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छत्तीसगढ़ की ऊर्जाधानी में प्रदूषण, आग में घी का काम कर रहा सिगड़ी से निकला कोयले का धुआं - KORBA AQI

कोरबा में कोयले से जलने वाले चूल्हों से प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है.

KORBA AQI
कोरबा में प्रदूषण (ETV Bharat GFX)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : 14 hours ago

कोरबा: देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल छत्तीसगढ़ की ऊर्जाधानी कोरबा में सिगड़ी से उठने वाला धुआं, यहां की हवा को और भी दूषित कर रहा है. महंगे एलपीजी गैस खरीदने से बचने के लिए स्लम बस्ती के लोग खाना पकाने के लिए ईंधन के तौर पर कोयला का इस्तेमाल करते हैं. कोयला खदानों से घिरे होने के कारण लोगों को कोरबा में कोयला आसानी से मिल जाता है. जिसके कारण लोग अंधाधुंध कोयला जलाते हैं. जिससे कोरबा का प्रदूषण स्तर काफी बढ़ गया है. शाम होते ही कोरबा का पुराना शहर धुएं के आगोश में समा जाता है.

कोयला जलाने से कोरबा में बढ़ रहा प्रदूषण: रेलवे स्टेशन के पास बसे संजय नगर की स्लम बस्ती समेत आसपास के इलाके में मजदूरों के परिवार खाना पकाने के लिए बड़े पैमाने पर ईंधन के रूप में कोयला जलाते हैं. इसी कोयले से यह धुआं पूरे कोरबा को धुआं-धुआं कर देता है. न सिर्फ कोरबा शहर के पास बल्कि गेवरा, दीपका, कुसमुंडा से लेकर उपनगरीय क्षेत्र की स्लम बस्तियों का भी कमोबेश एक जैसा हाल है. ठंड के मौसम में ये धुआं हवा के साथ मिलकर वातावरण को लगातार प्रदूषित कर रहा है.

कोरबा में प्रदूषण (ETV Bharat)
pollution in Korba
एयर क्वालिटी इंडेक्स का निर्धारण (ETV Bharat Chhattisgarh)
pollution in Korba
एयर क्वालिटी इंडेक्स का निर्धारण (ETV Bharat Chhattisgarh)
Korba AQI
कोरबा में चारों तरफ धुआं ही धुआं (ETV Bharat Chhattisgarh)
Korba AQI
सिगड़ी के धुएं से बढ़ रही बीमारियां (ETV Bharat Chhattisgarh)

कोरबा में आसानी से मिल जाता है कोयला: कोरबा जिले में भरपूर कोयला उत्पादन होता है. देश में कोयले की वजह से ही कोरबा की पहचान है. गेवरा, दीपका कुसमुंडा कोल इंडिया लिमिटेड की सबसे बड़ी परियोजनाएं हैं. यहां देश की सबसे बड़ी खुली खदानें भी हैं. यहां लोगों को आसानी से और 50 से 250 रुपये बोरी के हिसाब से कोयला मिल भी जाता है. खदान और रेलवे स्टेशन के आसपास के लोग कोयला मुफ्त में भी अपने घर ले आते हैं और इसी पर खाना पकाते हैं.

Korba AQI
कोरबा में कोयले की खदानों से आसानी से मिल जाता है कोयला (ETV Bharat Chhattisgarh)

स्मोकलेस कोरबा अभियान नहीं हुआ साकार: कोरबा के तत्कालीन कलेक्टर पी दयानंद ने साल 2017 के आसपास स्मोक लेस कोरबा अभियान शुरू किया था. जिसके तहत सिगड़ी पर कोयले से खाना पकाने वाले परिवार को गैस सिलेंडर दिए जाने की योजना थी. केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना भी है. लेकिन यह योजनाएं भी कोरबा जिले को कोयले के धुएं से मुक्ति नहीं दिला सकीं और स्मोकलेस कोरबा अभियान की परिकल्पना भी साकार नहीं हो सकी.

Korba AQI
छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल (ETV Bharat Chhattisgarh)

लगातार बढ़ रहे सांस के मरीज: मेडिकल कॉलेज अस्पताल के छाती रोग विशेषज्ञ व सहायक अध्यापक डॉ. शशिकांत भास्कर कहते हैं कि ठंड के मौसम में प्रदूषण की स्थिति ज्यादा चिंताजनक हो जाती है. पर्टिकुलर मैटर हवा के साथ मिलकर फॉग और स्मॉग का निर्माण करते हैं. जिससे कई बार सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है. वे बताते हैं कि सिगड़ी से निकलने वाला धुआं कोरबा में प्रदूषण को और बढ़ा रहा है.

सिगड़ी का धुआं तुरंत ऊपर नहीं जाता है. वह नीचे ही रहता है. इस वजह से सिगड़ी का धुआं श्वास नली में ज्यादा जाता है. इस वजह से ठंड में सांस से संबंंधित मरीज बढ़ जाते हैं-डॉ शशिकांत भास्कर, छाती रोग विशेषज्ञ व सहायक प्राध्यापक

हर रोज 30 प्रतिशत सांस की बीमारी के मरीज: शशिकांत भास्कर बताते हैं कि कोरबा में AQI का स्तर चिंताजनक है. यह काफी घातक है. खास तौर पर ठंड के मौसम में सांस से संबंधित बीमारी वाले मरीज ज्यादा बढ़ते हैं. इनमें पुराने मरीज ज्यादा परेशान रहते हैं. भास्कर का कहना है कि हर रोज मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 500 से 600 मरीज ओपीडी में दर्ज किए जाते हैं. इनमें से लगभग 30 फीसदी लोग सांस और छाती की बीमारी से ग्रसित होते हैं.

खतरनाक स्तर पर कोरबा का प्रदूषण, ठंड में साल दर साल AQI बेहद खराब: साल 2022 में छत्तीसगढ़ के स्टेट हेल्थ रिसोर्स सेंटर की जारी रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि कोरबा की हवा में प्रदूषण मानक निर्धारित पैमाने से 28 गुना ज्यादा है. राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र की रिपोर्ट में पुराने शहर के रानी धनराज कुंवर अस्पताल के आसपास पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 का स्तर यानी 265 से ज्यादा मिला था. इसका कारण आसपास के आसपास के इलाके में बड़े पैमाने पर कोयला जलाया जाना है.

इस रिपोर्ट में पुष्टि की गई कि पीएम 2.5 का स्तर काफी चिंताजनक है. यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक हो सकता है. राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र (SHRC) ने शोध के लिए कोरबा से मार्च 2021 से जून 2021 के बीच 14 सैंपल लिये थे. जांच के लिए भेजे गए सैंपल में भारी मात्रा में हानिकारक सिलिका, निकिल, सीसा और मैग्नीज के कण पाए गए. इसी तरह जनवरी 2023 में सीपीसीबी (Central pollution control board) की तरफ से स्थापित ऊर्जानगर स्टेशन से कोरबा का AQI 313 दर्ज किया गया था. मई में भी AQI 240 दर्ज हुआ. दिसंबर 2024 में भी AQI 250 के आसपास दर्ज किया गया.

इस तरह से की जाती है AQI की गणना : पीएम का मतलब होता पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 और 10 इस मैटर या कण का आकार होता है. साधारण कण नाक में घुसकर म्यूकस में मिल जाता है, जिसे हम साफ कर सकते हैं. लेकिन पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10 का आकार इतना छोटा होता है कि अदृश्य होने के कारण हम इसे साफ नहीं कर सकते और यह बहुत हानिकारक होता है. पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10 माइक्रोस्कोपिक डस्ट पार्टिकल होते हैं. यानी इतने सूक्ष्म कि देखने के लिए माइक्रोस्कोप यानी सूक्ष्मदर्शी की जरूरत पड़ जाए. हालांकि इनका हमारे शरीर में घुसना और नुकसान पहुंचाना बहुत आसान होता है.

इस वजह से कोरबा का AQI खराब: हवा में पीएम 2.5 और 10 की मात्रा कितनी है, इससे एयर क्वालिटी इंडेक्स(AQI) का निर्धारण किया जाता है. कोरबा के कई क्षेत्रों में पीएम 2.5 की मात्रा सबसे ज्यादा है. इसके लिए औद्योगिक प्रदूषण भी एक अहम कारण है. चिमनी से निकलने वाला धुआं या फिर बिजली उत्पादन के दौरान पावर प्लांट से उत्सर्जित राख हो, इसे उचित तरीके से निपटान नहीं किये जाने से ये राख हवा में घुल रही है. इसी तरह कोयला लेकर परिवहन करने वाले ट्रक और खराब सड़कों से उड़ने वाली धूल हवा में मिल रही है. इससे भी कोयलांचल में प्रदूषण का स्तर काफी चिंताजनक हो गया है.

सांसद ने कोरबा के प्रदूषण का मुद्दा लोकसभा में उठाया : संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान कोरबा सांसद ज्योत्सना महंत ने कोरबा के प्रदूषण का मुद्दा लोकसभा में उठाया. उन्होंने संबंधित विभाग के मंत्री से प्रश्न पूछते हुए कहा था कि कोरबा औद्योगिक शहर है, यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 तक पहुंच गया है. जो काफी चिंताजनक है, कोरबा दिल्ली से भी ज्यादा प्रदूषण है. कोरबा के लोग अस्थमा जैसी खतरनाक सांस की बीमारियों से पीड़ित हैं. इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन प्रदूषण कम करने के लिए ठोस पहल नहीं किये जा रहे हैं?

जिसके जवाब में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि प्रदूषण का कारण उद्योग हैं. प्रदूषण कम करने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से देश में 130 नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम चलाया जा रहा है. प्रदूषण के रोकथाम के लिए राज्य सरकार जिम्मेदार है.

प्रशासन को लगानी चाहिए रोक : पुराने शहर के निवासी शिव अग्रवाल का कहना है कि कोरबा में बेतहाशा कोयला उपलब्ध है .लोगों को कोयला आसानी से मिल जाता है, लेकिन यह एक तरह से अवैध भी है. खुलेआम खदानों से कोयला लाया जाता है. इसे खपाया जाता है, लोग इसे ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. होटल में भी इस कोयले को जलाकर व्यवसाय के तौर पर ईंधन का इस्तेमाल किया जा रहा है. जो काफी घातक है.

हमारे घर के आस-पास तो शाम होते ही कोहरा छा जाता है. जो कोयला के धुएं से बनता है. बेहद विपरीत परिस्थितियों में जीवन कट रहा है. प्रशासन को चाहिए कि कोयला खरीदने और बेचने वालों पर सख्त कार्रवाई करें. प्रदूषण को कम करने के लिए ठोस पहल की जानी चाहिए जो कि अब तक नहीं हो सकी है.- शिव अग्रवाल, स्थानीय

बिजली उत्पादन के दौरान कोयला का 40 हिस्सा बनता है राख: कोरबा जिले में ना सिर्फ धुआं बल्कि यहां के पावर प्लांट्स से निकालने वाली राख भी बड़ी चुनौती बनी हुई है. जिले में सरकारी, निजी और केंद्र सरकार के कुल मिलाकर 12 पावर प्लांट स्थापित हैं. जिनसे 6000 मेगावाट से ज्यादा बिजली पैदा होती है. छोटी–बड़ी मिलाकर कुल 13 कोयला खदानें मौजूद हैं. बिजली उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान जितना कोयला जलाया जाता है. उसका लगभग 40 प्रतिशत भाग राख बन जाता है. जिसे डंप करने के लिए पावर प्लांट के पास 12 राखड़ डैम हैं.

साल भर के दौरान कोरबा जिले में लगभग 3 करोड़ टन कोयले की खपत होती है. इससे करीब डेढ़ करोड़ टन राख निकलती है. लेकिन राख यूटिलाइजेशन के मामले में केंद्रीय सरकार के मापदंडों को पूरा नहीं किया जाता. ज्यादातर पावर प्लांट शत प्रतिशत राख का यूटिलाइजेशन नहीं कर पाते. जो कोरबा जैसे प्रदूषित शहर में एक बड़ा मुद्दा है.

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कोयला जलाने से कोरबा में बढ़ रहा प्रदूषण: रेलवे स्टेशन के पास बसे संजय नगर की स्लम बस्ती समेत आसपास के इलाके में मजदूरों के परिवार खाना पकाने के लिए बड़े पैमाने पर ईंधन के रूप में कोयला जलाते हैं. इसी कोयले से यह धुआं पूरे कोरबा को धुआं-धुआं कर देता है. न सिर्फ कोरबा शहर के पास बल्कि गेवरा, दीपका, कुसमुंडा से लेकर उपनगरीय क्षेत्र की स्लम बस्तियों का भी कमोबेश एक जैसा हाल है. ठंड के मौसम में ये धुआं हवा के साथ मिलकर वातावरण को लगातार प्रदूषित कर रहा है.

कोरबा में प्रदूषण (ETV Bharat)
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एयर क्वालिटी इंडेक्स का निर्धारण (ETV Bharat Chhattisgarh)
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एयर क्वालिटी इंडेक्स का निर्धारण (ETV Bharat Chhattisgarh)
Korba AQI
कोरबा में चारों तरफ धुआं ही धुआं (ETV Bharat Chhattisgarh)
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सिगड़ी के धुएं से बढ़ रही बीमारियां (ETV Bharat Chhattisgarh)

कोरबा में आसानी से मिल जाता है कोयला: कोरबा जिले में भरपूर कोयला उत्पादन होता है. देश में कोयले की वजह से ही कोरबा की पहचान है. गेवरा, दीपका कुसमुंडा कोल इंडिया लिमिटेड की सबसे बड़ी परियोजनाएं हैं. यहां देश की सबसे बड़ी खुली खदानें भी हैं. यहां लोगों को आसानी से और 50 से 250 रुपये बोरी के हिसाब से कोयला मिल भी जाता है. खदान और रेलवे स्टेशन के आसपास के लोग कोयला मुफ्त में भी अपने घर ले आते हैं और इसी पर खाना पकाते हैं.

Korba AQI
कोरबा में कोयले की खदानों से आसानी से मिल जाता है कोयला (ETV Bharat Chhattisgarh)

स्मोकलेस कोरबा अभियान नहीं हुआ साकार: कोरबा के तत्कालीन कलेक्टर पी दयानंद ने साल 2017 के आसपास स्मोक लेस कोरबा अभियान शुरू किया था. जिसके तहत सिगड़ी पर कोयले से खाना पकाने वाले परिवार को गैस सिलेंडर दिए जाने की योजना थी. केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना भी है. लेकिन यह योजनाएं भी कोरबा जिले को कोयले के धुएं से मुक्ति नहीं दिला सकीं और स्मोकलेस कोरबा अभियान की परिकल्पना भी साकार नहीं हो सकी.

Korba AQI
छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल (ETV Bharat Chhattisgarh)

लगातार बढ़ रहे सांस के मरीज: मेडिकल कॉलेज अस्पताल के छाती रोग विशेषज्ञ व सहायक अध्यापक डॉ. शशिकांत भास्कर कहते हैं कि ठंड के मौसम में प्रदूषण की स्थिति ज्यादा चिंताजनक हो जाती है. पर्टिकुलर मैटर हवा के साथ मिलकर फॉग और स्मॉग का निर्माण करते हैं. जिससे कई बार सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है. वे बताते हैं कि सिगड़ी से निकलने वाला धुआं कोरबा में प्रदूषण को और बढ़ा रहा है.

सिगड़ी का धुआं तुरंत ऊपर नहीं जाता है. वह नीचे ही रहता है. इस वजह से सिगड़ी का धुआं श्वास नली में ज्यादा जाता है. इस वजह से ठंड में सांस से संबंंधित मरीज बढ़ जाते हैं-डॉ शशिकांत भास्कर, छाती रोग विशेषज्ञ व सहायक प्राध्यापक

हर रोज 30 प्रतिशत सांस की बीमारी के मरीज: शशिकांत भास्कर बताते हैं कि कोरबा में AQI का स्तर चिंताजनक है. यह काफी घातक है. खास तौर पर ठंड के मौसम में सांस से संबंधित बीमारी वाले मरीज ज्यादा बढ़ते हैं. इनमें पुराने मरीज ज्यादा परेशान रहते हैं. भास्कर का कहना है कि हर रोज मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 500 से 600 मरीज ओपीडी में दर्ज किए जाते हैं. इनमें से लगभग 30 फीसदी लोग सांस और छाती की बीमारी से ग्रसित होते हैं.

खतरनाक स्तर पर कोरबा का प्रदूषण, ठंड में साल दर साल AQI बेहद खराब: साल 2022 में छत्तीसगढ़ के स्टेट हेल्थ रिसोर्स सेंटर की जारी रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि कोरबा की हवा में प्रदूषण मानक निर्धारित पैमाने से 28 गुना ज्यादा है. राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र की रिपोर्ट में पुराने शहर के रानी धनराज कुंवर अस्पताल के आसपास पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 का स्तर यानी 265 से ज्यादा मिला था. इसका कारण आसपास के आसपास के इलाके में बड़े पैमाने पर कोयला जलाया जाना है.

इस रिपोर्ट में पुष्टि की गई कि पीएम 2.5 का स्तर काफी चिंताजनक है. यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक हो सकता है. राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र (SHRC) ने शोध के लिए कोरबा से मार्च 2021 से जून 2021 के बीच 14 सैंपल लिये थे. जांच के लिए भेजे गए सैंपल में भारी मात्रा में हानिकारक सिलिका, निकिल, सीसा और मैग्नीज के कण पाए गए. इसी तरह जनवरी 2023 में सीपीसीबी (Central pollution control board) की तरफ से स्थापित ऊर्जानगर स्टेशन से कोरबा का AQI 313 दर्ज किया गया था. मई में भी AQI 240 दर्ज हुआ. दिसंबर 2024 में भी AQI 250 के आसपास दर्ज किया गया.

इस तरह से की जाती है AQI की गणना : पीएम का मतलब होता पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 और 10 इस मैटर या कण का आकार होता है. साधारण कण नाक में घुसकर म्यूकस में मिल जाता है, जिसे हम साफ कर सकते हैं. लेकिन पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10 का आकार इतना छोटा होता है कि अदृश्य होने के कारण हम इसे साफ नहीं कर सकते और यह बहुत हानिकारक होता है. पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10 माइक्रोस्कोपिक डस्ट पार्टिकल होते हैं. यानी इतने सूक्ष्म कि देखने के लिए माइक्रोस्कोप यानी सूक्ष्मदर्शी की जरूरत पड़ जाए. हालांकि इनका हमारे शरीर में घुसना और नुकसान पहुंचाना बहुत आसान होता है.

इस वजह से कोरबा का AQI खराब: हवा में पीएम 2.5 और 10 की मात्रा कितनी है, इससे एयर क्वालिटी इंडेक्स(AQI) का निर्धारण किया जाता है. कोरबा के कई क्षेत्रों में पीएम 2.5 की मात्रा सबसे ज्यादा है. इसके लिए औद्योगिक प्रदूषण भी एक अहम कारण है. चिमनी से निकलने वाला धुआं या फिर बिजली उत्पादन के दौरान पावर प्लांट से उत्सर्जित राख हो, इसे उचित तरीके से निपटान नहीं किये जाने से ये राख हवा में घुल रही है. इसी तरह कोयला लेकर परिवहन करने वाले ट्रक और खराब सड़कों से उड़ने वाली धूल हवा में मिल रही है. इससे भी कोयलांचल में प्रदूषण का स्तर काफी चिंताजनक हो गया है.

सांसद ने कोरबा के प्रदूषण का मुद्दा लोकसभा में उठाया : संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान कोरबा सांसद ज्योत्सना महंत ने कोरबा के प्रदूषण का मुद्दा लोकसभा में उठाया. उन्होंने संबंधित विभाग के मंत्री से प्रश्न पूछते हुए कहा था कि कोरबा औद्योगिक शहर है, यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 तक पहुंच गया है. जो काफी चिंताजनक है, कोरबा दिल्ली से भी ज्यादा प्रदूषण है. कोरबा के लोग अस्थमा जैसी खतरनाक सांस की बीमारियों से पीड़ित हैं. इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन प्रदूषण कम करने के लिए ठोस पहल नहीं किये जा रहे हैं?

जिसके जवाब में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि प्रदूषण का कारण उद्योग हैं. प्रदूषण कम करने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से देश में 130 नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम चलाया जा रहा है. प्रदूषण के रोकथाम के लिए राज्य सरकार जिम्मेदार है.

प्रशासन को लगानी चाहिए रोक : पुराने शहर के निवासी शिव अग्रवाल का कहना है कि कोरबा में बेतहाशा कोयला उपलब्ध है .लोगों को कोयला आसानी से मिल जाता है, लेकिन यह एक तरह से अवैध भी है. खुलेआम खदानों से कोयला लाया जाता है. इसे खपाया जाता है, लोग इसे ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. होटल में भी इस कोयले को जलाकर व्यवसाय के तौर पर ईंधन का इस्तेमाल किया जा रहा है. जो काफी घातक है.

हमारे घर के आस-पास तो शाम होते ही कोहरा छा जाता है. जो कोयला के धुएं से बनता है. बेहद विपरीत परिस्थितियों में जीवन कट रहा है. प्रशासन को चाहिए कि कोयला खरीदने और बेचने वालों पर सख्त कार्रवाई करें. प्रदूषण को कम करने के लिए ठोस पहल की जानी चाहिए जो कि अब तक नहीं हो सकी है.- शिव अग्रवाल, स्थानीय

बिजली उत्पादन के दौरान कोयला का 40 हिस्सा बनता है राख: कोरबा जिले में ना सिर्फ धुआं बल्कि यहां के पावर प्लांट्स से निकालने वाली राख भी बड़ी चुनौती बनी हुई है. जिले में सरकारी, निजी और केंद्र सरकार के कुल मिलाकर 12 पावर प्लांट स्थापित हैं. जिनसे 6000 मेगावाट से ज्यादा बिजली पैदा होती है. छोटी–बड़ी मिलाकर कुल 13 कोयला खदानें मौजूद हैं. बिजली उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान जितना कोयला जलाया जाता है. उसका लगभग 40 प्रतिशत भाग राख बन जाता है. जिसे डंप करने के लिए पावर प्लांट के पास 12 राखड़ डैम हैं.

साल भर के दौरान कोरबा जिले में लगभग 3 करोड़ टन कोयले की खपत होती है. इससे करीब डेढ़ करोड़ टन राख निकलती है. लेकिन राख यूटिलाइजेशन के मामले में केंद्रीय सरकार के मापदंडों को पूरा नहीं किया जाता. ज्यादातर पावर प्लांट शत प्रतिशत राख का यूटिलाइजेशन नहीं कर पाते. जो कोरबा जैसे प्रदूषित शहर में एक बड़ा मुद्दा है.

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