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हिमाचल के जनजातीय इलाकों में लुप्त होने की कगार पर 90 जड़ी बूटियां, अवैज्ञानिक तरीके से हो रहा खनन - EXTINCTION HERBS HIMACHAL

हिमाचल में 90 जड़ी बूटियां विलुप्त होने की कगार पर हैं. 10 साल के शोध में ये बात सामने आई है.

लुप्त होने की कगार पर जड़ी बूटियां
लुप्त होने की कगार पर जड़ी बूटियां (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 9 hours ago

Updated : 8 hours ago

कुल्लू: हिमाचल हिमाचल प्रदेश के प्राकृतिक वादियां जहां अपने सौंदर्य के लिए देश दुनिया में मशहूर है. तो वहीं यहां पर कई ऐसी वनस्पतियां भी पाई जाती हैं, जो चिकित्सा जगत के लिए आज भी पहेलियां बनी हुई हैं. हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाकों में कई ऐसी जड़ी बूटियां हैं, जिसका आयुर्वेद में बखान किया गया है और इन जड़ी बूटियां के डिमांड भारत ही नहीं, बल्कि चीन के साथ-साथ पश्चिमी देशों में भी रहती है.

पैसों के लालच में इन जड़ी बूटियां का अवैध तरीके से खनन भी किया जा रहा है, जिसके चलते आज ये जड़ी बूटियां विलुप्त होने की कगार पर भी पहुंच गई हैं. हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के मोहल में स्थित जीबी पंत संस्थान और कुमाऊं यूनिवर्सिटी नैनीताल में शोध कर रहे एक शोधकर्ता ने जब इन सभी जड़ी बूटियां के बारे में जानकारी एकत्र की तो पता चला कि हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में पाई जाने वाली 90 जड़ी बूटियां अब विलुप्त होने की कगार पर हैं. ऐसे में अब जल्द ही इन सभी जड़ी बूटियों के संरक्षण की दिशा में भी काम करना होगा. वरना लोगों के इलाज में काम आने वाली ये जड़ी बूटियां आने वाले कुछ समय में विलुप्त हो जाएंगी और इसका लाभ भी लोगों को नहीं मिल पाएगा.

90 किस्मों की जड़ी-बूटियां अब विलुप्त होने के कगार पर

एक शोध में ये बात पता चली है कि हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला लाहौल स्पीति, जिला चंबा के पांगी, जिला कुल्लू के बंजार, सैंज, मणिकर्ण में ये जड़ी बूटियां अधिक मात्रा में पाई जाती हैं. शोध में ये बात सामने आई है कि इन इलाकों में पाई जाने वाली 90 किस्मों की जड़ी-बूटियां अब विलुप्त होने के कगार पर हैं. इसमें 14 जड़ी-बूटियां तो ऐसी हैं जो अब जंगलों से करीब 80 से 95 फीसदी तक विलुप्त हो चुकी हैं.

लुप्त होने की कगार पर जड़ी बूटियां
लुप्त होने की कगार पर जड़ी बूटियां (ETV BHARAT)

अवैज्ञानिक तरीके से हो रहा खनन

कुमांऊ यूनिवर्सिटी नैनीताल के शोधकर्ता डॉ. ओम राणा ने बताया कि, 'चम्बा जिला के पांगी की जैव विविधता और संरक्षण को लेकर 2015 से 2024 तक करीब 10 साल शोध किया. स्थानीय लोग अपनी आर्थिकी के लिए बेशकीमती जड़ी-बूटियों का खनन कर रहे हैं और जंगल से 14 तरह की जड़ी-बूटियों को सबसे अधिक निकाला जा रहा है, जिसके चलते अब पांगी के जंगल में ये जड़ी-बूटियां ढूंढे नहीं मिल रही हैं, क्योंकि अवैज्ञानिक तरीके से इनका खनन हो रहा है.'

इन जड़ी बूटियों का आयुर्वेदिक दवाओं में होता है इस्तेमाल

पर्यावरण विद गुमान सिंह ने कहा कि, 'जनजातीय इलाकों में औषधीय रूप में काम आने वाली जड़ी बूटी नागछतरी, जंगली लहसुन, चिलगोजा, काला जीरा, कडू पतीश, शुआन, थांगी (बादाम), रतन जोत, चोरा, पवाइन, तिला, सालम पंजा, शिंगुजीरा और सालम मिसरी प्रमुख रूप से शामिल हैं. इन जड़ी बूटियां का आयुर्वेदिक दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा पहाड़ी इलाकों में आज भी बुजुर्ग इन जड़ी बूटियां से कई बीमारियों का इलाज करते हैं.'

18 जड़ी बूटियां अतिसंवेदनशील श्रेणी में पहुंचे

वही, ओम राणा ने बताया कि, 'शोध में यह बात सामने आई हैं कि इन इलाको में लोगों के द्वारा सबसे अधिक नागछतरी और जंगली लहसुन को निकाला गया है. इन जड़ी बूटियों का दोहन स्थानीय लोगों ने अपनी आर्थिक मजबूती के लिए किया है. इसके अलावा 18 जड़ी बूटियां और पेड़-पौधे ऐसे हैं जो अतिसंवेदनशील श्रेणी में पहुंच गए हैं. 25 जड़ी-बूटियां असुरक्षित और 38 खतरे के नजदीक पहुंच गई हैं. शोध में ये बात भी सामने आई है कि 2007 में पांगी में जंगली लहसुन को प्रति व्यक्ति एक क्विंटल तक निकाला गया. लेकिन अब मुश्किल से यह किलोभर भी नहीं मिल पाता है.'

लुप्त होने की कगार पर जड़ी बूटियां
लुप्त होने की कगार पर जड़ी बूटियां (ETV BHARAT)

बाजार में बढ़ी इन जड़ी बूटियां की डिमांड

वहीं जिला कुल्लू के पर्यावरण विद किशन लाल, गुमान सिंह, अजीत राठौर का कहना है कि, 'पुराने समय में भी लोग जंगलों से इन जड़ी बूटियां को निकालते थे, लेकिन वो इसका उपयोग सिर्फ अपने इलाज के लिए करते थे. आज बाजार में इन जड़ी बूटियां की डिमांड बढ़ गई है और लोग अपनी कमाई के लिए भी अवैध तरीके से इनका खनन कर रहे हैं. इसके लिए प्रदेश सरकार और वन विभाग को कड़े कदम उठाने होंगे. वरना आने वाले समय में यह सभी जड़ी बूटियां पहाड़ों से विलुप्त हो जाएंगे.'

आयुर्वेद विभाग में तैनात डॉक्टर मनीष सूद ने बताया कि, 'ये सभी जड़ी बूटियां लोगों के इलाज में प्रयोग की जाती हैं और इन जड़ी बूटियां के कई चमत्कारिक लाभ भी देखने को मिलते हैं. इन जड़ी बूटियों से दिल की बीमारी, कोलेस्ट्रॉल, जोड़ों के दर्द, मधुमेह सहित अन्य बीमारियों का इलाज किया जाता है और इन जड़ी बूटियों का मरीज पर कोई बुरा प्रभाव भी नहीं पड़ता है. ऐसे में इन जड़ी बूटियों का संरक्षण करना भी आवश्यक है, ताकि लोग आयुर्वेद के माध्यम से अपना इलाज करवा सकें.'

ओम राणा ने बताया कि, 'ये शोध कार्य जीबी पंत के पूर्व प्रभारी डॉ. एसएस सामंत और प्रो. एके यादव के मार्गदर्शन से पूरा हुआ है. 10 साल तक के शोध में पांगी इलाके में कुल 780 पेड़-पौधे और जड़ी-बूटियां पाई गईं. इसमें 450 ऐसे पेड़-पौधे और जड़ी-बूटियां हैं जो लोगों के रोजमर्रा में इस्तेमाल होती हैं. खासकर इनका इस्तेमाल इमारती लकड़ी, ईंधन, पशुचारा, दवाइयां, कृषि उपकरण के निर्माण में होता है. इसमें 121 पौधे खाद्य पदार्थ के रूप में भी लोग इस्तेमाल करते हैं.'

ये भी पढ़ें: ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में बढ़ रहा जंगली जानवरों का परिवार, नजर आई नीली भेड़ और कस्तूरी मृग

कुल्लू: हिमाचल हिमाचल प्रदेश के प्राकृतिक वादियां जहां अपने सौंदर्य के लिए देश दुनिया में मशहूर है. तो वहीं यहां पर कई ऐसी वनस्पतियां भी पाई जाती हैं, जो चिकित्सा जगत के लिए आज भी पहेलियां बनी हुई हैं. हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाकों में कई ऐसी जड़ी बूटियां हैं, जिसका आयुर्वेद में बखान किया गया है और इन जड़ी बूटियां के डिमांड भारत ही नहीं, बल्कि चीन के साथ-साथ पश्चिमी देशों में भी रहती है.

पैसों के लालच में इन जड़ी बूटियां का अवैध तरीके से खनन भी किया जा रहा है, जिसके चलते आज ये जड़ी बूटियां विलुप्त होने की कगार पर भी पहुंच गई हैं. हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के मोहल में स्थित जीबी पंत संस्थान और कुमाऊं यूनिवर्सिटी नैनीताल में शोध कर रहे एक शोधकर्ता ने जब इन सभी जड़ी बूटियां के बारे में जानकारी एकत्र की तो पता चला कि हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में पाई जाने वाली 90 जड़ी बूटियां अब विलुप्त होने की कगार पर हैं. ऐसे में अब जल्द ही इन सभी जड़ी बूटियों के संरक्षण की दिशा में भी काम करना होगा. वरना लोगों के इलाज में काम आने वाली ये जड़ी बूटियां आने वाले कुछ समय में विलुप्त हो जाएंगी और इसका लाभ भी लोगों को नहीं मिल पाएगा.

90 किस्मों की जड़ी-बूटियां अब विलुप्त होने के कगार पर

एक शोध में ये बात पता चली है कि हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला लाहौल स्पीति, जिला चंबा के पांगी, जिला कुल्लू के बंजार, सैंज, मणिकर्ण में ये जड़ी बूटियां अधिक मात्रा में पाई जाती हैं. शोध में ये बात सामने आई है कि इन इलाकों में पाई जाने वाली 90 किस्मों की जड़ी-बूटियां अब विलुप्त होने के कगार पर हैं. इसमें 14 जड़ी-बूटियां तो ऐसी हैं जो अब जंगलों से करीब 80 से 95 फीसदी तक विलुप्त हो चुकी हैं.

लुप्त होने की कगार पर जड़ी बूटियां
लुप्त होने की कगार पर जड़ी बूटियां (ETV BHARAT)

अवैज्ञानिक तरीके से हो रहा खनन

कुमांऊ यूनिवर्सिटी नैनीताल के शोधकर्ता डॉ. ओम राणा ने बताया कि, 'चम्बा जिला के पांगी की जैव विविधता और संरक्षण को लेकर 2015 से 2024 तक करीब 10 साल शोध किया. स्थानीय लोग अपनी आर्थिकी के लिए बेशकीमती जड़ी-बूटियों का खनन कर रहे हैं और जंगल से 14 तरह की जड़ी-बूटियों को सबसे अधिक निकाला जा रहा है, जिसके चलते अब पांगी के जंगल में ये जड़ी-बूटियां ढूंढे नहीं मिल रही हैं, क्योंकि अवैज्ञानिक तरीके से इनका खनन हो रहा है.'

इन जड़ी बूटियों का आयुर्वेदिक दवाओं में होता है इस्तेमाल

पर्यावरण विद गुमान सिंह ने कहा कि, 'जनजातीय इलाकों में औषधीय रूप में काम आने वाली जड़ी बूटी नागछतरी, जंगली लहसुन, चिलगोजा, काला जीरा, कडू पतीश, शुआन, थांगी (बादाम), रतन जोत, चोरा, पवाइन, तिला, सालम पंजा, शिंगुजीरा और सालम मिसरी प्रमुख रूप से शामिल हैं. इन जड़ी बूटियां का आयुर्वेदिक दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा पहाड़ी इलाकों में आज भी बुजुर्ग इन जड़ी बूटियां से कई बीमारियों का इलाज करते हैं.'

18 जड़ी बूटियां अतिसंवेदनशील श्रेणी में पहुंचे

वही, ओम राणा ने बताया कि, 'शोध में यह बात सामने आई हैं कि इन इलाको में लोगों के द्वारा सबसे अधिक नागछतरी और जंगली लहसुन को निकाला गया है. इन जड़ी बूटियों का दोहन स्थानीय लोगों ने अपनी आर्थिक मजबूती के लिए किया है. इसके अलावा 18 जड़ी बूटियां और पेड़-पौधे ऐसे हैं जो अतिसंवेदनशील श्रेणी में पहुंच गए हैं. 25 जड़ी-बूटियां असुरक्षित और 38 खतरे के नजदीक पहुंच गई हैं. शोध में ये बात भी सामने आई है कि 2007 में पांगी में जंगली लहसुन को प्रति व्यक्ति एक क्विंटल तक निकाला गया. लेकिन अब मुश्किल से यह किलोभर भी नहीं मिल पाता है.'

लुप्त होने की कगार पर जड़ी बूटियां
लुप्त होने की कगार पर जड़ी बूटियां (ETV BHARAT)

बाजार में बढ़ी इन जड़ी बूटियां की डिमांड

वहीं जिला कुल्लू के पर्यावरण विद किशन लाल, गुमान सिंह, अजीत राठौर का कहना है कि, 'पुराने समय में भी लोग जंगलों से इन जड़ी बूटियां को निकालते थे, लेकिन वो इसका उपयोग सिर्फ अपने इलाज के लिए करते थे. आज बाजार में इन जड़ी बूटियां की डिमांड बढ़ गई है और लोग अपनी कमाई के लिए भी अवैध तरीके से इनका खनन कर रहे हैं. इसके लिए प्रदेश सरकार और वन विभाग को कड़े कदम उठाने होंगे. वरना आने वाले समय में यह सभी जड़ी बूटियां पहाड़ों से विलुप्त हो जाएंगे.'

आयुर्वेद विभाग में तैनात डॉक्टर मनीष सूद ने बताया कि, 'ये सभी जड़ी बूटियां लोगों के इलाज में प्रयोग की जाती हैं और इन जड़ी बूटियां के कई चमत्कारिक लाभ भी देखने को मिलते हैं. इन जड़ी बूटियों से दिल की बीमारी, कोलेस्ट्रॉल, जोड़ों के दर्द, मधुमेह सहित अन्य बीमारियों का इलाज किया जाता है और इन जड़ी बूटियों का मरीज पर कोई बुरा प्रभाव भी नहीं पड़ता है. ऐसे में इन जड़ी बूटियों का संरक्षण करना भी आवश्यक है, ताकि लोग आयुर्वेद के माध्यम से अपना इलाज करवा सकें.'

ओम राणा ने बताया कि, 'ये शोध कार्य जीबी पंत के पूर्व प्रभारी डॉ. एसएस सामंत और प्रो. एके यादव के मार्गदर्शन से पूरा हुआ है. 10 साल तक के शोध में पांगी इलाके में कुल 780 पेड़-पौधे और जड़ी-बूटियां पाई गईं. इसमें 450 ऐसे पेड़-पौधे और जड़ी-बूटियां हैं जो लोगों के रोजमर्रा में इस्तेमाल होती हैं. खासकर इनका इस्तेमाल इमारती लकड़ी, ईंधन, पशुचारा, दवाइयां, कृषि उपकरण के निर्माण में होता है. इसमें 121 पौधे खाद्य पदार्थ के रूप में भी लोग इस्तेमाल करते हैं.'

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