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वैनगंगा पुल बहने की विभागीय जांच को हाईकोर्ट में चुनौती, कोर्ट ने कहा- हस्ताक्षर किए हैं तो आप दोषी - HIGH COURT ON WAINGANGA BRIDGE CASE

2020 में भारी बारिश के बाद बह गया था बैनगंगा पुल, विभागीय जांच में फंसे अधिकारी ने हाईकोर्ट में लगाई थी याचिका.

HIGH COURT ON WAINGANGA BRIDGE CASE
2020 में सिवनी के पास बह गया था वैनगंगा पुल (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 4, 2025, 7:27 AM IST

जबलपुर : वैनगंगा पुल बहने के मामले में चल रही विभागीय जांच को लेकर सोमवार को जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. विभागीय जांच में पेश की गई चार्जशीट को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. याचिका में कहा गया था कि पुल के डीपीआर बनाने में याचिकाकर्ता की कोई भूमिका नहीं थी, इसके बावजूद उसे भी आरोपी माना जा रहा है. इसपर हाईकोर्ट जस्टिस विनय सराफ ने पाया कि डीपीआर स्वीकार करने में याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर हैं, जिसपर एकलपीठ ने कहा है कि डीपीआर स्वीकार करने में हस्ताक्षर हैं, तो विभागीय जांच सही है.

क्या है वैनगंगा पुल बहने का मामला?

दरअसल, याचिकाकर्ता अजय सिंह रघुवंशी की ओर से दायर की गई याचिका में कहा गया था कि वह मप्र पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड में कार्यपालन यंत्री के रूप में पदस्थ थे. साल 2020 में उन्हें पीआईयू 2 में महाप्रबंधक के पद पर पदस्थ किया गया. इस दौरान 2020 में अत्यधिक बारिश के चलते संजय सरोवर बांध से काफी पानी छोड़ा गया, जिससे बरबरपुर-सोनवारा मार्ग में स्थित वैनगंगा पुल बह गया था. इसकी जांच के लिए उच्च स्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया था, जिसमें बनी चार्जशीट में उन्हें भी दोषी माना गया.

याचिकाकर्ता को क्यों माना गया दोषी?

दरअसल, वैनगंगा पुल बहने के मामले में जांच कमेटी ने पाया कि 20 किलोमीटर दूर स्थित संजय सरोवर बांध से पानी छोड़ने के दौरा पर जल ग्रहण क्षेत्र की गणना गलत तरीके से की गई थी, जिसके लिए साल 2018 में डीपीआर तैयार करने वाले सलाहकार, पर्यवेक्षण सलाहकार, महाप्रबंधक जबलपुर व महाप्रबंधक सिवनी को दोषी माना गया.

विभागीय जांच में दखल नहीं देगा कोर्ट

एकलपीठ ने पाया कि डीपीआर स्वीकार करने में महाप्रबंधक सिवनी के रूप में याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर हैं. इसपर कोर्ट ने कहा कि विभागीय जांच और कार्यवाही में कोर्ट को हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं लगता है, जांच अभी भी लंबित है और जांच अधिकारी उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर विचार करेंगे. इस आदेश के साथ एकलपीठ ने चार्जशीट को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया.

यह भी पढ़ें-

किस कानून में लिखा है कि सीएम के कार्यक्रम में निगमायुक्त डीजल भरवाए? मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का सवाल

जबलपुर : वैनगंगा पुल बहने के मामले में चल रही विभागीय जांच को लेकर सोमवार को जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. विभागीय जांच में पेश की गई चार्जशीट को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. याचिका में कहा गया था कि पुल के डीपीआर बनाने में याचिकाकर्ता की कोई भूमिका नहीं थी, इसके बावजूद उसे भी आरोपी माना जा रहा है. इसपर हाईकोर्ट जस्टिस विनय सराफ ने पाया कि डीपीआर स्वीकार करने में याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर हैं, जिसपर एकलपीठ ने कहा है कि डीपीआर स्वीकार करने में हस्ताक्षर हैं, तो विभागीय जांच सही है.

क्या है वैनगंगा पुल बहने का मामला?

दरअसल, याचिकाकर्ता अजय सिंह रघुवंशी की ओर से दायर की गई याचिका में कहा गया था कि वह मप्र पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड में कार्यपालन यंत्री के रूप में पदस्थ थे. साल 2020 में उन्हें पीआईयू 2 में महाप्रबंधक के पद पर पदस्थ किया गया. इस दौरान 2020 में अत्यधिक बारिश के चलते संजय सरोवर बांध से काफी पानी छोड़ा गया, जिससे बरबरपुर-सोनवारा मार्ग में स्थित वैनगंगा पुल बह गया था. इसकी जांच के लिए उच्च स्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया था, जिसमें बनी चार्जशीट में उन्हें भी दोषी माना गया.

याचिकाकर्ता को क्यों माना गया दोषी?

दरअसल, वैनगंगा पुल बहने के मामले में जांच कमेटी ने पाया कि 20 किलोमीटर दूर स्थित संजय सरोवर बांध से पानी छोड़ने के दौरा पर जल ग्रहण क्षेत्र की गणना गलत तरीके से की गई थी, जिसके लिए साल 2018 में डीपीआर तैयार करने वाले सलाहकार, पर्यवेक्षण सलाहकार, महाप्रबंधक जबलपुर व महाप्रबंधक सिवनी को दोषी माना गया.

विभागीय जांच में दखल नहीं देगा कोर्ट

एकलपीठ ने पाया कि डीपीआर स्वीकार करने में महाप्रबंधक सिवनी के रूप में याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर हैं. इसपर कोर्ट ने कहा कि विभागीय जांच और कार्यवाही में कोर्ट को हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं लगता है, जांच अभी भी लंबित है और जांच अधिकारी उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर विचार करेंगे. इस आदेश के साथ एकलपीठ ने चार्जशीट को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया.

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