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एरण में मौजूद है श्रीकृष्ण के 26 शिलालेख, पत्थरों पर बनी जन्म से लेकर कंस वध तक की लीलाएं - Krishna Leela In Eran Sagar - KRISHNA LEELA IN ERAN SAGAR

जन्माष्टमी से पहले भगवान कृष्ण से जुड़ी कहानियां, उनकी लीलाएं और मंदिरों की चर्चाएं हो रही हैं. इसी क्रम में बता दें कि मध्यभारत के पुरातत्व स्थल मध्य प्रदेश में स्थित एरण में 1600 साल पुराने कृष्ण लीला से संबंधित शिलालेख हैं. इसमें कृष्ण जन्म से लेकर कंस वध तक शिलालेख में मूर्ति के जरिए वर्णन. भारतीय सर्वेक्षण विभाग मूर्तियों को संरक्षित कर रहा है.

KRISHNA LEELA IN ERAN SAGAR
एरण में मौजूद है श्रीकृष्ण के 26 शिलालेख (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 23, 2024, 6:45 PM IST

सागर:एरण बीना का एक ऐसा पुरातात्विक स्थल है. जो हजारों सालों से चली आ रही हिंदू धर्म की परम्पराओं, कला एवं संस्कृति के संरक्षक के रूप में आज भी विद्यमान है. खास बात ये है कि यहां पर गुप्तकाल में भगवान विष्णु के 10 अवतारों की मूर्तियां देखने मिल जाएंगी. एरण में गुप्तकालीन कला के प्रतीक के तौर पर कृष्ण लीला का सुंदर और मनोहारी वर्णन किया गया है. लाल बलुआ पत्थर पर कृष्ण जन्म से लेकर कंस वध तक की प्रतिमाएं बनायी गयी है. जानकार बताते हैं कि भारत में किसी भी पुरातात्विक महत्व के स्थान पर कृष्ण लीला के प्रमाण नहीं मिले हैं. पुरातत्व वेदों का कहना है कि 'यह शिलालेख 1600 से 1800 साल पूर्व के हैं. एरण अकेला ऐसा स्थान है, जहां पर गुप्तकाल के कृष्णलीला के प्रमाण हैं.'

एरण में मौजूद कृष्णलीला के बारे में दी जानकारी (ETV Bharat)

एरण का पुरातात्विक महत्व

डाॅ हरीसिंह गौर विश्वविदयालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. नागेश दुबे बताते हैं कि 'एरण बुंदेलखंड का सबसे प्राचीनतम स्थल साबित हुआ है. एरण में ब्रिटिशकाल से लेकर अब तक पुरातत्व विभाग ने कई बार उत्खनन और सर्वेक्षण किए गए हैं. इसका इतिहास नवपाषाण युग से प्रारंभ होता है. सबसे ज्यादा महत्व एरण को गुप्तकाल में मिला है. गुप्तकाल की ये क्षेत्रीय राजधानी थी और कहा गया है कि चंद्रगुप्त के बेटे रामगुप्त का शासन यहीं था. उसके बाद चंद्रगुप्त द्वितीय ने यहां का शासन संभाला है. इसके कई कथानक मिलते हैं.

कन्हैया के जन्म से लेकर कंस वध का चित्रण (ETV Bharat)

गुप्तकाल के शासकों के सिक्के और अभिलेख यहां पर मिले हैं. उनके द्वारा बनाए गए विष्णु मंदिर है. जिसमें महाबराह, विष्णु, बलराम, विक्रम की प्रतिमा स्थापित है. वैष्णव धर्म के अनेक साक्ष्य वहां स्थापित है और सागर यूनिवर्सिटी के संग्रहालय में भी कई प्रमाण मौजूद है. गुप्तशासक वैष्णव धर्म को मानने वाले थे. विष्णु के विभिन्न अवतारों, वैष्णव धर्म से संबंधित देवी-देवताओं की प्रतिमा यहां स्थापित है.

कृष्ण के जन्म के शिलालेख (ETV Bharat)

एरण में कृष्णलीला के 26 शिलालेख मौजूद

इसी तरह कृष्ण लीला के दृश्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने सुरक्षित रखने के उद्देश्य से करीब 50 साल पहले एरण में स्थित एक चबूतरे में जड़ दिए गए थे. चबूतरा मंदिर परिसर में स्थित है. उसमें कृष्ण लीला में कृष्ण जन्म से लेकर कंस वध तक और मथुरा में भगवान कृष्ण के शासन के उल्लेख के करीब 26 शिलालेख मिले हैं. इन शिलालेखों में कृष्ण लीला के विभिन्न कथानकों का वर्णन किया गया है. आगे भी यहां पर सर्वेक्षण होने पर और भी साक्ष्य मिल सकते हैं.

पत्थरों पर बनी कृष्ण के लीलाओं की कहानी (ETV Bharat)

कृष्ण जन्म से लेकर कंस वध तक के शिलालेख

प्रोफेसर नागेश दुबे बताते हैं कि 'एरण में कृष्ण की लीलाओं से संबंधित करीब 26 शिलालेख मौजूद है. जिनमें कृष्ण जन्म के पूर्व देवकी और वासुदेव द्वारा चतुर्भुजी भगवान विष्णु की आराधना, कारागार में कृष्ण जन्म, माता देवकी की गोद में कृष्ण का चित्रण, कृष्ण जन्म के समय आकाश से पुष्प वर्षा, कृष्ण को पिता वासुदेव कारगाह से लेकर यशोदा को सौंपते हुए और नवजात कन्या लेते हुए, देवकी और वासुदेव के छह नवजात शिशुओं को मारता हुआ कंस, पूतना और शकटासुर वध और व्याकुल यशोदा का चित्रण, कुबेर पुत्रों को नारद के श्राप से मुक्ति, बालसखाओं के साथ गाय चराते और यमुना में कालिया नाग को मारते हुए कृष्ण.

एरण में कृष्ण के शिलालेख मौजूद (ETV Bharat)

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माखन चोर कृष्ण की यशोदा से शिकायत, गुरुकुल में कृष्ण और बलराम की शिक्षा प्रारंभ, कृष्ण का उपनयन संस्कार, मथुरा में कृष्ण का स्वागत, नंदगांव से मथुरा जाते समय कृष्ण का गोपियों से प्रेमालाप, कंस के राज दरबार का दृश्य, कृष्ण और कंस का संवाद, कंस वध का चित्रण, महाराज अग्रसेन का कृष्ण द्वारा राज्य रोहण, कंस वध के बाद देवताओं की समय में नारद का वीणा वादन का चित्रण एरण में मौजूद है. जो बिखरे हुए पड़े थे. जिन्हें करीब 50 साल पहले एरण मंदिर परिसर में मौजूद एक चबूतरे में जड़ दिया गया है. ताकि उनको कोई नुकसान ना हो, इनको संरक्षित करने का काम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग कर रहा है.

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