पटना :लोक आस्था का महापर्व छठ बिहार की पहचान है. छठ के कई दिनों पूर्व से ही चारों तरफ छठ के गीत बजने लगते हैं. बिना छठ गीत के छठ अधूरा सा लगता है. हर साल गायक नए-नए छठ के गाने लेकर आते हैं. हालांकि छठ के जो पुराने लोकगीत हैं, उनकी मिठास अलग ही है. छठ के समय जब 'केरवा के पात पर, उगs हो सूरज देव भईल अरग के बेर' जैसे लोकगीत बजते हैं तो छठ पर्व जीवंत हो जाता है.
गंगा तीरे छठ गीतों का मिठास :छठ के लोकगीतों में पूरे छठ पर्व का बखान होता है. ऐसे ही बिहार की उभरती लोक गायिका हैं हनी प्रिया, जो अपनी सुरीली आवाज में छठ गीतों के माध्यम से छठ के माहौल में मिठास घोल रही हैं. हनी बताती हैं कि अन्य पर्व त्योहार में चाहे जो हो, लेकिन छठ की परंपराओं को युवा वर्ग काफी संजीदगी से लेते हैं.
''कितने भी नए छठ गीत क्यों ना आ जाए, लेकिन जो छठ के लोकगीत हैं वह अद्वितीय है. छठ पर्व के हर विधान पर लोकगीत है. छठ पर्व हमें प्रकृति से जुड़ना सीखाता है और साफ सफाई का महत्व बताता है. जल जीवन होता है, तो नदी किनारे स्वच्छता का प्रतीक है छठ पर्व, जिसमें छठ पर्वों को लेकर नदी किनारे घाटों की सफाई होती है.''-हनी प्रिया, लोक गायिका
'यह एक अलग अहसास है' :गंगा में नाव पर बैठकर गीत गाते हुए हनी बताती हैं कि छठ पर्व का जब समय आता है तो किसी का भी मन अपने घर से दूर नहीं लगता है. सभी चाहते हैं कि कैसे जल्द से जल्द अपने घर चले जाएं और पूरा छठ का पर्व घर पर मनाएं. छठ मनाने के लिए परिवार के साथ ही जो दूसरे जगह पर काम के सिलसिले में रहते हैं, सभी आते हैं और एकजुट होते हैं. यह एक अलग अहसास है, जिसमें भावनाओं का उबाल होता है. कोई कभी अपने घर आए चाहे ना आए छठ के समय जरूर आना चाहता है.