सागर. वैसे तो बुंदेलखंड में कई तरह की रोचक परंपराएं और रिवाज सुनने मिलते हैं पर होलिका दहन से जुड़ी इस परंपरा के बारे में आपने नहीं सुना होगा. यहां एक ऐसा गांव है जहां देवी के प्रकोप के चलते होलिका दहन (Holika dahan) नहीं किया जाता. एक बार गांव के लोगों ने इस परंपरा को तोड़कर होलिका दहन किया था, जिसके बाद गांव पर भयानक संकट आ गया था. हम बात कर रहे हैं सागर जिले केआदिवासी गांव हथखोह की.
होलिका दहन को लेकर ये है दहशत की वजह
जहां पूरे देश में लोग होलिका दहन से ही होली के रंगों में रंगे नजर आते हैं, तो हथखोह में होलिका दहन पर एक अंजान खौफ लोगों के दिलोदिमाग पर छा जाता है. ये परम्परा आज की नहीं, करीब चार सौ साल पुरानी परम्परा है. लोग बताते हैं कि गांव में झारखंडन माता का मंदिर है और ऐसा कहा जाता है कि अगर गांव में होली जलाते हैं, तो माता नाराज हो जाती है और कोई ना कोई प्रकोप गांव पर आ जाता है. एक बार गांव के लोगों ने परंपरा तोड़कर होलिका दहन किया, तो पूरे गांव के घरों में आग लग गई थी.
होली करीब आते ही गांव में पसर जाता है सन्नाटा
सागर से गुजरने वाले नेशनल हाइवे-44 के करीब घने जंगलों में बसा हथखोह गांव एक तरह से आदिवासी बाहुल्य गांव है. जिले की देवरी जनपद पंचायत की ग्राम पंचायत चिरचिटा सुखजू अंतर्गत हथखोह में आदिवासी और लोधी समाज की जनसंख्या ज्यादा है. इस गांव में वैसे तो सभी तीज त्यौहार बुंदेलखंड की परंपराओं के तहत मनाए जाते हैं. लेकिन होली के त्यौहार के पहले से ही इस गांव के लोगों को एक अंजानी दहशत घर कर लेती है. जहां हर दूसरे गांवों में लोग होलिका दहन की तैयारियों में लगे रहते हैं, वहीं हथखोह गांव में एक अजीब सा सन्नाटा पसरने लगता है. ग्रामीण यहां अगले दिन रंग तो खेलते हैं पर होलिका दहन से डरते हैं.
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