भोपाल: भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने से निकली जहरीली गैस ने हजारों लोगों की सासें छीन ली थीं. इसका असर लाखों की संख्या में यूनियन कार्बाइड के आसपास की बस्तियों में रहने वाले लाखों लोगों पर हुआ. जिसके कारण उनमें सेरेब्रल पाल्सी, जन्मजात विसंगतिया, श्वास रोग, अपंगता और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के लक्षण देखने को मिले. यही नहीं इस घटना के बाद लाखों टन जहरीला कचरा यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में पड़ा हुआ था, जिसके कारण यहां की मिट्टी और भूजल भी निरंतर प्रदूषित हो रहा था.
हालांकि अब इस कचरे को पीथमपुर के रैमकी एनवायरो के इंसीनेटर में जलाने के लिए 12 कंटेनरों में भरकर भेजा है. लेकिन वहां भी लोग इस कचरे को पीथमपुर में जलाने का पुरजोर विरोध कर रहे हैं. एक प्रदर्शनकारी ने खुद को आग भी लगा ली, जिससे एक अन्य प्रदर्शनकारी भी चपेट में आ गया. अब इन दोनों प्रदर्शनकारियों का अस्पताल में इलाज किया जा रहा है. वहीं हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी पीथमपुर में रैमकी एनवायरों की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं. आइये जानते हैं कि क्या वाकई में ये कचरा इतना जहरीला है या ये विरोध प्रदर्शन केवल राजनीतिक स्टंट तक सीमित है.
भोपाल के लिए कभी न भूल पाने वाली रात
साल 1984 में 2 और 3 दिसंबर की रात भोपाल के लिए कभी न भूल पाने वाली सुनामी लेकर आई. उस रात जब लोग बिस्तर पर सोने जा रहे थे, उन्हें नहीं पता था कि अब वो कभी सोकर नहीं उड़ेंगे. वहीं जो लोग जाग रहे थे, उनको तो समझ ही नहीं आया कि हो क्या रहा है. मिर्ची के जलने की तरह तीखी गंध लोगों को बेचैन कर रही थी, आंखों में तेज जलन हो रही थी. लोग जब तक इसे समझ पाते, तब तक इस जहरीली गैस ने आधे शहर को अपनी चपेट में ले लिया.
उस रात जो सो रहे थे, वो बाद में कभी सोकर नहीं उठे. जो जाग रहे थे, वो पुराने शहर से परिवार और बच्चों को लेकर भाग रहे थे. हजारों लोग रास्ते में ही गिरकर मर गए. यह घटना उस समय विश्व के सबसे बड़े औद्योगिक हादसों में से एक थी, जिसमें 20 हजार से अधिक लोग मारे गए और करीब पौने छह लाख लोग प्रभावित हुए.
त्रासदी का भोपाल ने झेला दंश, अब इंदौर की बारी
गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली रचना ढींगरा बताती हैं, यूनियन कार्बाइड में करीब 11 लाख मीट्रिक टन जहरीला कचरा पड़ा हुआ है. यह रिपोर्ट नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट नागपुर ने विस्तृत सर्वेक्षण के बाद साल 2010 में राज्य सरकार को सौंपी थी. लेकिन राज्य सरकार यहां से केवल 337 मीट्रिक टन कचरा पीथमपुर लेकर गई है. जो कि यहां पड़े सकल कचरे का एक प्रतिशत भी नहीं है.''
रचना ढींगरा ने कहा कि, ''जिस प्रकार गैस त्रासदी का दंश भोपाल के लोग झेल रहे हैं, आने वाले दिनों में इसका प्रतिकूल असर पीथमपुर के रहवासियों में भी देखने को मिल सकता है. दरअसल 337 मीट्रिक टन कचरा जलाने में डीजल व अन्य संसाधनों का इस्तेमाल भी किया जाएगा. जिससे कचरा खत्म नहीं होगा, बल्कि यह करीब तीन गुना यानि 900 मीट्रिक टन हो जाएगा. ऐसा निष्पादन करने वाली संस्था भी मानती है. लेकिन जलाने के बाद इस कचरे का जहर खत्म नहीं होगा.''
''वहीं कचरा जलाने के बाद इससे जो जहरीली गैसें निकलेंगी, वो लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालेंगी.'' रचना ने बताया कि, ''इसके पहले सात बार पीथमपुर में कचरा जलाने का ट्रायल भी हुआ. जिसमें 5 बार इस कचरे को जलाने के दौरान डाइऑक्साइड समेत न्यूरॉन्स जैसे जहरीले रसायन निकले. इसके बावजूद सरकार इस कचरे को जलाकर अब भोपाल के बाद पीथमपुर के लोगों की जान भी संकट में डालने जा रही है.''
एक मुख्यमंत्री के लिए जनता का हित सर्वोपरि होना चाहिए।
— Umang Singhar (@UmangSinghar) January 3, 2025
आप सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार पीथमपुर में कचरा जलाने की बात कर रहे हैं. यहाँ जनता अपने आप को जलाने तक पे उतारू हो गयी है!
क्या आपकी सरकार ने पीथमपुर की जनता को विश्वास में लिया?
क्या कोई जनसुनवाई हुई?
अगर नहीं हुई… pic.twitter.com/lKYV8i4SMD
अभी भी इस कचरे में जहरीले रसायन बाकी
साल 2015 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भोपाल गैस त्रासदी और एवं पुर्नवास विभाग एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की उपस्थिति में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में पड़े हुए कचरे का लैब में परीक्षण किया था. तब इन जाचों में सामने आया कि इस जहरीले कचरे में कार्बन अपषिष्ठ बड़ी मात्रा में मौजूद हैं. इस कचरे में क्लोरीन, सेविन, ऑर्गेनो क्लोरीन कंपाउंड और हैवी मेटल्स की अधिकता पाई गई.
वहीं साल 2005 में फैक्ट्री के आसपास की बस्तियों में 29 से अधिक कॉलोनियों में भूजल की टेस्टिंग की गई थी. जिसमें सामने आया कि आसपास की बस्तियों का पानी भी जहरीला हो गया है. ऐसे में मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गैस प्रभावित बस्तियों के सभी हैंड पंप सील कर दिए थे. हैंडपंप या बोर से पानी निकालने पर यहां जुर्माने और सजा का प्रावधान है. यनियन कार्बाइड फैक्ट्री के आसपास की 15 कॉलोनियों के भूजल में नाइट्रेट, क्लोराइड और कैडमियम की पात्रा पाई गई थी.
आखिर पीथमपुर में क्यों जलाया जा रहा कचरा
बता दें कि, ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार इस कचरे को पीथमपुर में ही निष्पादित करना चाहती थी. इससे पहले राजय सरकार ने यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को जलाने के लिए कई प्रयास कर चुकी है, लेकिन सब विफल रहे. सबसे पहले साल 2007 में गुजरात के अंकलेश्वर में कचरा निपटान की योजना पर काम शुरु हुआ, लेकिन वहां स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों के विरोध के बाद इसे रोक दिया गया. इसके बाद साल 2009 में हैदराबाद के डुंडीगल और मुंबई, फिर साल 2011 में नागपुर स्थित डीआरडीओ में कचरे के निपटान के प्रयास किए गए. लेकिन इन सब स्थानों पर स्थानीय लोगों के विरोध के चलते अब तक इस कचरे का निपटान नहीं हो पाया था. ऐसे में 28 जनवरी 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश के पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड के कचरे को जलाने का आदेश दिया था.
कचरा जलाने से अच्छा दफन करना ज्यादा सुरक्षित
यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को जलाने के लिए इंदौर और पीथमपुर के लोग न केवल विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, बल्कि लोगों ने इस कचरे को नहीं जलाने के लिए हाईकोर्ट में भी याचिका लगाई है. इंदौर के वरिष्ठ कैंसर रोग विशेषज्ञ एस एस नैयर ने दावा करते हुए कहा कि, ''यूनियन कार्बाइड के कचरे को पीथमपुर में जलाने के लिए जो केमिकल मिलेंगे, उससे कई तरह की घातक गैस भी निकलेगी. जो पर्यावरण में आकर फूड चेन में शामिल हो जाएगी.'' उन्होंने कहा, ''इस कचरे में 67 तरह के केमिकल हैं. जिनके जलने पर 150 मीट्रिक टन धुआं निकलेगा.
इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका लगाने वाले अधिवक्ता अभिनव धनोतरकर का कहना है कि, ''पीथमपुर में कचरा निपटान प्लांट गंभीर नदी के करीब है, जो यशवंत सागर को पानी सप्लाई का स्रोत है. यह इंदौर के 40 प्रतिशत हिस्से को पानी की सप्लाई करता है. इससे न केवल भूजल, बल्कि मिट्टी और हवा भी प्रदूषित होगी. ऐसे में इस कचरे को जलाने की बजाय सीमेंट की दीवारें बनाकर जमीन में दफन कर दिया जाए.''
नेता प्रतिपक्ष ने CM से पूछा, क्या रहवासियों को विश्वास में लिया
पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड के कचरे को जलाने पर सामने आए स्थानीय लोगों के गुस्से को लेकर मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर ट्वीट कर कहा कि, ''एक मुख्यमंत्री के लिए जनता का हित सर्वाेपरि होना चाहिए. आप सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार पीथमपुर में कचरा जलाने की बात कर रहे हैं. यहां जनता अपने आप को जलाने तक पे उतारू हो गयी है. क्या आपकी सरकार ने पीथमपुर की जनता को विश्वास में लिया? क्या कोई जनसुनवाई हुई? अगर नहीं हुई तो तत्काल जनसुनवाई होना चाहिए. वैसे भी पीथमपुर की जनता बोरिंग (नल-कूप) का अत्यधिक टीडीएस वाला पानी पी रही है, जो जनता के स्वस्थ के लिए हानिकारक है.'' उन्होंने कहा कि, ''भाजपा सरकार पीथमपुर की जनता के लिए स्वच्छ हवा-पानी के लिए क्या प्रयास कर रही है, जनता को आश्वस्त कर कार्यवाही करें.''
सीएम ने कहा, 25 साल बाद केमिकल का असर खत्म
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बताया कि, ''ट्रायल रन के निष्कर्षों के आधार पर सर्वाेच्च न्यायालय ने अप्रैल, 2014 में यूसीआईएल के 10 मीट्रिक टन कचरे का एक और ट्रायल रन भारत सरकार, पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय नई दिल्ली की निगरानी में टीएसडीएफ पीथमपुर मे किये जाने के निर्देश दिए गए थे. सर्वाेच्च न्यायालन ने इस ट्रायल रन की वीडियोग्राफी भी सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिये थे. उसके निर्देशानुसार अगस्त, 2015 में ट्रायल रन के बाद केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रायोगिक निपटान की समस्त रिपोर्ट सर्वाेच्च न्यायालय में प्रस्तुत की गई.''
रिपोर्ट्स में यह स्पष्ट हुआ कि इस प्रकार के कचरे के निपटान से वातावरण को कोई नुकसान नहीं हुआ है. उच्चतम न्यायालय ने सभी रिपोर्ट के गहन परीक्षण के पश्चात ही यूसीआईएल के कचरे के निपटान की कार्यवाही को आगे बढ़ाने एवं उन्हें नष्ट करने का निर्देश जारी किया. सीएम ने कहा कि, ''वैसे भी 25 साल तक खुले में पड़े रहने के कारण केमिकल का असर खत्म हो गया है. अब यह इतना जहरीला नहीं है. फिर भी सरकार प्रदेश की जनता के हित को देखते हुए सुरक्षात्मक तरीके से इसका निष्पादन करने जा रही है.''
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फैक्ट्री के लोगों को भी पता नहीं था गैस इतनी जहरीली
भोपाल के पूर्व फोरेंसिक एक्सपर्ट डॉ. डीके सतपथी ने बताया कि, ''यूनियन कार्बाइड कारखाने से 40 साल पहले गैस लीक होने के असर को अब गैस पीड़ित लोगों की अगली पीढ़ी में भी देखा जा रहा है. जब फैक्ट्री से आइसोसाइनेट गैस लीके हुई तो कंपनी के अधिकारियों को भी पता नहीं था, कि यह गैस इतनी जहरीली होगी. उन्हें इससे बचाव के उपाय भी नहीं पता था, जिससे इसका असर कम किया जा सके.''
डॉ. सतपथी ने इस त्रासदी के दौरान अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि, ''उन्होंने पहले दिन 875 पोस्टमार्टम किए थे और अगले पांच वर्षों में 18,000 शव परीक्षण किए.'' बता दें कि गैस त्रासदी के समय डॉ. सतपथी हमीदिया अस्पताल में पदस्थ थे.
हाईकोर्ट में सरकार ने दी रिपोर्ट, 6 को होगी सुनवाई
भोपाल में यूनियन कार्बाइड के कचरे को हटाने को लेकर हाईकोर्ट में मामला चल रहा है. राज्य सरकार को कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के इस जहरीले कचरे को पीथमपुर भेजने और इसे सुरक्षित तरीके से जलाने के लिए 3 जनवरी 2025 तक का समय दिया था. गैस राहत एवं पुनर्वास विभाग के संचालक स्वतंत्र कुमार सिंह ने बताया कि, "यह कचरा अब इतना जहरीला नहीं है. इसीलिए पीथमपुर भेजकर इंसीनेटर में जलाने का निर्णय लिया गया है. आज राज्य सरकार ने अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट के सामने रखी है. अब इस मामले में 6 जनवरी 2025 को हाईकोर्ट सुनवाई करेगी.