जयपुर: खेल जगत में खास उपलब्धियों के लिए दिए जाने वाले अर्जुन पुरस्कारों की घोषणा की पहली सुबह पैराशूटर मोना अग्रवाल रोजमर्रा की तरह अपने घर और बच्चों में व्यस्त रहीं. ईटीवी भारत की टीम जब उनसे मिलने पहुंची, तो वह अस्पताल से अपने बच्चों को दिखाने के बाद घर पहुंची थी. मोना अग्रवाल ने बताया कि उनके बच्चों को जुखाम हुआ था. 2 साल की उम्र में पोलियो होने के बाद भी मोना ने हर नहीं मानी और खेल को अपने जीने की राह के विकल्प के रूप में चुन लिया.
अपने लिए अर्जुन अवार्ड की घोषणा पर उन्होंने कहा कि 2025 में उनके लिए यह है एक बेहतरीन तोहफा साबित हुआ है. मोना अग्रवाल इस बात को लेकर खुश हैं कि उनकी इस मेहनत को दुनिया ने देखा और समझा है. वहीं, इस मौके पर ईटीवी भारत के ब्यूरो चीफ अश्विनी विजय प्रकाश पारीक ने उनसे खास बात की और संघर्ष की कहानी को जाना.
शारीरिक चुनौतियों से नहीं मानी हार : निशानेबाज के रूप में अपने खेल करियर में मोना अग्रवाल को अभी ढाई साल का वक्त बीता है. इस छोटी सी मियाद में उन्होंने ओलंपिक में अपने पहले ही ओलंपिक मुकाबले में कांस्य पदक जीत लिया और अर्जुन अवार्ड के लिए नामित हो गई. मोना बताती हैं कि साल 2016 में उन्होंने खेलों को अपने करियर के रूप में चुना था.
पहले वह अलग-अलग खेलों में कोशिश करती रहीं, लेकिन शारीरिक चुनौतियों के आगे उन्हें निशानेबाजी मुफीद लगी और फिर उन्होंने ढाई साल से इस खेल में फोकस किया और ओलंपिक में कामयाबी हासिल की. मोना कहती है कि जब यह महसूस होता है कि आपके पास अब और कोई विकल्प नहीं है, तो फिर हिम्मत खुद ब खुद आ जाती है. उन्होंने भी करना है या मरना है की तर्ज पर शूटिंग में कामयाबी अर्जित की.
ससुराल का भी मिला साथ : मोना अग्रवाल के मुताबिक उनकी सफलता में ससुराल वालों का भी पूरा हाथ रहा है. उनकी बच्चों की पूरी देखभाल करती है. मोना बताती हैं कि उनके लिए ट्रेनिंग काफी मुश्किल रही थी. कुछ वक्त के लिए उन्हें परिवार से अलग भी रहना पड़ा. इस दौरान बच्चे छोटे थे और पति के सिर में चोट लगी थी, लेकिन सास-ससुर ने उनके इस संघर्ष में पूरा सहयोग किया. मोना बताती हैं कि उनकी बेटी आर्मी थोड़ी बड़ी हो गई है तो फिर भी उन्हें मां के साथ रहने की चिंता सताती है, लेकिन बेटा अभी काफी छोटा है. वह खाने-पाने की चीजों और खेल-खिलौने से बहक जाता है और उन्हें ऐसे में अपनी तैयारी के लिए वक्त मिल जाता है.