बलौदाबाजार: छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. यहां धान के झालर लगाने की परंपरा दिवाली पर वर्षों से चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि धान फसल के पहले बीज का इस्तेमाल माता लक्ष्मी की पूजा में होता है. छत्तीसगढ़ के लोक परंपरा के जानकारों के मुताबिक दीपावली में लक्ष्मी पूजा के दिन धान के झालर की पूजा से घर में समृद्धि, सुखशांति और खुशहाली आती है. इसे लक्ष्मी का आशीर्वाद माना जाता है. धान की यह बालियां चिड़ियों के भोजन का भी एक स्रोत है.
दिवाली पर धान के झालर से होती है सजावट: दीपावली पर छत्तीसगढ़ में धान के झालर से सजावट का काम किया जाता है. इस झालर का प्रयोग मुख्य रूप से सजावट और मंगलकामनाओं के प्रतीक के रूप में किया जाता है. यह राज्य की संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के प्रति लोगों के प्रेम को दर्शाता है. धान प्रदेश का मुख्य फसल है. इसे किसान वर्ग आमदनी का स्रोत भी मानता है. यही वजह है कि प्रदेश में किसानों के घर में धान के झालर का प्रयोग ज्यादा दिखता है.
दिवाली में धान के झालर का महत्व (ETV BHARAT)
क्या हैं छत्तीसगढ़ के रीति रिवाज ?: छत्तीसगढ़ के लोक कला के मान्यताओं के अनुसार धान की झालर छत्तीसगढ़ की पारंपरिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है. यह झालर न केवल सजावट का हिस्सा है, बल्कि यहां के लोगों के जीवन में धान के महत्व को भी दर्शाता है. गांवों में इसे बनाने का काम अक्सर महिलाएं करती हैं. जो पारंपरिक गीत गाते हुए धान के दानों को धागों में पिरोती हैं. यह प्रक्रिया उनके परिश्रम और रचनात्मकता का प्रतीक होती है.
हम कई सालों से धान के झालर को बाजार में बेचते आ रहे हैं. इसका दिवाली पर खास इस्तेमाल होता है. लोग अपने घरों में धान के झालर को लगाते हैं: धान का झालर बेचने वाली महिलाएं
14 नवंबर से धान की खरीदी: धान छत्तीसगढ़ में किसानों के लिए समृद्धि और आय का स्रोत है. यहां हर साल धान खरीदी होती है.14 नवंबर से छत्तीसगढ़ में समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी की शुरुआत होगी. सरकार ने धान खरीदी को लेकर प्रदेश के सभी जिलों में निर्देश जारी कर दिया है. प्रदेश के सभी जिलों के कलेक्टर धान की खरीदी को लेकर तैयारियों में जुटे हुए हैं.