति के मैदान में उतरने की लंबे समय से अटकलें लग रही थीं. इन अटकलों को भाजपा के टिकटों की घोषणा के साथ ही विराम लग गया और फिर अचानक से मंडी सीट वीवीआईपी हो गई. देश भर के मीडिया में कंगना की दावेदारी और उनके समय-समय पर दिए गए बयानों की चर्चा होने लगी. कंगना को टिकट मिलने के साथ ही ये चर्चा शुरू हो गई कि मंडी सीट पर मुकाबला क्वीन वर्सेज रानी होगा. कांग्रेस से सिटिंग एमपी रानी प्रतिभा सिंह के चुनाव लड़ने के आसार थे. प्रतिभा सिंह को लेकर हिमाचल सरकार के डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री का बयान भी आया था कि उन्हें चुनाव लड़ना ही होगा. बाद में दिल्ली में मीटिंग में विक्रमादित्य सिंह के नाम पर भी मंथन हुआ. अब कांग्रेस हाईकमान विक्रमादित्य सिंह को भी टिकट थमा सकता है.
युवा चेहरों के बीच दमदार होगी जंग:कंगना युवा अभिनेत्री हैं और अब सियासत के मैदान में सक्रिय हो गई हैं. विक्रमादित्य सिंह भी युवा नेता हैं. दोनों के बीच मुकाबला होता है तो मंडी सीट पर दोनों ही फ्रेश चेहरे होंगे. कंगना के पक्ष में पीएम मोदी का मैजिक होने के साथ ही भाजपा कार्यकर्ताओं का मजबूत कैडर है. विक्रमादित्य सिंह के पक्ष में वीरभद्र सिंह की छवि, युवा कार्यकर्ताओं का समर्थन और कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक होगा. वीरभद्र सिंह बेशक अब देह में नहीं हैं, लेकिन हिमाचल के ग्रामीण इलाकों में अभी भी उनकी राजा वाली छवि का आकर्षण है. यदि विक्रमादित्य सिंह मैदान में उतरते हैं तो ग्रामीण इलाकों के बुजुर्ग उनमें राजा वीरभद्र की छवि देखेंगे. लोगों में ये मान्यता है कि राजा देवतुल्य होता है. इन बातों का विक्रमादित्य सिंह को लाभ होगा. विक्रमादित्य सिंह को भी राजनीति में अच्छा-खासा समय हो गया है. वे युवा कांग्रेस में रहे हैं और फिर दूसरी बार विधायक बने हैं. इस बार उन्हें भारी-भरकम लोक निर्माण विभाग का मंत्री भी बनाया गया है. ये होलीलॉज की कांग्रेस में पैठ का ही कमाल है कि सत्ता के इस केंद्र को हाईकमान भी इग्नोर नहीं कर पाया. फिर विक्रमादित्य सिंह युवा हैं और प्रचार में पसीना बहा सकते हैं.
परंपरागत वोट बैंक का लाभ:विक्रमादित्य सिंह को मंडी सीट पर परंपरागत वोट बैंक का भी लाभ मिलेगा. यहां से वीरभद्र सिंह तीन बार व प्रतिभा सिंह भी इतनी ही बार सांसद रही हैं. इस सीट पर अधिकांशत राजपरिवार के सदस्य ही विजयी हुए हैं. कारण ये है कि मंडी सीट पर राजपरिवारों का दबदबा रहा है. यहां राजपूत व ब्राह्मण वोट बैंक है. यही कारण है कि मंडी से भाजपा के रामस्वरूप शर्मा दो बार सांसद रहे. पंडित सुखराम भी मंडी से दो बार सांसद रहे. इस तरह वीरभद्र सिंह व प्रतिभा सिंह मंडी से छह बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं. विक्रमादित्य सिंह को यहां से चुनाव मैदान में उतारने से कांग्रेस को कई लाभ होंगे और वे बॉलीवुड क्वीन कंगना को कड़ी टक्कर देकर मुकाबला दिलचस्प बना देंगे. विक्रमादित्य सिंह को इससे पहले कांग्रेस ने मंडी का चुनाव प्रचार प्रभारी भी बनाया है. वे यहां प्रचार भी कर चुके हैं. कंगना के मुकाबले विक्रमादित्य सिंह को हिमाचल के मुद्दों की अधिक समझ है. बड़ी बात ये है कि विक्रमादित्य सिंह सधी हुई बयानबाजी भी करते हैं. अयोध्या में प्रभु श्री राम के मंदिर में श्री राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में विक्रमादित्य सिंह शामिल हुए थे. वे अपने सोशल मीडिया पर निरंतर राम नाम का गुणगान करते दिखते हैं. ऐसे में विक्रमादित्य सिंह खुलकर राम के नाम में अपनी आस्था की बात वोटर्स तक पहुंचा सकते हैं. कांग्रेस का आधिकारिक स्टैंड चाहे कुछ भी हो, लेकिन विक्रमादित्य सिंह अपने पिता और छह बार के सीएम वीरभद्र सिंह की तरह राम मंदिर निर्माण के पक्षधर रहे हैं.