पटना:बिहार केएएन सिंहा इंस्टीट्यूट ने पीएचडी की अवधि घटाकर 3 साल कर दी है. किसी भी छात्र को एक्सटेंशन नहीं दिया जाएगा. विशेष परिस्थितियों में तीन सदस्य कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर एक्सटेंशन दिया जा सकता है. जिन छात्रों को एक्सटेंशन नहीं मिलेगा, उन्हें हॉस्टल खाली करना होगा और वे संस्थान में कंटिन्यू नहीं कर सकेंगे. यूजीसी के नियमों के अनुसार, पीएचडी के लिए छात्रों को 6 साल का समय दिया जाता है. संस्थान के नए नियम से प्राध्यापक और छात्र हैरान हैं.
नये नियम से छात्र हैरानः शिक्षा विभाग के सचिव द्वारा जारी पत्र के बाद यह फैसला लिया गया है. एएन सिंहा इंस्टीट्यूट में कुल 55 शोध छात्रों के लिए जगह है. जिसमें 60 से 70% छात्राएं रहती हैं. फिलहाल 35 छात्र-छात्राएं शोध कर रहे हैं. संस्थान के छात्रों का रजिस्ट्रेशन आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी में होता है. रजिस्ट्रेशन होने में डेढ़ से 2 साल का वक्त लग जाता है. 3 साल में पीएचडी की डिग्री नहीं पूरी करने पर छात्रों को हॉस्टल खाली करने और पीएचडी की रजिस्ट्रेशन रद्द करने की धमकी दी जा रही है.
क्या है यूजीसी का नियमः यूजीसी के नियमों के मुताबिक पीएचडी करने के लिए छात्रों को 6 साल का समय दिया जाता है इस दौरान उन्हें शोध कार्य पूरे करने होते हैं. आर्यभट्ट नॉलेज विश्वविद्यालय का नियम भी यही कहता है. हर 6 महीने पर डिपार्टमेंटल रिसर्च काउंसिल के द्वारा छात्रों का मूल्यांकन किया जाता है और रिपोर्ट के आधार पर शोध का प्रोग्रेस आकलन किया जाता है. यूजीसी के द्वारा 6 वर्ष निर्धारित है. महिलाओं को 2 वर्ष का एक्सटेंशन दिया जा सकता है. पुरुष छात्रों के एक्सटेंशन को लेकर कुलपति के निर्देश पर निर्भर करता है.
छह साल से निदेशक नहीं: बिहार का सबसे चर्चित शोध संस्थान एएन सिंहा इंस्टीट्यूट में लंबे अरसे से पूर्ण कालिक निदेशक नहीं है. पिछले 6 साल से निदेशक के पद पर किसी पूर्ण कालिक डायरेक्टर की नियुक्ति नहीं हुई है. तीन बार विज्ञापन निकाले गए. 2018, 2019 और 2021 में विज्ञापन निकाले गए लेकिन आज तक प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी. शिक्षा विभाग के सेक्रेटरी स्तर के अधिकारी यहां के अतिरिक्त प्रभार रहते हैं. पूर्णकालिक निदेशक नहीं होने के चलते कई तरह के प्रशासनिक कार्य अधर में है.