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मृतकों के नाम पर 72 लाख निकाले, 27 साल पुराने केस में 39 लोगों को सजा - SEHORE DISTRICT COURT NEWS

आईआरडीपी बीमा योजना में फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र देकर निकाली थी 72 लाख रुपए की राशि, 1998 में दर्ज हुआ था मामला

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 12, 2025, 6:27 AM IST

Updated : Feb 12, 2025, 7:40 AM IST

सीहोर : जिला सत्र न्यायालय ने 1998 के बीमा फर्जीवाड़ा मामले में 39 लोगों को एकसाथ सजा सुनाई है. इसमें से 38 लोगों को जेल भेजने की सजा सुना गई है, वहीं एक अपराधी वृद्ध और बीमार होने की वजह से अस्पताल में है. मध्य प्रदेश के इतिहास संभवत: यह पहला ऐसा मामला होगा जिसमें एक साथ इतने लोगों को सजा सुनाई गई हो. एक और चौंकाने वाली बात ये है कि ढाई दशक से ज्यादा चले इस प्रकरण के दौरान 9 आरोपियों की मौत हो चुकी है.

क्या है 1998 का बीमा फर्जीवाड़ा?

लोक अभियोजन अधिकारी अनिल बादल के मुताबिक,'' मध्य प्रदेश में सबसे पुराने लंबित ईओडब्ल्यू के मामले में सीजेएम अर्चना नायडू बोर्डे ने यह फैसला सुनाया है. दरअसल, वर्ष 1998 में आईआरडीपी बीमा योजना में सीहोर, शाजापुर और राजगढ़ जिलों में जिला सहकारी बैंक समितियों में फर्जी दस्तावेज और फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र लगाकर 72 लाख रु की राशि निकाली गई थी. इस मामले में 1485 बैंक अकाउंट जांच में लिए गए थे, जांच में सामने आया कि इसमें सहकारी समितियां और एलआईसी के अधिकारी संलिप्त थे.''

सजा पाने वाले अभियुक्त हुए वृद्ध

समितियों में जिम्मेदार लोगों ने फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र देकर बीमा क्लेम राशि का आहरण किया था, जिसकी शिकायत पूर्व सारंगपुर थाने में की गई थी. बाद में ये मामला ईओडब्ल्यू के पास चला गया. मामले में बीमा कंपनी एलआईसी और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया को नोडल एजेंसी बनाया गया था. तमाम साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर जिला सहकारी बैंक, साख सहकारी समितियां और एलआईसी के 39 अधिकारियों-कर्मचारियों को यह सजा सुनाई गई है. सजा पाने वाले सभी कर्मचारी वृद्ध भी हो चुके हैं.

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सीहोर : जिला सत्र न्यायालय ने 1998 के बीमा फर्जीवाड़ा मामले में 39 लोगों को एकसाथ सजा सुनाई है. इसमें से 38 लोगों को जेल भेजने की सजा सुना गई है, वहीं एक अपराधी वृद्ध और बीमार होने की वजह से अस्पताल में है. मध्य प्रदेश के इतिहास संभवत: यह पहला ऐसा मामला होगा जिसमें एक साथ इतने लोगों को सजा सुनाई गई हो. एक और चौंकाने वाली बात ये है कि ढाई दशक से ज्यादा चले इस प्रकरण के दौरान 9 आरोपियों की मौत हो चुकी है.

क्या है 1998 का बीमा फर्जीवाड़ा?

लोक अभियोजन अधिकारी अनिल बादल के मुताबिक,'' मध्य प्रदेश में सबसे पुराने लंबित ईओडब्ल्यू के मामले में सीजेएम अर्चना नायडू बोर्डे ने यह फैसला सुनाया है. दरअसल, वर्ष 1998 में आईआरडीपी बीमा योजना में सीहोर, शाजापुर और राजगढ़ जिलों में जिला सहकारी बैंक समितियों में फर्जी दस्तावेज और फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र लगाकर 72 लाख रु की राशि निकाली गई थी. इस मामले में 1485 बैंक अकाउंट जांच में लिए गए थे, जांच में सामने आया कि इसमें सहकारी समितियां और एलआईसी के अधिकारी संलिप्त थे.''

सजा पाने वाले अभियुक्त हुए वृद्ध

समितियों में जिम्मेदार लोगों ने फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र देकर बीमा क्लेम राशि का आहरण किया था, जिसकी शिकायत पूर्व सारंगपुर थाने में की गई थी. बाद में ये मामला ईओडब्ल्यू के पास चला गया. मामले में बीमा कंपनी एलआईसी और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया को नोडल एजेंसी बनाया गया था. तमाम साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर जिला सहकारी बैंक, साख सहकारी समितियां और एलआईसी के 39 अधिकारियों-कर्मचारियों को यह सजा सुनाई गई है. सजा पाने वाले सभी कर्मचारी वृद्ध भी हो चुके हैं.

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Last Updated : Feb 12, 2025, 7:40 AM IST
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