हाजीपुर: "हमारा लक्ष्य बिहार के लिए कुछ अच्छा करना है, ताकि देश और विश्व में पहचान बन सके. साथ ही लोगों को रोजगार के लिए बाहर ना जाना पड़े इसकी कोशिश है. भविष्य में जिन प्रोडक्ट्स की जरूरत पड़ेगी, उसे लोगों के लिए उपलब्ध कराना भी हमारे लक्ष्य में शुमार है." ये कहना है बिहार के उन तीन युवाओं का जिन्होंने कचरे से लाखों और अब करोड़ों की कमाई कर रहे हैं. विस्तार से जानें तीन दोस्तों की सक्सेस स्टोरी.
बिहार में स्टार्टअप कंपनी:कहावत है कि करने का जज्बा हो तो सफलता कदम चूमती है. कुछ ऐसा ही बिहार के मैनेजमेंट के तीन छात्रों सत्यम जतिन और नीतीश ने कर दिखाया है. तीनों ने मैनेजमेंट की पढ़ाई के बाद कुछ नया करने का सोचा और नौकरी नहीं करने का फैसला किया. तीनों दोस्तों ने बिहार में ही स्टार्टअप की योजना बनाई.
तीन दोस्तों की सफलता की कहानी: ईटीवी भारत से बातचीत में इन लोगों ने अपने नए स्टार्टअप की पूरी जानकारी साझा की. बिहार के तीन लड़के सत्यम कुमार, जतिन कल्याण और नीतीश वर्मा की दोस्ती जयपुर के तक्षशिला बिजनेस स्कूल में हुई. सत्यम दरभंगा, जतिन कटिहार, और नीतीश नालंदा का रहने वाला है. मैनेजमेंट की पढ़ाई के दौरान तीनों बिहार के लड़कों के बीच दोस्ती हुई. मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक कंपनी में तीनों दोस्तों ने एक साथ इंटर्नशिप किया.
नौकरी का मिला ऑफर:ईटीवी भारत से बातचीत में सत्यम ने बताया कि मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनको नौकरी का ऑफर आया, लेकिन तीनों दोस्त कुछ दिन के लिए अपने घर आये थे. इस दौरान हमने अपना खुद का कुछ शुरू करने का फैसला किया. केला के पेड़ के वेस्टेज से नया स्टार्टअप की योजना पर काम शुरू किया.
2021 में तरुवर एग्रो की शुरुआत:तीनों दोस्तों ने अपनी पूंजी लगाकर 2021 में तरुवर एग्रो नाम से अपने स्टार्टअप की शुरुआत की. जतिन ने बताया कि तीनों ने अपने घर से कुल 15 लाख रुपये की पूंजी लगाने का फैसला किया. इस नई योजना को लेकर परिवार वालों का भी साथ मिला. आज स्थिति ऐसी है कि यह (कंपनी) अपने आप में अब ऑटो मोड पर चलना शुरू कर चुकी है.
"बिहार के लोगों का सपना होता है कि पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी करें. लेकिन हमने हमेशा एक बात को लेकर आगे बढ़ने का फैसला किया कि बिहार में रहकर बिहार के लोगों के लिए काम करना है. अपने पूरे प्रोजेक्ट के बारे में अपने परिवार वालों को समझाया कि यदि हम लोग बाहर जाकर नौकरी करेंगे तो फिर हमारे आगे की पीढ़ी भी बाहर जाकर नौकरी करने की सोचेगी. हमारे प्रोजेक्ट से परिवार के लोग संतुष्ट हुए और हमने अपना नया स्टार्टअप शुरू किया."-नीतीश वर्मा, उद्यमी
हाजीपुर में यूनिट की शुरुआत: बिहार ही नहीं पूरे देश में हाजीपुर की पहचान केले के उन्नत फसल के रूप की जाती है. इसलिए इन तीनों ने तरुवर एग्रो का यूनिट हाजीपुर में लगाने का फैसला किया. हाजीपुर के जरुआ में लीज पर जमीन ली. 15 हजार रु प्रतिमाह की लीज पर जमीन ली. वहां पर प्रोसेसिंग प्लांट लगाया.
तीन यूनिट में काम कर रही कंपनी: तीनों दोस्तों ने केले का रेशा निकालने की 2 मशीन खरीदी, लेकिन बाद में खुद ही अपने हिसाब से मशीन असेंबल करवा कर कुछ और मशीन यहां लगवाया. आज तरुवर एग्रो का तीन यूनिट काम कर रहा है. एक में बनाना फैब्रिक का काम होता है. दूसरे यूनिट में वर्मी कंपोस्ट तैयार किया जाता है और तीसरी यूनिट में ड्राई फ्रूट्स प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग की यूनिट लगाई गई है.
किसानों से वेस्टेज की खरीद: हाजीपुर में हजारों एकड़ में केले की खेती होती है. केला के फसल में एक चीज होती है कि पेड़ से फल निकलने के बाद उस पेड़ में दुबारा फल नहीं निकलता है. इसलिए केले के पेड़ को काट कर फेंक दिया जाता है. इन लोगों ने केला की खेती करने वाले किसानों से पेड़ के कटे भागों को उनके हाथों बेचने की बात की. किसान भी केले के तनों को उनको बेचने को तैयार हो गए.
"केले के पेड़ के निचले हिस्से का वजन 60 से 100 किलो तक का होता है. हम किसानों की 1 थंब के लिए 18 से 20 रु देते हैं. 1 ट्रैक्टर पर 100 केले के थंब आते हैं. इस तरह जिस चीज को किसान फेंक देते थे. उसके बदले उनको प्रति टेलर 2000 रु मिलने लगे. आज हाजीपुर के 2 दर्जन से अधिक किसान हमारे यहां केले के कटे पेड़ की सप्लाई करते हैं."-जतिन, उद्यमी
तरुवर एग्रो के प्रोडक्ट: ईटीवी भारत से बातचीत में सत्यम कुमार ने बताया कि आज तरुवर एग्रो के कई प्रोडक्ट तैयार हो रहे हैं. तरुवर एग्रो में पहले केवल केले के तना के रेशे से धागा का निर्माण होता था, लेकिन धीरे धीरे कई प्रोडक्ट तैयार होने लगे. केले के फाइबर के अलावे केले के पौधे के रस से पोषक तत्वों और पोटेशियम से भरपूर होता है.
खेतों के लिए उपयोगी पोटेशियम लिक्विड: इसका लैब टेस्ट भागलपुर स्थित सबौर कृषि विश्वविद्यालय में हुआ. इसलिए केले के पेड़ रस से उन लोगों ने खेतों के लिए उपयोगी पोटेशियम का लिक्विड तैयार किया. इस लिक्विड को खेतों में डालने से खेतों में पोटेशियम की कमी दूर हो जाती है.
फाइल फोल्डर और पर्स भी हो रहा तैयार: तीनों दोस्तों ने बताया कि केले के वेस्टेज से उन लोगों ने वर्मी कंपोस्ट की यूनिट तैयार की. केले के पेड़ के वेस्टेज से तैयार वर्मी कंपोस्ट खेतों के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हो रहा है. तरुवर एग्रो विभिन्न स्वादों में बेक्ड मखाना स्नैक्स भी बना रहा है. केले के रेशे से फाइल, फोल्डर और पर्स भी बनाया जा रहा है. इसके अलावा केले का धागा भी है जिसका इस्तेमाल मंदिरों में उपयोग होने वाले फूलों के माला एवं अन्य आर्टिफिशियल माला के धागे के रूप में किया जा रहा है.
8-9 बार यूज कर सकते हैं एक सेनेटरी पैड: केले के फाइबर से बने सेनेटरी पैड भी बनाई जा रही है. इससे 2 तरह का सेनेटरी पैड बनते हैं. पहले इको फ्रेंडली जो एक बार में यूज करके फेंक देते हैं. दूसरा हाई क्वालिटी का वॉशेबल सेनेटरी पैड जिसका उपयोग 8 से 9 बार तक किया जाता है.