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कमाई अधिकतम 16 हजार करोड़ और खर्च 27 हजार करोड़, सैलरी-पेंशन की टेंशन दूर करने को अब लोन लिमिट पर सुक्खू सरकार की नजर - HIMACHAL LOAN CRISIS

हिमाचल सरकार का सालाना खर्च सालाना कमाई से ज्यादा है. ऐसे में प्रदेश सरकार द्वारा कमाई के अन्य संसाधन ढूंढे जा रहे हैं.

HIMACHAL LOAN CRISIS
हिमाचल में कर्ज का मर्ज (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jan 2, 2025, 12:34 PM IST

शिमला: कमाई व खर्च में जमीन-आसमान का अंतर हो तो अकसर मुंह से ये चर्चित मुहावरा फूट पड़ता है-कमाई चवन्नी, खर्चा अठन्नी. यानी कमाई 25 पैसे और खर्च पचास पैसे. हिमाचल सरकार भी इसी मर्ज से जूझ रही है. राज्य सरकार की सालाना कमाई अधिकतम सोलह हजार करोड़ रुपए है और खर्च 27 हजार करोड़ रुपए सालाना है. यानी खर्च अधिक और कमाई कम है. सरकार का खर्च कमाई से डेढ़ गुना से भी अधिक है. ऊपर से कर्ज का मर्ज विकराल है. इस मर्ज का अंदाजा आंकड़ों से लगता है. राज्य सरकार ने दो साल में 28 हजार करोड़ रुपए के करीब कर्ज लिया है. इसमें से 10 हजार करोड़ रुपए तो पिछले कर्जों के ब्याज चुकाने पर लगे हैं. पिछले कर्ज के मूलधन के रूप में सरकार ने 8 हजार करोड़ रुपए वापस किए हैं. ये आंकड़े खुद सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मीडिया से शेयर किए हैं. एक तरह से राज्य सरकार की आर्थिक गाड़ी कर्ज के सहारे चल रही है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने दावा किया है कि उनकी सरकार ने सत्ता में आने के बाद से 2200 करोड़ रुपए का अतिरिक्त राजस्व जुटाया है. सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती हर महीने वेतन व पेंशन के 2000 करोड़ रुपए के खर्च को लेकर है. यही कारण है कि वर्ष 2024 में हिमाचल सरकार का आर्थिक संकट सुर्खियों में रहा था.

नए साल में सुख की सांस

अब नए साल यानी वर्ष 2025 की शुरुआत सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार के लिए अच्छी रही है. पहली ही तारीख को वेतन व पेंशन का भुगतान कर दिया है. इस तरह सरकार के लिए ये खबर सुख की सांस लेने वाली है. इसके साथ ही अब नजरें केंद्र सरकार से आखिरी तिमाही की लोन लिमिट की सेंक्शन पर टिक गई हैं. केंद्र सरकार अप्रैल से दिसंबर तक लोन लिमिट सेंक्शन करती है. आखिरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च की लोन लिमिट अलग से मंजूर होती है. जनवरी 2025 के पहले पखवाड़े में केंद्र से लोन लिमिट मंजूर होती है. इस समय सुखविंदर सरकार एडवांस में 500 करोड़ रुपए का लोन ले चुकी है. ये एडवांस रकम आखिरी तिमाही की लोन लिमिट से कट जाएगी. सरकार को उम्मीद है कि जनवरी से मार्च की तिमाही के लिए उसे केंद्र से कम से कम 1600 करोड़ रुपए सेंक्शन हो जाएंगे. ऐसे में पांच सौ करोड़ एडवांस के कट होने से आखिरी दो महीने में यानी फरवरी व मार्च में उसके पास लोन लेने के लिए 1100 करोड़ रुपए की रकम होगी. इसके अलावा केंद्रीय करों में हिस्सेदारी, रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के पैसे व अपने संसाधनों की आय मिलाकर मार्च तक का समय निकल जाएगा.

अप्रैल 2025 से नई लिमिट मिलेगी

उपरोक्त आंकड़ों से ये स्पष्ट हो गया है कि मार्च तक का समय किसी न किसी तरह आर्थिक गाड़ी खींचने वाला समय हो जाएगा. अप्रैल 2025 से नई लोन लिमिट सेंक्शन हो जाएगी. उम्मीद की जा रही है कि ये नई लिमिट 7000 करोड़ रुपए तक की होगी. पिछली बार अप्रैल 2024 से दिसंबर 2024 तक की लिमिट 6218 करोड़ रुपए के करीब थी. हर साल हल्का सा इन्क्रीज होता है. केंद्र से ये लोन लिमिट सेंक्शन होने के बाद राज्य सरकार को राहत की सांस मिलेगी. उसके बाद सरकार के लिए चिंता का विषय घटती रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट होगी. नए वित्तीय वर्ष में ये ग्रांट पिछली बार के मुकाबले 52 फीसदी कम होगी. इस वित्तीय वर्ष में आरडीजी साल भर के लिए 3257 करोड़ रुपए रह जाएगी. वित्तायोग के समक्ष पेश की गई रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2025-2026 में साल भर में वेतन के लिए 15862 करोड़ और पेंशन के लिए 10800 करोड़ रुपए की रकम चाहिए. दोनों को मिला दें तो ये खर्च पूरे साल का 26722 करोड़ रुपए होगा. वहीं, कमाई की बात करें तो राज्य सरकार को 2025-26 में सारे संसाधनों से साल भर में 17044 करोड़ रुपए ही मिलेंगे.

आर्थिक मामलों पर निरंतर काम कर रहे पूर्व आईएएस अधिकारी केआर भारती का कहना है, "कर्ज के बिना बेशक गाड़ी नहीं चल सकती, लेकिन आय के नए संसाधन तलाशना बहुत जरूरी हो गया है." प्रधान लेखाकार कार्यालय में डिप्टी अकाउंटेंट जनरल रहे टीसी धीमान मानते हैं कि सरकार को सिंचाई के साधनों व एग्रीकल्चर सेक्टर पर ध्यान देने की जरूरत है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि सरकार ने राजस्व के नए एरिया पर काम किया है. इसका परिणाम देखने को मिलने लगा है.

वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा का कहना है, "सरकार के आशा के कुछ नए केंद्र दिख रहे हैं. उनमें शानन प्रोजेक्ट, बीबीएमबी परियोजनाओं का बकाया एरियर, उद्योगों को बिजली की दरों में बढ़ोतरी आदि शामिल है. हिमाचल का हक मिलने पर अकेला शानन प्रोजेक्ट सालाना 200 करोड़ की कमाई देगा. बीबीएमबी परियोजनाओं का 4500 करोड़ का एरियर मिलना है. ऐसे में आने वाले समय में स्थितियों में सुधार आ सकता है, लेकिन कर्ज पर निर्भरता कम नहीं होगी."

ये भी पढ़ें: मुख्यमंत्री के नाम पर निजी तौर पर थे 5 बिजली मीटर, सब पर स्वेच्छा से छोड़ी सब्सिडी, कैबिनेट मंत्रियों ने भी किया अनुसरण

ये भी पढ़ें: पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के नाम से जाना जाएगा हिमाचल का ये संस्थान, दृष्टिबाधितों की पेंशन बढ़ाने की भी घोषणा

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शिमला: कमाई व खर्च में जमीन-आसमान का अंतर हो तो अकसर मुंह से ये चर्चित मुहावरा फूट पड़ता है-कमाई चवन्नी, खर्चा अठन्नी. यानी कमाई 25 पैसे और खर्च पचास पैसे. हिमाचल सरकार भी इसी मर्ज से जूझ रही है. राज्य सरकार की सालाना कमाई अधिकतम सोलह हजार करोड़ रुपए है और खर्च 27 हजार करोड़ रुपए सालाना है. यानी खर्च अधिक और कमाई कम है. सरकार का खर्च कमाई से डेढ़ गुना से भी अधिक है. ऊपर से कर्ज का मर्ज विकराल है. इस मर्ज का अंदाजा आंकड़ों से लगता है. राज्य सरकार ने दो साल में 28 हजार करोड़ रुपए के करीब कर्ज लिया है. इसमें से 10 हजार करोड़ रुपए तो पिछले कर्जों के ब्याज चुकाने पर लगे हैं. पिछले कर्ज के मूलधन के रूप में सरकार ने 8 हजार करोड़ रुपए वापस किए हैं. ये आंकड़े खुद सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मीडिया से शेयर किए हैं. एक तरह से राज्य सरकार की आर्थिक गाड़ी कर्ज के सहारे चल रही है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने दावा किया है कि उनकी सरकार ने सत्ता में आने के बाद से 2200 करोड़ रुपए का अतिरिक्त राजस्व जुटाया है. सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती हर महीने वेतन व पेंशन के 2000 करोड़ रुपए के खर्च को लेकर है. यही कारण है कि वर्ष 2024 में हिमाचल सरकार का आर्थिक संकट सुर्खियों में रहा था.

नए साल में सुख की सांस

अब नए साल यानी वर्ष 2025 की शुरुआत सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार के लिए अच्छी रही है. पहली ही तारीख को वेतन व पेंशन का भुगतान कर दिया है. इस तरह सरकार के लिए ये खबर सुख की सांस लेने वाली है. इसके साथ ही अब नजरें केंद्र सरकार से आखिरी तिमाही की लोन लिमिट की सेंक्शन पर टिक गई हैं. केंद्र सरकार अप्रैल से दिसंबर तक लोन लिमिट सेंक्शन करती है. आखिरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च की लोन लिमिट अलग से मंजूर होती है. जनवरी 2025 के पहले पखवाड़े में केंद्र से लोन लिमिट मंजूर होती है. इस समय सुखविंदर सरकार एडवांस में 500 करोड़ रुपए का लोन ले चुकी है. ये एडवांस रकम आखिरी तिमाही की लोन लिमिट से कट जाएगी. सरकार को उम्मीद है कि जनवरी से मार्च की तिमाही के लिए उसे केंद्र से कम से कम 1600 करोड़ रुपए सेंक्शन हो जाएंगे. ऐसे में पांच सौ करोड़ एडवांस के कट होने से आखिरी दो महीने में यानी फरवरी व मार्च में उसके पास लोन लेने के लिए 1100 करोड़ रुपए की रकम होगी. इसके अलावा केंद्रीय करों में हिस्सेदारी, रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के पैसे व अपने संसाधनों की आय मिलाकर मार्च तक का समय निकल जाएगा.

अप्रैल 2025 से नई लिमिट मिलेगी

उपरोक्त आंकड़ों से ये स्पष्ट हो गया है कि मार्च तक का समय किसी न किसी तरह आर्थिक गाड़ी खींचने वाला समय हो जाएगा. अप्रैल 2025 से नई लोन लिमिट सेंक्शन हो जाएगी. उम्मीद की जा रही है कि ये नई लिमिट 7000 करोड़ रुपए तक की होगी. पिछली बार अप्रैल 2024 से दिसंबर 2024 तक की लिमिट 6218 करोड़ रुपए के करीब थी. हर साल हल्का सा इन्क्रीज होता है. केंद्र से ये लोन लिमिट सेंक्शन होने के बाद राज्य सरकार को राहत की सांस मिलेगी. उसके बाद सरकार के लिए चिंता का विषय घटती रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट होगी. नए वित्तीय वर्ष में ये ग्रांट पिछली बार के मुकाबले 52 फीसदी कम होगी. इस वित्तीय वर्ष में आरडीजी साल भर के लिए 3257 करोड़ रुपए रह जाएगी. वित्तायोग के समक्ष पेश की गई रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2025-2026 में साल भर में वेतन के लिए 15862 करोड़ और पेंशन के लिए 10800 करोड़ रुपए की रकम चाहिए. दोनों को मिला दें तो ये खर्च पूरे साल का 26722 करोड़ रुपए होगा. वहीं, कमाई की बात करें तो राज्य सरकार को 2025-26 में सारे संसाधनों से साल भर में 17044 करोड़ रुपए ही मिलेंगे.

आर्थिक मामलों पर निरंतर काम कर रहे पूर्व आईएएस अधिकारी केआर भारती का कहना है, "कर्ज के बिना बेशक गाड़ी नहीं चल सकती, लेकिन आय के नए संसाधन तलाशना बहुत जरूरी हो गया है." प्रधान लेखाकार कार्यालय में डिप्टी अकाउंटेंट जनरल रहे टीसी धीमान मानते हैं कि सरकार को सिंचाई के साधनों व एग्रीकल्चर सेक्टर पर ध्यान देने की जरूरत है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि सरकार ने राजस्व के नए एरिया पर काम किया है. इसका परिणाम देखने को मिलने लगा है.

वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा का कहना है, "सरकार के आशा के कुछ नए केंद्र दिख रहे हैं. उनमें शानन प्रोजेक्ट, बीबीएमबी परियोजनाओं का बकाया एरियर, उद्योगों को बिजली की दरों में बढ़ोतरी आदि शामिल है. हिमाचल का हक मिलने पर अकेला शानन प्रोजेक्ट सालाना 200 करोड़ की कमाई देगा. बीबीएमबी परियोजनाओं का 4500 करोड़ का एरियर मिलना है. ऐसे में आने वाले समय में स्थितियों में सुधार आ सकता है, लेकिन कर्ज पर निर्भरता कम नहीं होगी."

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