नई दिल्ली:उत्तराखंड के अधिकांश इलाके रविवार से ही कड़ाके की ठंड की चपेट में हैं. मैदानी इलाकों में शीतलहर चल रही है और पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी हो रही है. मौसम विभाग ने जनवरी में बेहद ठंड और मानसून में असामान्य रूप से अधिक बारिश होने का अनुमान जताया है.
इस बार हिमालय में बर्फबारी होने की उम्मीद है, जो पिछले कई रिकॉर्ड तोड़ देगी. मौसम विभाग के मुताबिक जनवरी में ठंड और भी ज्यादा रहेगी खासकर पहाड़ी इलाकों में जहां बर्फबारी हुई थी, वहां एक बार फिर ऐसा ही नजारा देखने को मिल सकता है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance ) पर ला नीना के असर से मौसम में और बदलाव आएंगे. यह बदलाव खास तौर पर हिमालय में देखने को मिलेगा. मौसम विशेषज्ञ इसे पर्यावरण के साथ-साथ किसानों के लिए भी फायदेमंद मान रहे हैं.
ला नीना का असर एक हफ्ते पहले शुरू हुआ था. इसके बाद हिमालयी क्षेत्र में अचानक मौसम बदल गया. साल के अंत में अचानक हुई बर्फबारी ने कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों को बर्फ की सफेद चादर से ढक दिया.
ला नीना क्या है?
ला नीना का मतलब मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में भारी कमी है. यह गिरावट उष्णकटिबंधीय वायुमंडलीय परिसंचरण ( Tropical Atmospheric Circulation) जैसे हवा, प्रेशर और बारिश में परिवर्तन से जुड़ी है. यह मुख्य रूप से मानसून के दौरान तीव्र और लंबे समय तक बारिश और उत्तरी भारत में सामान्य से अधिक ठंडी सर्दियों से जुड़ा है.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने कहा कि फरवरी 2025 तक ला नीना की तीव्रता 60 प्रतिशत तक बढ़ सकती है.
भारत पर ला नीना का क्या प्रभाव है?
ला नीना और एल नीनो प्रशांत महासागर में दो जलवायु पैटर्न हैं जो भारत सहित दुनिया भर में मौसम के पैटर्न को प्रभावित कर सकते हैं. ला नीना, एल नीनो से विपरीत है. यह भारतीय मानसून को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है. एल नीनो 18 महीने तक और ला नीना तीन साल तक चल सकता है.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने कहा, "आखिरी मल्टी-ईयर ला नीना सितंबर 2020 में शुरू हुआ था और 2023 की शुरुआत तक चला था. यह 21वीं सदी का पहला 'ट्रिपल डिप' ला नीना था."
ला नीना के कारण ज्यादा होती है बारिश
ला नीना के कारण आमतौर पर अधिक वर्षा होती है, जबकि अल नीनो के कारण मानसून के मौसम में सूखा पड़ता है. ऐतिहासिक रूप से ला नीना की सर्दियां भारत-गंगा के मैदान (IGP) में अल नीनो की सर्दियों की तुलना में अधिक ठंडी होती हैं, जिसमें दिल्ली भी शामिल है. आमतौर पर ला नीना के दौरान सर्दियों के मौसम में सामान्य से कम तापमान देखने को मिलता है.
IMD के महानिदेशक ने 2020 में कहा था कि ला नीना के वर्षों के दौरान आमतौर पर देश के उत्तरी हिस्सों में तापमान अपेक्षाकृत कम हो जाता है. उस स्थिति में सर्दियों में अपेक्षाकृत ठंड पड़ सकती है,"
केंद्र ने दिसंबर में पहले बताया था, "ला नीना के दौरान, दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम में भारत में सामान्य से अधिक वर्षा होती है." सरकार के बयान में कहा गया है, "देश के अधिकांश हिस्सों में ला नीना वर्षों के दौरान सामान्य से अधिक वर्षा होती है, सिवाय उत्तर भारत के सुदूर क्षेत्रों और पूर्वोत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों के, जहां ला नीना के दौरान सामान्य से कम वर्षा होने की संभावना है."
ला नीना के दौरान अत्यधिक वर्षा से बाढ़, फसल क्षति और पशुधन की हानि हो सकती है, लेकिन इससे वर्षा आधारित कृषि और भूजल स्तर को भी लाभ हो सकता है. सरकार ने कहा, "ला नीना से जुड़ी बारिश में वृद्धि से कभी-कभी भारतीय क्षेत्र में तापमान कम हो सकता है, जिससे कुछ खरीफ फसलों की वृद्धि और विकास प्रभावित हो सकता है." कमजोर ला नीना की स्थिति के कारण पारंपरिक सर्दियों के प्रभाव कम होने की संभावना होगी.
ला नीना की स्थिति कब से कब तक रहेगी?
आईएमडी ने 26 दिसंबर को एक विज्ञप्ति में कहा था कि अगले साल की शुरुआत तक ला नीना की स्थिति बनने की संभावना बढ़ गई है इसमें कहा गया है कि वर्तमान में भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में तटस्थ एल नीनो-दक्षिणी दोलन की स्थिति देखी जा रही है.
आईएमडी ने कहा, "संभावना पूर्वानुमान जेएफ 2025 सीजन के आसपास ला नीना की स्थिति विकसित होने की अधिक संभावना को दर्शाता है." इस बीच एनडब्ल्यूएस क्लाइमेट प्रेडिक्शन सेंटर ने हाल ही में भविष्यवाणी की है कि नवंबर 2024-जनवरी 2025 में ला नीना की स्थिति उभरने की सबसे अधिक संभावना है.
भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले अन्य फैक्टर
आईएमडी का कहना है कि भारतीय महासागर के समुद्री सतह के तापमान जैसे अन्य फैक्टर भी भारतीय जलवायु को प्रभावित करते हैं. इसमें कहा गया है, "वर्तमान में हिंद महासागर के अधिकांश भागों में समुद्र की सतह का तापमान औसत से अधिक देखा जा रहा है..."
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