पटनाःशिक्षा विभाग की बैठक में कुलपति के शामिल नहीं होने पर वेतन रोके जाने और वित्तीय अधिकार छीने जाने का शिक्षाविदों ने पुरजोर विरोध किया है. शिक्षा विभाग के इस कार्रवाई के फैसले का विरोध करते हुए वरिष्ठ शिक्षाविद प्रोफेसर एनके चौधरी ने शिक्षा विभाग के इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है. उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग का यह तर्क बिल्कुल गलत है.
'विवि सरकार के अधीन नहीं': रिटार्यड प्रोफेसर ने कहा कि विभाग विश्वविद्यालयों को पैसा देता है. इसलिए उनके साथ समीक्षा बैठक कर सकती है. सरकार तो विधि विभाग के माध्यम से न्यायपालिका को भी पैसा देती है. यह स्थिति रही तो आगे चलकर कोई सचिव हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को बुलाकर समीक्षा बैठक करने लगेगा. उन्होंने स्पष्ट कहा कि विवि सरकार के अधीन नहीं है.
"सरकार सिर्फ विश्वविद्यालय के संचालन के लिए पैसा उपलब्ध कराती है. विश्वविद्यालय अपने आप में स्वायत्त संस्था है. विश्वविद्यालय पर यदि सरकार का नियंत्रण हुआ तो सरकार अपनी विचारधारा थोपेगी. नए विचारों का सृजन नहीं होगा. विश्वविद्यालय की कर्मचारी सरकारी कर्मी नहीं होते हैं. शिक्षा विभाग का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है."-एनके चौधरी, रिटायर्ड प्रोफेसर
'कुलपति विवि के कार्यों की मॉनिटरिंग करते हैं': एनके चौधरी ने कहा कि विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों और अन्य कर्मियों को सरकारी कर्मी को जो सहूलियत और छुट्टियां मिलती है वह नहीं मिलती. विश्वविद्यालय के शिक्षक चुनाव लड़ने जाते हैं तो उन्हें अपने पद से रिजाइन नहीं करना पड़ता. प्रदेश में विश्वविद्यालयों का संचालन बिहार यूनिवर्सिटी एक्ट 1976 के तहत होता है. इसमें विश्वविद्यालय के कार्यों की प्रतिदिन मॉनिटरिंग कुलपति करते हैं.
'बैठक के लिए बुलाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण': उन्होंने कहा कि बिहार में कुछ विश्वविद्यालय को छोड़कर सभी विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति राज्यपाल होते हैं. राज्यपाल संवैधानिक पद है और उन्हें कुलाधिपति का दायित्व यूनिवर्सिटी एक्ट के तहत मिलता है. कुलाधिपति पद की गरिमा को देखते हुए राज्यपाल को पदेन कुलाधिपति बनाया गया है. ऐसे में शिक्षा विभाग को विश्वविद्यालय की कुलपतियों की बैठक बुलाने का कोई अधिकार नहीं है. बैठक के लिए बुलाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण था.