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..जब मोकामा में हुई बाहुबलियों की एंट्री, बड़े सरकार से लेकर छोटे सरकार की पूरी कहानी यहां जानें - GANGS OF MOKAMA

बिहार के मोकामा में बाहुबलियों की एंट्री कब और कैसे हुई. कांग्रेस के पूर्व विधायक श्याम सुंदर सिंह धीरज की उसमें क्या भूमिका रही जानें..

gangs of Mokama
मोकामा के बाहुबली (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jan 27, 2025, 7:31 PM IST

पटना: बिहार का मोकामा हमेशा से सुर्खियों में रहा है. बिहार की राजनीति में बाहुबल के प्रभाव को लेकर यह कहा जाता है कि बेगूसराय से सटे इस इलाके से शुरुआत हुई. 90 के दशक से लेकर अब तक इस विधानसभा में सिर्फ बाहुबलियों का ही प्रभाव देखने को मिल रहा है. बाहुबली दिलीप सिंह से लेकर अनंत सिंह इसके उदाहरण हैं.

अनंत सिंह गोलीकांड से सुर्खियों में मोकामा: मोकामा एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है. 20 वर्षों के बाद फिर से मोकामा में गोलीबारी की आशंका बन गई है. बाहुबली नेता और पूर्व विधायक अनंत सिंह को उनके शागिर्द ने ही चुनौती दे दी है. बाहुबली अनंत सिंह और सोनू - मोनू सिंह के समर्थक पिछले कुछ दिनों से एक दूसरे के खिलाफ हो गए हैं.

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ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

अनंत सिंह और सोनू-मोनू समर्थकों के बीच फायरिंग: स्थिति तो ऐसी आ गई की सोनू मोनू से बातचीत करने के लिए छोटे सरकार को उसके घर जाना पड़ा. लेकिन छोटे सरकार ने सोचा भी नहीं होगा कि जो व्यक्ति कभी उनके स्वागत में फूल माला लेकर खड़े रहते थे, वह इस बार उनका स्वागत गोलियों से करेंगे.

क्या था मामला: 22 जनवरी को मोकामा के नौरंगा जलालपुर गांव में बाहुबली नेता अनंत सिंह के समर्थकों और सोनू-मोनू गैंग के बीच गोलीबारी हुई थी. अनंत सिंह का कहना था कि उन्हीं के गांव के एक व्यक्ति के घर पर सोनू मोनू ने ताला लगा दिया था. जिसको लेकर वह लोग उनसे मिलने के लिए आए थे और उन्हीं के कहने पर सोनू मोनू को समझने के लिए वह नौरंगा जलालपुर गए थे. उनके गांव पहुंचते ही दोनों पक्षों के बीच फायरिंग और 100 राउंड से अधिक राउंड फायरिंग की बात कही जा रही है.

छोटे सरकार का सरेंडर: दोनों पक्षों के बीच हुई गोलीबारी के बाद दोनों एक दूसरे को दोषी ठहरने वालों. एक दूसरे के ऊपर पहले फायरिंग करने का आरोप लगाया गया. पुलिस ने मामला दर्ज किया और इसका नतीजा यह हुआ की 24 जनवरी को छोटे सरकार यानी अनंत सिंह ने बार सिविल कोर्ट में सरेंडर किया. वहीं पुलिस ने सोनू सिंह को गिरफ्तार कर फुलवारी जेल भेज दिया. लेकिन जिस तरीके से मामला बढ़ रहा है एक बार आशंका फिर हो रही है कि कहीं मोकामा में फिर से पुराना दौर तो वापस नहीं लौट रहा है.

मोकामा की राजनीति पर ईटीवी की पड़ताल: मोकामा की राजनीति में पिछले 25 वर्षों से बाहुबलियों का दबदबा रहा है. मोकामा की राजनीति में बाहुबलियों का प्रभाव कैसे बढ़ा इस बात को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने मोकामा के पूर्व विधायक और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्याम सुंदर सिंह धीरज से खास बातचीत की.

Mokama bahubali
1980 में विधायक बने श्याम सुंदर सिंह धीरज (ETV Bharat)

कौन हैं श्याम सुंदर सिंह धीरज?: श्याम सुंदर सिंह धीरज ने छात्र राजनीति से अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत की. पटना विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान ही उनकी रुचि राजनीति में होने लगी थी और उन्होंने NSUI से छात्र राजनीति की शुरुआत की. श्याम सुंदर सिंह धीरज बिहार की राजनीति में इन गिने चुने नेताओं में शामिल थे, जिनकी सीधी पहुंच संजय गांधी तक थी.

खुद संजय गांधी ने किया था चुनावी प्रचार: बिहार की राजनीति में संजय गांधी के कारण ही 25 वर्ष की अवस्था में इनको मोकामा से 1980 में टिकट मिला और खुद संजय गांधी उनके चुनाव प्रचार करने के लिए मोकामा आए थे. 1980 में विधायक बने. 1985 के विधानसभा चुनाव में भी उनको कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया और उसे चुनाव में भी श्याम सुंदर सिंह धीरज की जीत हुई. श्याम सुंदर सिंह धीरज बिहार सरकार में साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्री भी बने.

मोकामा की राजनीति में बाहुबल: मोकामा की राजनीति में बाहुबल की कैसे एंट्री हुई, इसको लेकर श्याम सुंदर सिंह धीरज ने ईटीवी भारत के साथ खुलकर बातचीत की. उन्होंने बताया कि कैसे क्रांतिकारियों की धरती मोकामा बाहुबलियों के चंगुल में फंसता गया.

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ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

सवाल : मोकामा की राजनीति में एक बात की चर्चा होती थी कि दिलीप सिंह आपके लिए काम करते थे क्या यह सच है?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: देखिए मोकामा की धरती राजनीतिक भूमि रही है. मोकामा का इतिहास बता दें कि आजादी के आंदोलन में सबसे ज्यादा जेल यदि कहीं से गए थे तो उसमें मोकामा एक था. हमारे क्षेत्र में बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानी हुए और आश्चर्य की बात है पहले चुनाव में एक ही कैटेगरी के पांच व्यक्ति दावेदार थे. उन लोगों ने मिलकर तय किया कि किसको चुनाव लड़ना है और जगदीश बाबू पहले एमएलए बने जिनके खिलाफ कोई दूसरा उम्मीदवार खड़ा नहीं हुआ था. वह निर्विरोध चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचने वाले व्यक्ति बने.

'कांग्रेस की मोकामा पर थी मजबूत पकड़': धीरे-धीरे समय बदला अब तो किसी को बाहुबली कहना भी अपने ऊपर थ्रेट को बुलाना जैसा होगा. मोकामा में हमेशा कांग्रेस की लड़ाई कम्युनिस्ट पार्टी से हुई. मोकामा में कभी भी सोशलिस्ट का उदय नहीं हुआ. 1977 में जब जनता पार्टी का पूरे देश में आंधी चल रही थी, उस समय भी मोकामा में कांग्रेस की प्रत्याशी कृष्णा शाही की जीत हुई. उस समय हम लोग भी कांग्रेस के कार्यकर्ता के रूप में चुनाव में सक्रिय थे. यह मोकामा की परिपाटी थी लोगों में पकड़ थी.

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ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

सवाल: 1980 से लेकर 1990 तक आप वहां (मोकामा) के विधायक रहे. 25 साल का श्यामसुंदर सिंह धीरज छात्र राजनीति से निकालकर विधायक का चुनाव लड़ता है जीतता है और मंत्री भी बनता है. लोग यह कहते हैं कि श्यामसुंदर सिंह धीरज का रुतबा इतना था कि दिलीप सिंह और अनंत सिंह जैसे बाहुबली उनके नीचे काम करते थे?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: सबसे पहले तो यह बता दें कि इन लोगों का कल्चर क्या था और इन लोगों का नाम कैसे हुआ. दिलीप सिंह का परिवार कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ा हुआ था. जब वह कम्युनिस्ट में थे और हम कांग्रेस में तो ये लोग हमको कितना मदद किए होंगे आप सोच सकते हैं, इससे ज्यादा हम नहीं बोलेंगे. दिलीप सिंह और अनंत सिंह का परिवार कम्युनिस्ट पार्टी के सपोर्टर थे.

श्याम सुंदर सिंह धीरज ने बताया कि दिलीप सिंह के परिवार की कम्युनिस्ट पार्टी से नाराजगी हुई. इसी बीच 1985 में चुनाव हुआ और वह चुनाव जीत गए थे. उस समय मोकामा में मुन्नीलाल नाम के कम्युनिस्ट पार्टी के बहुत बड़े शूटर थे. उसी के साथ दिलीप सिंह का झगड़ा हुआ. बाद में मुन्नीलाल की हत्या हो गई.

Mokama bahubali
राहुल गांधी के साथ श्याम सुंदर सिंह धीरज (ETV Bharat)

श्याम सुंदर सिंह धीरज ने बताया कि दिलीप सिंह और मुनीलाल का पॉलिटिकल चरित्र एक जैसा था. मोकामा में पॉलिटिक्स में बंदूक की लड़ाई दो कम्युनिस्ट नेताओं के बीच की लड़ाई थी. उस समय इस लड़ाई में कांग्रेस नहीं थी. इस समय दिलीप सिंह उनके यहां आते थे. सिर्फ दिलीप सिंह नहीं और भी कई लोग उनके यहां आने जाने लगे थे.

सवाल: दिलीप सिंह की महत्वाकांक्षा आपके साथ रहकर जगी यह कहा जाता है?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: दिलीप सिंह की महत्वाकांक्षा पर बोलते हुए श्याम सुंदर सिंह धीरज ने कहा कि बिहार के एक मुख्यमंत्री ने दिलीप सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को जगाने का काम किया. क्योंकि उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री को वह शूट नहीं करते थे. दिलीप सिंह आते थे तो उनके यहां रहते थे. लड्डू सिंह नाम के एक मुखिया थे जो कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हुए थे. वह भी हथियार उठाने वालों में से थे. दिलीप सिंह पटना में रहते थे लदमा में नहीं रहते थे.

सवाल: दिलीप सिंह आपसे इसलिए नाराज हुए कि वह आपके पास एक पैरवी के लिए आए थे और आपने मना कर दिया था?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: जो चीज हमें दिमागी तौर पर लगता है कि यह सही नहीं है. हम पैरवी नहीं करते हैं. कोई भी चाहे वह हमारा भाई ही क्यों ना हो रेप का केस हो या मर्डर का केस, हम सिफारिश नहीं करेंगे. किसी की कोई जमीन छीन रहा है या किसी की आवाज कोई दबा रहा है तो हम आज भी उसके खिलाफ आवाज बुलंद करते हैं.

सवाल: रामजीवन सिंह की क्या भूमिका रही दिलीप सिंह को टिकट दिलवाने में?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: दिलीप सिंह को टिकट दिलाने में सिर्फ शंकर सिंह की भूमिका थी. शंकर सिंह पाटलिपुत्र में मेडिकल कॉलेज खोला था. उस समय जगन्नाथ मिश्रा ने उनको राजनीतिक रूप से कमजोर करने के लिए दिलीप सिंह को खड़ा करवाया. यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बनाकर बिहार आए थे.

जगन्नाथ मिश्रा ने अपने समर्थकों को कहा था कि उसको इतना मार मारो की इस फ्लाइट से दिल्ली वापस चला जाए. लेकिन दुर्भाग्य से यह उल्टा हो गया उनके सारे रंगदार भाग गए और उल्टे उनके समर्थकों ने कांग्रेसी चीफ मिनिस्टर के घर को घेर लिया. हमारी पहली लड़ाई उन्हीं से हुई. यही कारण है कि हमसे लड़ाई लड़ने के लिए उन्होंने दिलीप सिंह को आगे किया.

सवाल: मोकामा का इतिहास रहा है कि वहां पर बाहुबलियों को प्रश्रय दिया गया चाहे कामदेव सिंह हो या अन्य बड़े बाहुबली नेता?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: कामदेव सिंह सर पर बोर रखकर उनके गांव मरांची आया करते थे. श्याम सुंदर सिंह धीरज ने बताया कि कामदेव सिंह दिलीप सिंह के पिताजी के यहां उनसे मिलने के लिए आया करते थे. कामदेव सिंह बेगूसराय के रहने वाले थे लेकिन वह मोकामा की राजनीति में कभी हस्तक्षेप नहीं किए.

सवाल: धीरे-धीरे जिस तरीके से 90 के बाद मोकामा में बाहुबलियों का प्रभाव बढ़ा अब तो यही कहा जा रहा है कि मोकामा में सिर्फ बाहुबली ही चुनाव लड़ सकते हैं?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: हम जब मंत्री थे, उस समय कोई भी आदमी मोकामा में उनकी गाड़ी रोक सकता था.चाहे वह किसी भी जात का क्यों ना हो. यदि हमारे लिये अपमानजनक शब्द का वह व्यवहार करता था तो हम उसे बर्दाश्त करते थे. आरक्षण के मसले पर पप्पू यादव के साथ मोकामा में घटना घटी थी, उस समय भी हम यादवों के गांव में जाकर मीटिंग किए थे और भूमिहारों के गांव में जाकर मीटिंग करवा दोनों पक्षों के बीच समझौता करवा. इसका रिकॉर्ड अभी भी थाना में मौजूद है.

सवाल: अनंत सिंह का प्रभाव मोकामा में अब इतना बढ़ गया है कि पिछले लोकसभा चुनाव में कहा जाता है कि ललन सिंह को अपनी जीत के लिए अनंत सिंह को पैरोल पर बाहर निकलना पड़ा?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: पिछले लोकसभा चुनाव में अनंत सिंह के पैरोल पर निकलने का भी ललन सिंह को क्या फायदा हुआ मोकामा में ललन सिंह वोट में पिछड़ गए. मेरे गांव में 15000 वोट है जहां से वह हारे हैं. अन्य जगहों से ललन सिंह को लीड मिली लेकिन मोकामा में उनकी हार हुई है. उनके मित्र सतीश कुमार ने चुनाव के समय ही का दिया था कि मोकामा में इस बार इनको हम सतह पर लाएंगे.

सवाल: मोकामा की राजनीति में अनंत सिंह का ऐसा प्रभाव हो गया कि वह अब छोटे सरकार हो गए हैं?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: कोई भी नेता या आदमी क्रिमिनल से लड़ सकता है प्रशासन से लड़ सकता है. लेकिन प्रशासन क्रिमिनल और पैसा के गठजोड़ से लड़ने की औकात किसी में नहीं है. वैसे ही लोगों में से वह भी एक हैं.

सवाल: आपके बारे में एक चर्चा या होती है कि दिलीप सिंह अनंत सिंह और सूरजभान सिंह सब आपके नीचे काम कर चुके हैं?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: जब हम मंत्री थे उस समय केवल यही तीन आदमी हमारे नीचे काम नहीं किए हुए हैं और भी कई सारे ऐसे व्यक्ति हुए हैं जिनके हम नाम नहीं लेना चाहते जो हमारे यहां आते थे. उस समय भी हम तमाम लोगों को समझाते थे इसको प्रोफेशन मत बनाओ. मोकामा में सबसे पहले आर एस कॉलेज में एक भूमिहार लड़के की हत्या हुई थी. जिस घर के लड़के की हत्या हुई थी उसके प्रतिरोध में दूसरी लड़के की भी हत्या हो गई.

उस समय एक-एक घर जाकर मैंने हाथ जोड़कर यह से अपील की थी इसे कानूनी रूप से लड़ी है. इस बात को दूसरा रूप मत दीजिए. मैंने समझाया कि पहली हत्या झगड़े में हुई, लेकिन दूसरी हत्या सुनियोजित तरीके से हुई है. यदि इस सिलसिला को हम नहीं रोकेंगे तो मोकामा हथियारों का जगह बन जाएगा. यह बात हमने 1985 से पहले मोकामा के लोगों से मोलदियार टोला में जा जाकर कहा था. लेकिन काल के कपाल पर जो लिखा जाता है वही होता है.

सवाल - कहा जाता है कि श्याम सुंदर सिंह धीरज को देखकर ही वहां के बाहुबली ने राजनीति का ककहरा सीखा. ऐसा कहा जाता है कि बाहुबलियों को लगा कि जब हम आपके लिए काम कर सकते हैं तो अपने लिए भी कर सकते हैं.

श्याम सुंदर सिंह धीरज: मैंने पहले ही कहा था कि राजनीति में तीन गठजोड़ होते हैं. यह जितने भी बिहार के बाहुबली हैं, यह किसी नेता के कारण ही बने हैं. सत्ता के शीर्ष पर बैठा हुआ आदमी जब किसी व्यक्ति से नहीं जीतता है तो ऐसे ही लोगों की खोज करता है. जिसके पीछे पैसा भी होता है जिसके पीछे प्रशासन होता है और नेता भी होते हैं. बिहार में केवल मोकामा ही इसका अपवाद नहीं है. 25 से 30 ऐसे सीट इसके उदाहरण है. इन जगहों के नेताओं को हराने के लिए जो पॉपुलर वोट से नहीं हारने वाले हैं तो उसके लिए इस ढंग के लोगों की जरूरत होती है.

सवाल: क्या आपको नहीं लगता है कि जो दौर गुजर गया था, वह फिर से वापस लौट रहा है. आप युवा तुर्क थे. आप युवाओं के रोल मॉडल हुआ करते थे. इन लोगों ने भी आपको अपना रोल मॉडल बनाया अब नहीं लग रहा है कि जो कभी शागिर्द थे अब अपने गुरु को मात देने में लगे हैं?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: दिनकर जी ने एक किताब लिखा है संस्कृत के चार अध्याय. उसे किताब का मूल अर्थ यही है कि जो आदमी पहाड़ की चोटी को देखा है तो आकर्षित होता है लेकिन उस पर जाता नहीं है. सच्चाई है कि उसे एक दिन नीचे आना है. पहले के जमाने में दो-चार नेता भ्रष्ट हुआ करते थे उनकी पूछ होती थी और जब सब नेता भ्रष्ट हो जाए तो दो-चार ईमानदार की पूछ होने लगती है.

सवाल: आपके अनुसार आगामी विधानसभा चुनाव बाहुबलियों के लिए अंतिम चुनाव होगा?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: बिल्कुल 2025 में होने वाला विधानसभा चुनाव बिहार में बाहुबलियों के लिए अंतिम चुनाव साबित होगा. अब बिहार बदल रहा है. चुनाव के बाद कोई भी बाहुबली राजनीति में नजर नहीं आएंगे.

सवाल - तो फिर मोकामा में किसके बीच राजनीतिक टक्कर होगा. बाहुबली को टक्कर देने के लिए राजनीतिक दल बाहुबली ही खोजते हैं?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: भविष्य के कोख में क्या होगा या नहीं कहा जा सकता क्योंकि मैं पंडित नहीं हूं. समाज अल्टरनेट खोज लेता है. जब कोई भूखा मारेगा, जब कोई भयभीत रहेगा, बच्चों को बाहर नहीं जाने देगा बच्चे स्कूल और कॉलेज जाने से डरेंगे तो वह अपना रास्ता खोजता है. पिछले विधानसभा उपचुनाव में अनंत सिंह की पत्नी की मदद की थी और ईमानदारी से जितना वोट दिलवा सकता था मैंने वोट दिलवाया.

सवाल: जो कभी जानी दुश्मन हुआ करते थे आज वह दोस्त हो गए हैं, विवेक पहलवान और अनंत सिंह. उनकी दोस्ती कैसे?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: इन दोनों की दोस्ती कब होगी और कब खत्म होगी वह वह लोग भी नहीं जानते हैं. यह लोग परिस्थिति के गुलाम हैं. जब अपने वजूद पर पर प्रश्न उठने लगता है तो कंप्रोमाइज कर लेते हैं. मन से कंप्रोमाइज नहीं किये हैं परिस्थिति ने समझौता करवाया.

सवाल: आपको नहीं लगता है कि अनंत सिंह को भी राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है और सोनू मोनू गुट को भी राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: हम लोग इन दोनों का नाम पहली बार सुने हैं. मोकामा में हम लोग 8 -10 पीढ़ी से रह रहे हैं. पहली बार इन लड़कों का नाम सुना है. मोकामा में ऐसे 100 लोग हैं. मोकामा की धरती बहादुर की धरती रही है यदि यही संस्कृति वहां की बन जाएगी तो एक नहीं सैकड़ों आदमी इस ढंग के मोकामा में है. इसीलिए कहा की यह बाहुबलियों के लिए अंतिम चुनाव होगा.

अनंत सिंह और दिलीप सिंह भाई: दिलीप सिंह के पिता किसान थे और कम्युनिस्टों के समर्थक थे. उनके चार बेटे बिरंची सिंह, फाजो सिंह, दिलीप सिंह और सबसे छोटे अनंत सिंह थे. दिलीप सिंह ने बड़े सरकार तो अनंत सिंह ने छोटे सरकार के रूप में आगे चलकर इलाके में अपनी पहचान बनायी. बिरंची सिंह और फाजो सिंह की हत्या कर दी गई थी.

दिलीप सिंह को धीरज की चुभ गई थी ये बात: 90 के दशक में पटना के गंगा किनारे बसे मोकामा में कांग्रेस विधायक श्याम सुंदर सिंह धीरज का दबदबा था. कहा जाता है कि दबदबा जमाने के लिए उन्होंने बूथ कैप्चरिंग के लिए दिलीप सिंह का सहारा लिया. श्याम सुंदर बिहार सरकार में मंत्री बन गए थे. जानकारों के अनुसार एक बार दिलीप उनसे मिलने उनके सरकारी आवास गए तो उन्होंने दिन के उजाले में आने से उनको मना कर दिया. यह बात दिलिप सिंह को चुभ गई और उन्होंने विधानसभा चुनाव में ताल ठोंकते हुए जीत दर्ज की. साल 2006 में पटना में दिल का दौरा पड़ने से दिलीप सिंह का निधन हो गया.

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पटना: बिहार का मोकामा हमेशा से सुर्खियों में रहा है. बिहार की राजनीति में बाहुबल के प्रभाव को लेकर यह कहा जाता है कि बेगूसराय से सटे इस इलाके से शुरुआत हुई. 90 के दशक से लेकर अब तक इस विधानसभा में सिर्फ बाहुबलियों का ही प्रभाव देखने को मिल रहा है. बाहुबली दिलीप सिंह से लेकर अनंत सिंह इसके उदाहरण हैं.

अनंत सिंह गोलीकांड से सुर्खियों में मोकामा: मोकामा एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है. 20 वर्षों के बाद फिर से मोकामा में गोलीबारी की आशंका बन गई है. बाहुबली नेता और पूर्व विधायक अनंत सिंह को उनके शागिर्द ने ही चुनौती दे दी है. बाहुबली अनंत सिंह और सोनू - मोनू सिंह के समर्थक पिछले कुछ दिनों से एक दूसरे के खिलाफ हो गए हैं.

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अनंत सिंह और सोनू-मोनू समर्थकों के बीच फायरिंग: स्थिति तो ऐसी आ गई की सोनू मोनू से बातचीत करने के लिए छोटे सरकार को उसके घर जाना पड़ा. लेकिन छोटे सरकार ने सोचा भी नहीं होगा कि जो व्यक्ति कभी उनके स्वागत में फूल माला लेकर खड़े रहते थे, वह इस बार उनका स्वागत गोलियों से करेंगे.

क्या था मामला: 22 जनवरी को मोकामा के नौरंगा जलालपुर गांव में बाहुबली नेता अनंत सिंह के समर्थकों और सोनू-मोनू गैंग के बीच गोलीबारी हुई थी. अनंत सिंह का कहना था कि उन्हीं के गांव के एक व्यक्ति के घर पर सोनू मोनू ने ताला लगा दिया था. जिसको लेकर वह लोग उनसे मिलने के लिए आए थे और उन्हीं के कहने पर सोनू मोनू को समझने के लिए वह नौरंगा जलालपुर गए थे. उनके गांव पहुंचते ही दोनों पक्षों के बीच फायरिंग और 100 राउंड से अधिक राउंड फायरिंग की बात कही जा रही है.

छोटे सरकार का सरेंडर: दोनों पक्षों के बीच हुई गोलीबारी के बाद दोनों एक दूसरे को दोषी ठहरने वालों. एक दूसरे के ऊपर पहले फायरिंग करने का आरोप लगाया गया. पुलिस ने मामला दर्ज किया और इसका नतीजा यह हुआ की 24 जनवरी को छोटे सरकार यानी अनंत सिंह ने बार सिविल कोर्ट में सरेंडर किया. वहीं पुलिस ने सोनू सिंह को गिरफ्तार कर फुलवारी जेल भेज दिया. लेकिन जिस तरीके से मामला बढ़ रहा है एक बार आशंका फिर हो रही है कि कहीं मोकामा में फिर से पुराना दौर तो वापस नहीं लौट रहा है.

मोकामा की राजनीति पर ईटीवी की पड़ताल: मोकामा की राजनीति में पिछले 25 वर्षों से बाहुबलियों का दबदबा रहा है. मोकामा की राजनीति में बाहुबलियों का प्रभाव कैसे बढ़ा इस बात को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने मोकामा के पूर्व विधायक और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्याम सुंदर सिंह धीरज से खास बातचीत की.

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1980 में विधायक बने श्याम सुंदर सिंह धीरज (ETV Bharat)

कौन हैं श्याम सुंदर सिंह धीरज?: श्याम सुंदर सिंह धीरज ने छात्र राजनीति से अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत की. पटना विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान ही उनकी रुचि राजनीति में होने लगी थी और उन्होंने NSUI से छात्र राजनीति की शुरुआत की. श्याम सुंदर सिंह धीरज बिहार की राजनीति में इन गिने चुने नेताओं में शामिल थे, जिनकी सीधी पहुंच संजय गांधी तक थी.

खुद संजय गांधी ने किया था चुनावी प्रचार: बिहार की राजनीति में संजय गांधी के कारण ही 25 वर्ष की अवस्था में इनको मोकामा से 1980 में टिकट मिला और खुद संजय गांधी उनके चुनाव प्रचार करने के लिए मोकामा आए थे. 1980 में विधायक बने. 1985 के विधानसभा चुनाव में भी उनको कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया और उसे चुनाव में भी श्याम सुंदर सिंह धीरज की जीत हुई. श्याम सुंदर सिंह धीरज बिहार सरकार में साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्री भी बने.

मोकामा की राजनीति में बाहुबल: मोकामा की राजनीति में बाहुबल की कैसे एंट्री हुई, इसको लेकर श्याम सुंदर सिंह धीरज ने ईटीवी भारत के साथ खुलकर बातचीत की. उन्होंने बताया कि कैसे क्रांतिकारियों की धरती मोकामा बाहुबलियों के चंगुल में फंसता गया.

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सवाल : मोकामा की राजनीति में एक बात की चर्चा होती थी कि दिलीप सिंह आपके लिए काम करते थे क्या यह सच है?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: देखिए मोकामा की धरती राजनीतिक भूमि रही है. मोकामा का इतिहास बता दें कि आजादी के आंदोलन में सबसे ज्यादा जेल यदि कहीं से गए थे तो उसमें मोकामा एक था. हमारे क्षेत्र में बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानी हुए और आश्चर्य की बात है पहले चुनाव में एक ही कैटेगरी के पांच व्यक्ति दावेदार थे. उन लोगों ने मिलकर तय किया कि किसको चुनाव लड़ना है और जगदीश बाबू पहले एमएलए बने जिनके खिलाफ कोई दूसरा उम्मीदवार खड़ा नहीं हुआ था. वह निर्विरोध चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचने वाले व्यक्ति बने.

'कांग्रेस की मोकामा पर थी मजबूत पकड़': धीरे-धीरे समय बदला अब तो किसी को बाहुबली कहना भी अपने ऊपर थ्रेट को बुलाना जैसा होगा. मोकामा में हमेशा कांग्रेस की लड़ाई कम्युनिस्ट पार्टी से हुई. मोकामा में कभी भी सोशलिस्ट का उदय नहीं हुआ. 1977 में जब जनता पार्टी का पूरे देश में आंधी चल रही थी, उस समय भी मोकामा में कांग्रेस की प्रत्याशी कृष्णा शाही की जीत हुई. उस समय हम लोग भी कांग्रेस के कार्यकर्ता के रूप में चुनाव में सक्रिय थे. यह मोकामा की परिपाटी थी लोगों में पकड़ थी.

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ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

सवाल: 1980 से लेकर 1990 तक आप वहां (मोकामा) के विधायक रहे. 25 साल का श्यामसुंदर सिंह धीरज छात्र राजनीति से निकालकर विधायक का चुनाव लड़ता है जीतता है और मंत्री भी बनता है. लोग यह कहते हैं कि श्यामसुंदर सिंह धीरज का रुतबा इतना था कि दिलीप सिंह और अनंत सिंह जैसे बाहुबली उनके नीचे काम करते थे?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: सबसे पहले तो यह बता दें कि इन लोगों का कल्चर क्या था और इन लोगों का नाम कैसे हुआ. दिलीप सिंह का परिवार कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ा हुआ था. जब वह कम्युनिस्ट में थे और हम कांग्रेस में तो ये लोग हमको कितना मदद किए होंगे आप सोच सकते हैं, इससे ज्यादा हम नहीं बोलेंगे. दिलीप सिंह और अनंत सिंह का परिवार कम्युनिस्ट पार्टी के सपोर्टर थे.

श्याम सुंदर सिंह धीरज ने बताया कि दिलीप सिंह के परिवार की कम्युनिस्ट पार्टी से नाराजगी हुई. इसी बीच 1985 में चुनाव हुआ और वह चुनाव जीत गए थे. उस समय मोकामा में मुन्नीलाल नाम के कम्युनिस्ट पार्टी के बहुत बड़े शूटर थे. उसी के साथ दिलीप सिंह का झगड़ा हुआ. बाद में मुन्नीलाल की हत्या हो गई.

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राहुल गांधी के साथ श्याम सुंदर सिंह धीरज (ETV Bharat)

श्याम सुंदर सिंह धीरज ने बताया कि दिलीप सिंह और मुनीलाल का पॉलिटिकल चरित्र एक जैसा था. मोकामा में पॉलिटिक्स में बंदूक की लड़ाई दो कम्युनिस्ट नेताओं के बीच की लड़ाई थी. उस समय इस लड़ाई में कांग्रेस नहीं थी. इस समय दिलीप सिंह उनके यहां आते थे. सिर्फ दिलीप सिंह नहीं और भी कई लोग उनके यहां आने जाने लगे थे.

सवाल: दिलीप सिंह की महत्वाकांक्षा आपके साथ रहकर जगी यह कहा जाता है?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: दिलीप सिंह की महत्वाकांक्षा पर बोलते हुए श्याम सुंदर सिंह धीरज ने कहा कि बिहार के एक मुख्यमंत्री ने दिलीप सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को जगाने का काम किया. क्योंकि उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री को वह शूट नहीं करते थे. दिलीप सिंह आते थे तो उनके यहां रहते थे. लड्डू सिंह नाम के एक मुखिया थे जो कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हुए थे. वह भी हथियार उठाने वालों में से थे. दिलीप सिंह पटना में रहते थे लदमा में नहीं रहते थे.

सवाल: दिलीप सिंह आपसे इसलिए नाराज हुए कि वह आपके पास एक पैरवी के लिए आए थे और आपने मना कर दिया था?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: जो चीज हमें दिमागी तौर पर लगता है कि यह सही नहीं है. हम पैरवी नहीं करते हैं. कोई भी चाहे वह हमारा भाई ही क्यों ना हो रेप का केस हो या मर्डर का केस, हम सिफारिश नहीं करेंगे. किसी की कोई जमीन छीन रहा है या किसी की आवाज कोई दबा रहा है तो हम आज भी उसके खिलाफ आवाज बुलंद करते हैं.

सवाल: रामजीवन सिंह की क्या भूमिका रही दिलीप सिंह को टिकट दिलवाने में?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: दिलीप सिंह को टिकट दिलाने में सिर्फ शंकर सिंह की भूमिका थी. शंकर सिंह पाटलिपुत्र में मेडिकल कॉलेज खोला था. उस समय जगन्नाथ मिश्रा ने उनको राजनीतिक रूप से कमजोर करने के लिए दिलीप सिंह को खड़ा करवाया. यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बनाकर बिहार आए थे.

जगन्नाथ मिश्रा ने अपने समर्थकों को कहा था कि उसको इतना मार मारो की इस फ्लाइट से दिल्ली वापस चला जाए. लेकिन दुर्भाग्य से यह उल्टा हो गया उनके सारे रंगदार भाग गए और उल्टे उनके समर्थकों ने कांग्रेसी चीफ मिनिस्टर के घर को घेर लिया. हमारी पहली लड़ाई उन्हीं से हुई. यही कारण है कि हमसे लड़ाई लड़ने के लिए उन्होंने दिलीप सिंह को आगे किया.

सवाल: मोकामा का इतिहास रहा है कि वहां पर बाहुबलियों को प्रश्रय दिया गया चाहे कामदेव सिंह हो या अन्य बड़े बाहुबली नेता?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: कामदेव सिंह सर पर बोर रखकर उनके गांव मरांची आया करते थे. श्याम सुंदर सिंह धीरज ने बताया कि कामदेव सिंह दिलीप सिंह के पिताजी के यहां उनसे मिलने के लिए आया करते थे. कामदेव सिंह बेगूसराय के रहने वाले थे लेकिन वह मोकामा की राजनीति में कभी हस्तक्षेप नहीं किए.

सवाल: धीरे-धीरे जिस तरीके से 90 के बाद मोकामा में बाहुबलियों का प्रभाव बढ़ा अब तो यही कहा जा रहा है कि मोकामा में सिर्फ बाहुबली ही चुनाव लड़ सकते हैं?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: हम जब मंत्री थे, उस समय कोई भी आदमी मोकामा में उनकी गाड़ी रोक सकता था.चाहे वह किसी भी जात का क्यों ना हो. यदि हमारे लिये अपमानजनक शब्द का वह व्यवहार करता था तो हम उसे बर्दाश्त करते थे. आरक्षण के मसले पर पप्पू यादव के साथ मोकामा में घटना घटी थी, उस समय भी हम यादवों के गांव में जाकर मीटिंग किए थे और भूमिहारों के गांव में जाकर मीटिंग करवा दोनों पक्षों के बीच समझौता करवा. इसका रिकॉर्ड अभी भी थाना में मौजूद है.

सवाल: अनंत सिंह का प्रभाव मोकामा में अब इतना बढ़ गया है कि पिछले लोकसभा चुनाव में कहा जाता है कि ललन सिंह को अपनी जीत के लिए अनंत सिंह को पैरोल पर बाहर निकलना पड़ा?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: पिछले लोकसभा चुनाव में अनंत सिंह के पैरोल पर निकलने का भी ललन सिंह को क्या फायदा हुआ मोकामा में ललन सिंह वोट में पिछड़ गए. मेरे गांव में 15000 वोट है जहां से वह हारे हैं. अन्य जगहों से ललन सिंह को लीड मिली लेकिन मोकामा में उनकी हार हुई है. उनके मित्र सतीश कुमार ने चुनाव के समय ही का दिया था कि मोकामा में इस बार इनको हम सतह पर लाएंगे.

सवाल: मोकामा की राजनीति में अनंत सिंह का ऐसा प्रभाव हो गया कि वह अब छोटे सरकार हो गए हैं?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: कोई भी नेता या आदमी क्रिमिनल से लड़ सकता है प्रशासन से लड़ सकता है. लेकिन प्रशासन क्रिमिनल और पैसा के गठजोड़ से लड़ने की औकात किसी में नहीं है. वैसे ही लोगों में से वह भी एक हैं.

सवाल: आपके बारे में एक चर्चा या होती है कि दिलीप सिंह अनंत सिंह और सूरजभान सिंह सब आपके नीचे काम कर चुके हैं?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: जब हम मंत्री थे उस समय केवल यही तीन आदमी हमारे नीचे काम नहीं किए हुए हैं और भी कई सारे ऐसे व्यक्ति हुए हैं जिनके हम नाम नहीं लेना चाहते जो हमारे यहां आते थे. उस समय भी हम तमाम लोगों को समझाते थे इसको प्रोफेशन मत बनाओ. मोकामा में सबसे पहले आर एस कॉलेज में एक भूमिहार लड़के की हत्या हुई थी. जिस घर के लड़के की हत्या हुई थी उसके प्रतिरोध में दूसरी लड़के की भी हत्या हो गई.

उस समय एक-एक घर जाकर मैंने हाथ जोड़कर यह से अपील की थी इसे कानूनी रूप से लड़ी है. इस बात को दूसरा रूप मत दीजिए. मैंने समझाया कि पहली हत्या झगड़े में हुई, लेकिन दूसरी हत्या सुनियोजित तरीके से हुई है. यदि इस सिलसिला को हम नहीं रोकेंगे तो मोकामा हथियारों का जगह बन जाएगा. यह बात हमने 1985 से पहले मोकामा के लोगों से मोलदियार टोला में जा जाकर कहा था. लेकिन काल के कपाल पर जो लिखा जाता है वही होता है.

सवाल - कहा जाता है कि श्याम सुंदर सिंह धीरज को देखकर ही वहां के बाहुबली ने राजनीति का ककहरा सीखा. ऐसा कहा जाता है कि बाहुबलियों को लगा कि जब हम आपके लिए काम कर सकते हैं तो अपने लिए भी कर सकते हैं.

श्याम सुंदर सिंह धीरज: मैंने पहले ही कहा था कि राजनीति में तीन गठजोड़ होते हैं. यह जितने भी बिहार के बाहुबली हैं, यह किसी नेता के कारण ही बने हैं. सत्ता के शीर्ष पर बैठा हुआ आदमी जब किसी व्यक्ति से नहीं जीतता है तो ऐसे ही लोगों की खोज करता है. जिसके पीछे पैसा भी होता है जिसके पीछे प्रशासन होता है और नेता भी होते हैं. बिहार में केवल मोकामा ही इसका अपवाद नहीं है. 25 से 30 ऐसे सीट इसके उदाहरण है. इन जगहों के नेताओं को हराने के लिए जो पॉपुलर वोट से नहीं हारने वाले हैं तो उसके लिए इस ढंग के लोगों की जरूरत होती है.

सवाल: क्या आपको नहीं लगता है कि जो दौर गुजर गया था, वह फिर से वापस लौट रहा है. आप युवा तुर्क थे. आप युवाओं के रोल मॉडल हुआ करते थे. इन लोगों ने भी आपको अपना रोल मॉडल बनाया अब नहीं लग रहा है कि जो कभी शागिर्द थे अब अपने गुरु को मात देने में लगे हैं?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: दिनकर जी ने एक किताब लिखा है संस्कृत के चार अध्याय. उसे किताब का मूल अर्थ यही है कि जो आदमी पहाड़ की चोटी को देखा है तो आकर्षित होता है लेकिन उस पर जाता नहीं है. सच्चाई है कि उसे एक दिन नीचे आना है. पहले के जमाने में दो-चार नेता भ्रष्ट हुआ करते थे उनकी पूछ होती थी और जब सब नेता भ्रष्ट हो जाए तो दो-चार ईमानदार की पूछ होने लगती है.

सवाल: आपके अनुसार आगामी विधानसभा चुनाव बाहुबलियों के लिए अंतिम चुनाव होगा?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: बिल्कुल 2025 में होने वाला विधानसभा चुनाव बिहार में बाहुबलियों के लिए अंतिम चुनाव साबित होगा. अब बिहार बदल रहा है. चुनाव के बाद कोई भी बाहुबली राजनीति में नजर नहीं आएंगे.

सवाल - तो फिर मोकामा में किसके बीच राजनीतिक टक्कर होगा. बाहुबली को टक्कर देने के लिए राजनीतिक दल बाहुबली ही खोजते हैं?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: भविष्य के कोख में क्या होगा या नहीं कहा जा सकता क्योंकि मैं पंडित नहीं हूं. समाज अल्टरनेट खोज लेता है. जब कोई भूखा मारेगा, जब कोई भयभीत रहेगा, बच्चों को बाहर नहीं जाने देगा बच्चे स्कूल और कॉलेज जाने से डरेंगे तो वह अपना रास्ता खोजता है. पिछले विधानसभा उपचुनाव में अनंत सिंह की पत्नी की मदद की थी और ईमानदारी से जितना वोट दिलवा सकता था मैंने वोट दिलवाया.

सवाल: जो कभी जानी दुश्मन हुआ करते थे आज वह दोस्त हो गए हैं, विवेक पहलवान और अनंत सिंह. उनकी दोस्ती कैसे?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: इन दोनों की दोस्ती कब होगी और कब खत्म होगी वह वह लोग भी नहीं जानते हैं. यह लोग परिस्थिति के गुलाम हैं. जब अपने वजूद पर पर प्रश्न उठने लगता है तो कंप्रोमाइज कर लेते हैं. मन से कंप्रोमाइज नहीं किये हैं परिस्थिति ने समझौता करवाया.

सवाल: आपको नहीं लगता है कि अनंत सिंह को भी राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है और सोनू मोनू गुट को भी राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है?

श्याम सुंदर सिंह धीरज: हम लोग इन दोनों का नाम पहली बार सुने हैं. मोकामा में हम लोग 8 -10 पीढ़ी से रह रहे हैं. पहली बार इन लड़कों का नाम सुना है. मोकामा में ऐसे 100 लोग हैं. मोकामा की धरती बहादुर की धरती रही है यदि यही संस्कृति वहां की बन जाएगी तो एक नहीं सैकड़ों आदमी इस ढंग के मोकामा में है. इसीलिए कहा की यह बाहुबलियों के लिए अंतिम चुनाव होगा.

अनंत सिंह और दिलीप सिंह भाई: दिलीप सिंह के पिता किसान थे और कम्युनिस्टों के समर्थक थे. उनके चार बेटे बिरंची सिंह, फाजो सिंह, दिलीप सिंह और सबसे छोटे अनंत सिंह थे. दिलीप सिंह ने बड़े सरकार तो अनंत सिंह ने छोटे सरकार के रूप में आगे चलकर इलाके में अपनी पहचान बनायी. बिरंची सिंह और फाजो सिंह की हत्या कर दी गई थी.

दिलीप सिंह को धीरज की चुभ गई थी ये बात: 90 के दशक में पटना के गंगा किनारे बसे मोकामा में कांग्रेस विधायक श्याम सुंदर सिंह धीरज का दबदबा था. कहा जाता है कि दबदबा जमाने के लिए उन्होंने बूथ कैप्चरिंग के लिए दिलीप सिंह का सहारा लिया. श्याम सुंदर बिहार सरकार में मंत्री बन गए थे. जानकारों के अनुसार एक बार दिलीप उनसे मिलने उनके सरकारी आवास गए तो उन्होंने दिन के उजाले में आने से उनको मना कर दिया. यह बात दिलिप सिंह को चुभ गई और उन्होंने विधानसभा चुनाव में ताल ठोंकते हुए जीत दर्ज की. साल 2006 में पटना में दिल का दौरा पड़ने से दिलीप सिंह का निधन हो गया.

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