शिमला:हिमाचल प्रदेश केसमेज गांव में 31 जुलाई को आई बाढ़ में 36 लोग लापता हो गए थे. अभी तक लापता लोगों का कुछ पता नहीं चल पाया है. 85 किलोमीटर के एरिया में लापता लोगों की तलाश के लिए सर्च ऑपरेशन जारी है. एनडीआरएफ, सेना, होमगार्ड के जवान राहत और बचाव कार्य में जुटे हैं, लेकिन पांचवे दिन तक नाकामयाबी ही हाथ लगी है, क्योंकि इतने बड़े एरिया में मिट्टी, पत्थर और मलबे का ढेर है, जो जिंदगी की तलाश को मुश्किल बना रहा है. अब लापता लोगों की तलाश के लिए लाइव डिटेक्टर की मदद भी ली जा रही है. आखिर क्या है ये लाइव डिटेक्टर डिवाइस ? ये कैसे काम करता है ? इसे लेकर ईटीवी भारत ने शिमला में होम गार्ड के कंपनी कमांडर ईश्वर गौतम के साथ बातचीत की है.
क्या है लाइव डिटेक्टर
ईश्वर गौतम ने बताया कि, 'लाइव डिटेक्टर ऐसी कैजुअल्टी को खोजने में मदद करता है जो हमें बाहर से दिखाई नहीं देती हैं, उन्हें इस उपकरण के माध्यम से ढूंढा जा सकता है. इसे राजस्थान में भूकंप आने के दौरान, उत्तराखंड की सिलक्यारा टनल में फंसे मजदूरों को निकालने सहित कई बार इसका इस्तेमाल आपदा के समय हो चुका है. इस पर लगा कैमरा मिट्टी के अंदर तक जाता है और अपने सराउंडिंग के 3-4 मीटर के एरिया को कवर करके उस एरिया में लाइफ (जिंदा व्यक्ति) को देखता है अगर उपकरण किसी कैजुअल्टी के होने का संकेत देता है तो वहां आसानी से खुदाई कर फंसे हुए लोगों को निकाल सकते हैं. ये उपकरण भारतीय सेना, एनडीआरएफ के पास भी उपलब्ध है. इसकी मदद से दबे हुए व्यक्ति को आसानी से निकाला जा सकता है.'
ईटीवी से बातचीत के दौरान ईश्वर गौतम ने बताया कि, 'ये लगभग 5 से 7 फुट लम्बा डिवाइस होता है. इसके एक किनारे में कैमरा लगा रहता है और दूसरे किनारे में उसको लीड के माध्यम से एक स्क्रीन के साथ जोड़ा जाता है. इस स्क्रीन के जरिए अंदर के हालात को देखा जा सकता है. उपकरण में लगा कैमरा जमीन के अंदर अपने चारों ओर की विजिबिलिटी को देखता है. इसके बाद हीट, वाइब्रेशन सेंसरकी मदद से फंसे हुए लोगों का पता लगा लेता है. विक्टिम की सीधी तस्वीरें, वाइब्रेशन, हीट आदि का पता कैमरे पर चल जाता है. इस दौरान अगर कैमरे के जरिए स्क्रीन पर कोई नजर आता है तो उसे निकाला जा सकता है. ये जमीन के अंदर 20 फीट तक फंसे लोगों का पता लगा सकता है. यह अंधेरे में भी काम कर सकता है.'
डेडबॉडी को ढूंढने में भी कारगर
आपदा के दौरान ज्यादातर मौके ऐसे आते हैं जब मलबे के ढेर में जिंदा इंसान या शवों को तलाशने की जद्दोजहद करनी पड़ती है. खुदाई के दौरान बड़ी-बड़ी मशीनों का इस्तेमाल होता है, अगर कोई मलबे के नीचे दबा है तो इस खुदाई के दौरान उसे चोट भी लग सकती है. ऐसे में खुदाई से पहले मलबे के ढेर में जिंदगी की तलाश में ये लाइव डिटेक्टर मददगार साबित होता है. मलबे में किसी के जिंदा होने पर सावधानीपूर्वक खुदाई की जाती है. वैसे लाइव डिटेक्टर जिंदा के साथ-साथ मलबे के कई फीट नीचे दबी लाशों का भी पता लगा लेता है. स्किन, मस्कुलर, स्कल सिस्टम्स को डिटेक्ट कर डेड बॉडी का पता लगाकर उनकी विजिबिलिटी को कैमरे की मदद से दिखा सकता है.
कहां-कहां होता है इस्तेमाल ?
ईश्वर गौतम ने बताया कि, 'आमतौर पर इसका उपयोग भूकंप आने पर जमीदोज हुए घर या इमारतों के मलबे में जिंदगी तलाशने के लिए किया जाता है. क्योंकि इमारत का मलबा एक ही जगह पर गिरा होता है और उसके अंदर फंसे हुए लोगों को आसानी से ढूंढा जा सकता है, लेकिन बाढ़ के कारण मकान बह जाते हैं और नया मलबा भी इमारत के ऊपर आ जाता है. बिल्डिंग में रहने वाले लोग भी बह जाते हैं. ऐसे में लाइव डिटेक्टर इतना कारगर नहीं हो पाता है. इसका सही इस्तेमाल भूकंप के समय ही होता है. समेज में बाढ़ ने नींव के साथ ही मकानों को दूसरी जगह बहा दिया है, लेकिन कुछ मकान बाढ़ के कारण उसी स्थान पर मलबे में ही दबे हुए हैं. ऐसे स्थानों पर ये उपकरण कारगर हो सकता है. अगर इन मकान में कोई विक्टिम होगा तो उसे ढूंढने में आसानी होगी.'