सुपौल: प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन मंगलवार को दिल्ली में हो गया. इनके निधन से चाहने वालों में शोक की लहर है. शारदा सिन्हा का गांव बिहार के सुपौल में है. यहां के लोगों को विश्वास नहीं हो रहा कि शारदा सिन्हा अब उनके बीच नहीं रहीं. गांव के लोग उनकी सुरीली आवाज को नहीं भूल रहे. भूले भी कैसे क्योंकि यह उनका मायका है और मायका का रिश्ता मरने के बाद भी खत्म नहीं होता.
घर आंगन में नहीं गुंजेंगी गीतः जिले के राघोपुर प्रखंड अंतर्गत हुलास गांव शारदा सिन्हा का मायका है. यहां के लोगों को विश्वास नहीं हो रहा है कि शारदा सिन्हा का निधन हो गया. सब यही कहते हैं कि 'वह छठ के बाद आएंगी और अपने स्वर से अपने नैहर के आंगन को गुलजार कर देंगी.'
2024 में अंतिम बार गयी थी मायकाः 31 मार्च 2024 को शारदा सिन्हा अपने भाई पद्मनाभ के पुत्र के रिशेप्सन में अपने मायके आयी थी. अंतिम बार गांव वालों ने अपनी लाडली को देखा था. उसके बाद वह गांव नहीं आयी. विवाह गीत गाकर उन्होंने वर-बधू को आशीष दिया था. परिजन कहते हैं कि शादी के माहौल में गीत गाते हुए वह इतनी मगन हो गयी कि लगता ही नहीं था कि वह कई साल बाद अपने आंगन में गा रही हैं.
मिथिला परंपरा को नहीं भूलीं: लोग कहते हैं कि अंतिम बार जब वह मायके से जा रही थी तो मिथिला परंपरा के अनुसार दूब-धान खोंइछा में लेकर गयी थी. उसने भाभियों से कहा था कि 'खोंदछा भरि कें पठाउ हमरा. बेटी के जत्ते देबै, नैहर तत्ते बेसी उन्नति करत.(खोइंछा भर कर ससुराल भेजें मुझे. बेटी को जितना नैहर से मिलता है, नैहर उतना ही खुशहाल रहता है).
याद कर रहे गांव के लोगः शारदा सिन्हा के निधन से हुलास गांव में सभी लोग शांत बैठे हैं. एक बुजुर्ग ने कहा कि 'गांव की कोहिनूर नहीं रही'. कहा कि हमने बचपन में उसे गाते हुए सुना था. अब कौन सुनायेगा 'ससुर की कमाई दिलहे..' गाना. विद्यापति के पद् उनके जैसा बहुत कम लोग गाते थे. लगता था जैसे वह खुद गीत में उतर गयी हों. 'बर सुख सार पाओल तुअ तीरे..' सुनते ही लगता है जैसे विद्यापति ने इनके लिए ही लिखा हो.
अब कौन सुनाएगा गीत?: गांव वाले कहते हैं कि वह जब भी गांव आती थी तो हर एक लोगों से मिलती थी. उसकी सरलता ही उसे महान बना दिया. शारदा सिन्हा के मायका के लोग कहते हैं कि शारदा हुलास गांव सहित पूरे बिहार की बेटी थी. मिथिला कोकिला की अंतिम विदाई से नैहर हुलास गांव उदास हो गया है. भतीजा विजय बताते हैं कि 'दीदी ने उस दिन भी घर में गीत गायी थी. अब कौन सुनायेगा गीत.'
सुपौल में ही हुई शिक्षा-दीक्षाः प्रारंभिक शिक्षा हुलास व जिला मुख्यालय स्थित विलियम्स हाईस्कूल में हुई थी. संगीत की प्रशिक्षण उन्हें महान संगीतज्ञ पंडित रघु झा से मिली, जो उस समय में विलियम्स स्कूल में ही संगीत शिक्षक पद पर पदस्थापित थे. हालांकि इससे पूर्व बचपन में पैतृक गांव हुलास में पंडित रामचन्द्र झा ने उन्हें संगीत की प्रारंभिक शिक्षा दी थी लेकिन पंडित रघु झा के सान्निध्य ने उन्हे संगीत की ऊंचाई प्रदान की. पंडित युगेश्वर झा तब तबले पर उनका संगत करते थे. तब शिक्षा विभाग के सचिव पद से सेवानृवित्त उनके पिता सुखदेव ठाकुर लोगों के अनुरोध पर स्कूल के प्राचार्य के पद पर आसीन थे.
अब किसके साथ गाएंगे लगनीःशारदा सिन्हा की चचेरी भाभी निर्मला ठाकुर ठीक से कुछ बोल नहीं पा रहीं. जब से शारदा सिन्हा के बारे में सुना है तब से वह जैसे खोई-खोई सी हैं. शुरुआती दिनों में निर्मला भाभी पुराना गीत गाकर शारदा को सिखाती थी. दोनों मिल कर जंतसार (लगनी) गाती थीं. गीत गाते हुए हंसी-मजाक भी खूब होता था. बाद में जब शारदा सिन्हा का कोई गाना हिट होता था ताे वह खुशी से झूम उठती थीं.