लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की स्थापना 1984 में कांशीराम ने की थी. दलितों और वंचितों को उनका हक दिलाने के लिए कांशीराम ने पार्टी बनाई और राजनीति में उतरे थे. अपने 40 साल के इतिहास में बसपा ने कभी भी फुल फ्लेज उपचुनाव में अपने प्रत्याशी नहीं उतारे, पर लोकसभा चुनाव 2024 के बाद होने वाले उपचुनाव में बसपा अपने प्रत्याशी उतारेगी. इसका ऐलान खुद मायावती ने कर दिया है.
हालांकि लोकसभा चुनाव 2024 के साथ हुए विधानसभा उपचुनाव में यूपी की 4 सीटों पर पार्टी ने अपने प्रत्याशी उतारे थे और इसी तरह से विगत वर्षों में एक आधी सीटों पर हुए बाई इलेक्शन की बात छोड़ दे जाए तो बसपा पहली बार पूरी तैयारी तथा दमखम के साथ उपचुनाव लड़ने जा रही है. लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में विधायक जीतकर सांसद बन गए हैं. ऐसे में उनकी विधानसभा सीट अब खाली हो गई हैं. इन पर अब उपचुनाव होना है. हालांकि, चुनाव आयोग ने अभी इसकी तारीख की घोषणा नहीं की है लेकिन, राजनीतिक दलों ने अभी से अपने उम्मीदवार और रणनीति तैयार करने पर मंथन करना शुरू कर दिया है.
मायावती ने उपचुनाव लड़ने का क्यों लिया फैसला:दरअसल, बसपा का वर्ष 2009 से 2019 तक प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है. लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा, सभी में वह पहले स्थान से लेकर दूसरे स्थान पर रही. उसका वोट प्रतिशत भी काफी अच्छा रहा. इसी के आधार पर बसपा को राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा प्राप्त हो गया था.
बसपा का घटता गया वोट बैंक: लेकिन, लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा धड़ाम हो गई. जिस तरह से बसपा का वोट घटता जा रहा है, उससे उसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खतरे पड़ता दिख रहा है. बता दें कि 2022 विधानसभा चुनाव में बसपा को 12.88 फीसदी वोट मिले थे. जबकि 2024 में बसपा का वोट प्रतिशत मात्र 9.38 फीसद रह गया है. जो कभी 20 फीसद से ज्यादा रहता था.
कांग्रेस के मजबूत होने से बसपा को खतरा: अपने गोल्डन पीरियड में बसपा जहां मजबूत होती गई वहीं, कांग्रेस का पतन होता गया. लेकिन, लोकसभा चुनाव 2024 में यूपी में कांग्रेस के बढ़ने से बसपा के अस्तित्व पर संकट आ गया है. वर्ष 2019 में बसपा का सपा-रालोद से गठबंधन था और पार्टी 38 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, तब 10 सांसद जीते थे.
बसपा का एक फैसला, उसे गर्त में ले गया: बसपा ने इस बार गठबंधन नहीं करके सबसे बड़ी गलती की. इसके बाद दूसरी बड़ी गलती आकाश आनंद को पद और प्रचार से हटाकर की. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार आकाश आनंद पर कार्रवाई से एक संदेश गया कि बसपा इस चुनाव में भाजपा की बी टीम के रूप में काम कर रही है. जबकि ऐसा था नहीं.
बसपा का कोर वोटर छिटक कर किसके पाले में गया: इसका नतीजा ये हुआ कि बसपा का वोटर छिटक गया. वहीं, भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर और संविधान बदलने वाला प्रचार तेजी से काम कर रहा था. इसके चलते बसपा का कोर वोटर भाजपा की बजाय सपा-कांग्रेस के पाले में चला गया. इसका भी नुकसान बसपा को हुआ, जिससे दलित वोट बिखर गया. उसका फायदा विपक्षी दलों को हुआ. जितनी भी सीट सपा और कांग्रेस ने जीती हैं, उनमें बसपा के वोट बैंक ने बहुत काम किया है.
उपचुनाव में बसपा के उतरने से बनेंगे नए समीकरण:लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा का वोटर छिटक कर सपा-कांग्रेस के पाले में चला गया. माना जा रहा है कि बसपा सुप्रीमो मायावती की भतीजे आकाश आनंद पर बड़ी कार्रवाई से पार्टी से समर्थक नाराज हो गए थे. इसके चलते वो चुनाव में बसपा के साथ नहीं रहे.