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खिलाड़ियों के लिए खेल कौशल के साथ कितनी जरूरी है स्पोर्ट्स साइकोलॉजी, जानें एक्सपर्ट प्रीति भांडुरगे से

प्रीति ने अपनी रिसर्च में पाया उत्तराखंड के दुर्गम इलाकों से आने वाले खिलाड़ी ज्यादा जुझारू, उत्तराखंड नेशनल गेम्स के मद्देनजर स्पोर्ट्स साइंस पर जोर

SPORTS PSYCHOLOGIST PREETI
स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट प्रीति भांडुरगे (PHOTO- ETV BHARAT)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 12, 2024, 3:12 PM IST

Updated : Nov 12, 2024, 3:52 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में जल्द ही राष्ट्रीय खेल होने हैं. इसके मद्देनजर इन दिनों युवा कल्याण विभाग द्वारा आयोजित यूथ फेस्टिवल को स्पोर्ट्स साइंस पर केंद्रित किया गया है. इस मौके पर ईटीवी भारत की टीम से स्पोर्ट्स साइकोलॉजी को लेकर खास बातचीत की साइकोलॉजिस्ट प्रीति भांडुरगे ने.

स्पोर्ट्स साइकोलॉजी एक्सपर्ट प्रीति भांडुरगे के टिप्स: उत्तराखंड में जल्द ही 38 वें राष्ट्रीय खेल होने हैं. राष्ट्रीय खेलों से पहले उत्तराखंड में चल रहे युवा महोत्सव को खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा स्पोर्ट्स साइंस यानी कि खेलों में होने वाले विज्ञान के प्रयोग पर केंद्रित किया गया है. ऐसे में हर दिन परेड ग्राउंड में लगने वाले यूथ फेस्टिवल में स्पोर्ट्स साइंस से जुड़े तमाम एक्सपर्ट खिलाड़ियों के साथ इंटरेक्ट करते हैं. खेलों के साथ जुड़ी साइंस को किस तरह से हम अपने खेल को बेहतर बनाने में प्रयोग कर सकते हैं, इसको लेकर चर्चा की जाती है. इसी को लेकर राइन स्पोर्ट्स साइंस सेंटर की भारत की साइकोलॉजिस्ट प्रीति भांडुरगे ने खिलाड़ियों के साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य के प्रभाव को लेकर के तमाम बारीकियां बतायीं.

खेलों में जीत के लिए मानसिक क्षमता भी जरूरी:ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए साइकोलॉजिस्ट प्रीति ने बताया कि भारत में जब भी किसी भी खेल के बारे में बात की जाती है, तो उसको शारीरिक क्षमता से तोला जाता है. लेकिन ये 100 फीसदी सही नहीं है. खेलों में अच्छा प्रदर्शन मानसिक क्षमता पर भी निर्भर करता है. प्रीति ने बताया कि जिस तरह से किसी भी खेल में जीत हासिल करने के लिए हमें शारीरिक रूप से सक्षम होने की जरूरत होती है, उसी तरह से हमें मानसिक रूप से भी उसके लिए मजबूत बनना पड़ता है.

स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट प्रीति भांडुरगे से खास बातचीत. (VIDEO- ETV BHARAT)

हमारे यहां नहीं सिखाया जाता है हार को डील करना:डॉ प्रीति बताती हैं कि जिस तरह से आज खेल और खिलाड़ियों की स्थिति है, उसमें प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा है. ऐसे में खिलाड़ियों के जितने ज्यादा जीतने की संभावनाएं होती है, ठीक उतने ही चांस हारने के भी बन जाते हैं. लेकिन हमारे समाज में हमें यह तो पता है कि जीतने के बाद उसका परिणाम क्या होगा. जीतने के बाद क्या करना है. लेकिन यह हमें कोई नहीं बताता है कि यदि हम हार जाते हैं, तो उस स्थिति का सामना हमें किस तरह से करना है. प्रीति का यह भी कहना है कि किसी भी परफॉर्मेंस को देते हुए खिलाड़ी की मानसिक स्थिति किस तरह की है, यह भी उसके खेल को सीधे-सीधे प्रभावित करता है.

स्पोर्ट्स साइकोलॉजी बदल देती है गेम:ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट प्रीति बताती हैं कि स्पोर्ट्स साइंस या फिर स्पोर्ट्स साइंस में जो स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट की भूमिका है, वह खिलाड़ी के मानसिक स्वास्थ्य पर काम करती है. ठीक इसी तरह से कि खिलाड़ी को अपने खेल के दौरान किस तरह से अपनी मानसिक स्थिति पर संयम रखना है. खेल होने से पहले जो एंजायटी या फिर नींद ना आना या फिर अन्य तरह की जो मानसिक समस्या होती है, उन पर स्पोर्ट्स साइंस के तहत काम किया जाता है. वहीं इसके अलावा खेल के बाद के परिणाम को किस तरह से डील करना है, यह भी कई हद तक स्पोर्ट्स साइकोलॉजी साइंस से समझा जा सकता है.

उत्तराखंड के खिलाड़ियों में गजब की मानसिक क्षमता:ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट प्रीति ने बताया कि उन्होंने अपनी रिसर्च के दौरान उत्तराखंड के बच्चों में जीतने का जुनून ज्यादा पाया जाता है. खासतौर से दूरस्थ दुर्गम इलाकों से आने वाले खिलाड़ी जो कि बहुत संघर्ष के बाद आगे आए होते हैं, उनमें कंप्टीशन जीतने का ज्यादा ही जुनून है. डॉ प्रीति बताती हैं कि अमूमन लोगों में यह धारणा है कि जो खिलाड़ी गांव से आते हैं, वह कमजोर होंगे. लेकिन उन्होंने अपनी रिसर्च में पाया है कि यहां इसके बिलकुल उल्टा है. उन्होंने बताया कि जो जितनी कठिन परिस्थितियों से होकर आया है, उसकी इच्छा शक्ति उतनी ही मजबूत हुई है. यानी कि उसमें जीतने के लिए शारीरिक और मानसिक ताकत भी उतनी ही ज्यादा होती है.
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Last Updated : Nov 12, 2024, 3:52 PM IST

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