पटनाः बिहार में विशेष भू सर्वेक्षण का काम चल रहा है. 38 जिला के सभी 445 प्रखंड में यह काम चल रहा है. 45130 गांव में विशेष भू सर्वेक्षण से जुड़े हुए लोग इस काम को कर रहे हैं. लेकिन, जमीन सर्वे में कैथी लिपि में लिखे गये दस्तावेज से लोगों की परेशानी बढ़ गयी है. बिहार भूमि सर्वे में लगे अधिकतर कर्मचारियों को कैथी लिपि का ज्ञान नहीं है. इलाके में इस लिपि के जानकार भी कम हैं. ऐसे में जमीन के दस्तावेज में लिखे गये तथ्यों की जानकारी पाना एक बड़ी समस्या बन गयी है.
कैसे समझा जाए दस्तावेज कोः आजादी से पहले 1910 में अंग्रेजों के शासनकाल में जमीन का सर्वेक्षण हुआ था. उसे समय जो खतियान या दस्तावेज बना था वह कैथी लिपि में बनाया गया था. पुराने जो भी दस्तावेज या जमीन से जुड़े हुए खतियान कागजात हैं वो कैथी लिपि में लिखी हुई है. उस लिपि को जानने वाले लोगों को नहीं मिल रहे हैं. यही कारण है कि दस्तावेज में क्या लिखा हुआ है, यह जानकारी पाने के लिए लोग भटक रहे हैं.
अनुवादक ने बढ़ा दी फीसः दरभंगा के बिहारी गांव के रहने वाले अजय कुमार झा 15 बीघा जमीन के मालिक हैं. जमीन की रसीद हर साल कटवाया है. लेकिन अब जब सर्वे शुरू हुआ है तो कई परेशानी सामने आ रही है. दस्तावेज कैथी लिपि में है और देवनागरी में अनुवाद करने वाला नहीं मिल रहा है. पूरे जिले में कैथी लिपि के तीन जानकार अभी तक मिले हैं. पहले अनुवाद के लिए प्रति पेज 500 रु मांगते थे, लेकिन अब एक खतियान के अनुवाद के 15 से 20 हजार रुपये की मांग कर रहे हैं.
क्या है कैथी लिपिः कैथी भाषा (कैथी लिपि) एक ऐतिहासिक लिपि है. जिसका प्रयोग मध्यकालीन भारत में मुख्य रूप से पूर्वोत्तर और उत्तर भारत में किया जाता था. उत्तर प्रदेश और बिहार के इलाकों में भी इस लिपि में कानूनी और प्रशासनिक कार्य किए जाने के प्रमाण मिलते हैं. इसे "कायथी" या "कायस्थी" के नाम से भी जाना जाता है. पूर्व उत्तर-पश्चिम प्रांत, मिथिला, बंगाल, उड़ीसा और अवध में इसका प्रयोग होता था.
राजकीय लिपि के रूप में मान्यताः बिहार विधान परिषद के नोडल अधिकारी और कैथी लिपि के जानकार भैरव लाल दास ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि कैथी लिपि देश की प्राचीन लिपि के रूप में जानी जाती है. 1540 में शेरशाह सूरी के शासन काल में कैथी लिपि को सरकारी दस्तावेज की लिपि के रूप में मान्यता मिली थी. सरकारी दस्तावेज कैथी लिपि में ही लिखे जाते थे. भैरव लाल दास ने कहा कि रैयतों से संबंधित जितने भी कागजात हैं वह सब कैथी लिपि में थे.
धीरे-धीरे समाप्त हो रहीः कैथी लिपि बिहार की आत्मा थी. यहां के जितने भी दस्तावेज हैं सब कैथी लिपि में लिखी हुई है. लेकिन इसके साथ दुर्भाग्य यह हुआ कि मुगल काल से लेकर अंग्रेजों के काल तक अपने-अपने भाषा को बढ़ावा देने के कारण कैथी लिपि धीरे-धीरे समाप्त होती गयी. कैथी लिपि के समाप्त होने का सबसे ज्यादा घाटा बिहार को हुआ. लोगों के पास जमीन के दस्तावेज तो हैं लेकिन वह कैथी लिपि में लिखी है, जो लोग पढ़ नहीं पा रहे हैं.