रतलाम: राजस्थान के कई जिलों में गोवंश में लंपी वायरस की बीमारी फैलने के बाद मध्य प्रदेश में भी लंपी वायरस को लेकर अलर्ट जारी किया गया है. राजस्थान से लगे मध्य प्रदेश के सीमावर्ती जिलों रतलाम, मंदसौर और नीमच में विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश दिए गए हैं. पशुपालन एवं डेयरी विभाग ने सभी पशु चिकित्सालय और वेटनरी फील्ड ऑफिसर को सतर्कता बरतने एवं पशुओं में इस बीमारी के लक्षण दिखाई देने पर उपचार देने एवं टीकाकरण अभियान चलाने के निर्देश दिए है.
2 वर्ष पहले लंपी वायरस से मालवा क्षेत्र में गोवंशों की मौत
पशु पालन एवं डेयरी विभाग ने एडवाइजरी जारी कर पशुओं में लंपी वायरस के लक्षण नजर आने पर पशु को आइसोलेट करने और उपचार करवाने की सलाह भी दी है. गौरतलब है कि 2 वर्ष पूर्व लंपी वायरस की वजह से फैली लंपी स्किन डिसिस की वजह से मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में दर्जनों गोवंश की मौत हो गई थी. यह वाइरस मुख्यतः गोवंश में ही फैलता है. जिससे पशु के शरीर पर छोटी-छोटी गिठाने हो जाती हैं. जिससे खून और लिक्विड बहने लगता है. पशु खाना- पीना छोड़ देता है जिसकी वजह से कमजोर होकर उसकी मौत हो जाती है.
क्या है लंपी वायरस
पशु पालन एवं डेयरी विभाग के उपसंचालक डॉ. नवीन शुक्ला ने ईटीवी भारत से चर्चा में बताया कि, ''लंपी वायरस पशुओं में होने वाली एक वायरल बीमारी है. लंपी वायरस रक्त चूसने वाले कीड़ों से एक पशु से दूसरे पशु तक पहुंचता है. इस बीमारी की शुरुआत में पशु के शरीर पर छोटी-छोटी गिठाने बन जाती हैं, जो बाद में छोटे-छोटे घावों में बदल जाती हैं और पशु के शरीर पर जख्म नजर आने लगते हैं. पशु खाना पीना कम कर देता है और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है.'' डॉ नवीन शुक्ला के अनुसार इसमें मृत्यु दर कम होती है लेकिन इस बीमारी का संक्रमण तेजी से फैलता है. जिससे पशुओं का दुग्ध उत्पादन प्रभावित हो जाता है. कुछ मामलों में पशु कमजोर हो जाता है जिससे उसकी मौत हो जाती है. डॉ शुक्ला ने बताया कि, ''यह बीमारी गोवंश में ही प्रमुखता से फैलती है. इस बीमारी का पशुओं से मनुष्यों में ट्रांसफर होने की संभावना नहीं होती है.''
पशुओं का टीकाकरण करवा लें पशु पालक
पशु पालन विभाग के विशेषज्ञ डॉक्टरों के अनुसार, सबसे पहले तो पशुपालक अपने पशुओं का नियमित टीकाकरण करवाए. यदि टीकाकरण नहीं करवाया है तो एलएसडी (लंपी स्किन डिसीस) का टीका अपने सभी पशुओं को लगवाएं. प्रभावित क्षेत्र के पशु मेला अथवा पशु हाट से पशु खरीद कर नहीं लाए एवं न ही बिक्री के लिए ले जाएं. अपने स्वस्थ्य पशुओं को अन्य पशुओं के संपर्क में आने से बचा कर रखें. पशुओं के आवास को साफ एवं स्वच्छ रखें. मच्छर और मक्खी से पशुओं का बचाव करें. गांव के सार्वजनिक चारागाह, तालाब, नदी-नाले पर पशुओं को चराने या पानी पिलाने नहीं ले जाए. पशुओं के शरीर पर बीमारी के लक्षण पाए जाने पर पशु को अन्य पशुओं से अलग बांध कर उसके चारे और पानी की व्यवस्था पृथक करें. स्थानीय पशु चिकित्सक से पशु का उपचार करवाएं. पशु को समय रहते उपचार मिलने पर दो से तीन हफ्तों में पशु स्वस्थ्य हो जाता है.