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सत्ता का इस्तेमाल आज़ाद कराने के लिए किया जा सकता है, उत्पीड़न के लिए नहीं: सीजेआई - सुप्रीम कोर्ट हीरक जयंती वर्ष

CJI for securing respect of citizens : नागरिकों का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सत्ता का इस्तेमाल आजाद कराने के लिए किया जा सकता है, लेकिन अत्याचार करने या उनका बहिष्कार करने के लिए कभी नहीं किया जा सकता. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सुमित सक्सेना की रिपोर्ट.

D Y Chandrachud
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 28, 2024, 7:36 PM IST

नई दिल्ली:भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने रविवार को कहा कि न्याय करने की कला सामाजिक और राजनीतिक दबाव व मनुष्य में मौजूद अंतर्निहित पूर्वाग्रहों से मुक्त होनी चाहिए. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि न्यायालय एकमात्र गारंटर नहीं है, बल्कि यह अंतिम मध्यस्थ है जिसे मुक्त (liberate) कराने के लिए शक्ति का उपयोग किया जा सकता है. लेकिन कभी भी उत्पीड़न या बहिष्कार नहीं करना चाहिए, और साथ ही इस अदालत को खुद को एक वैध संस्था के रूप में स्थापित करने के लिए नागरिकों के सम्मान को सुरक्षित करना चाहिए.

सीजेआई ने कहा कि लिंग, दिव्यांगता, नस्ल, जाति और कामुकता पर सामाजिक कंडीशनिंग द्वारा पैदा किए गए अपने अवचेतन दृष्टिकोण को दूर करने के लिए अदालतों के न्यायाधीशों को शिक्षित और संवेदनशील बनाने के लिए संस्था के भीतर से प्रयास किए जा रहे हैं.

सीजेआई ने सुप्रीम कोर्ट के हीरक जयंती वर्ष की शुरुआत के अवसर पर औपचारिक पीठ का नेतृत्व करते हुए कहा कि एक स्वतंत्र न्यायपालिका का मतलब केवल कार्यपालिका और विधायिका शाखाओं से संस्था को अलग करना नहीं है, बल्कि न्यायाधीशों के रूप में उनकी भूमिकाओं के प्रदर्शन में व्यक्तिगत न्यायाधीशों की स्वतंत्रता भी है. सीजेआई के अदालत कक्ष में शीर्ष अदालत के सभी 34 न्यायाधीश पीठ पर थे.

सीजेआई ने कहा कि 'निर्णय लेने की कला सामाजिक और राजनीतिक दबाव और मनुष्य द्वारा धारण किए जाने वाले अंतर्निहित पूर्वाग्रहों से मुक्त होनी चाहिए.' सीजेआई ने कहा कि 'अदालत एकमात्र गारंटर नहीं है, लेकिन यह अंतिम मध्यस्थ है कि शक्ति का उपयोग मुक्ति, मुक्ति और शामिल करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन उत्पीड़न या बहिष्कार के लिए कभी नहीं, और आज की नई चुनौतियों को हमें अदालत के इस सबसे पवित्र कर्तव्य से कभी विचलित नहीं करना चाहिए.'

तीन सिद्धांतों में से एक का हवाला देते हुए, जो संवैधानिक जनादेश के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के काम करने के लिए आवश्यक हैं सीजेआई ने कहा कि इस अदालत को खुद को एक वैध संस्था के रूप में स्थापित करने के लिए नागरिकों के सम्मान और 'हमारे नागरिकों का विश्वास हमारी अपनी वैधता का निर्धारक है.' लंबित मामलों पर सीजेआई ने कहा कि वर्तमान में, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कुल 65,915 पंजीकृत मामले लंबित हैं.

सीजेआई ने कहा कि 'हमें कठिन प्रश्न पूछने की आवश्यकता है कि क्या करने की जरूरत है. निर्णय लेने के दृष्टिकोण में आमूल-चूल परिवर्तन होना चाहिए... मेरा मानना ​​है कि हमें इस बात की सामान्य समझ होनी चाहिए कि हम कैसे बहस करते हैं और हम कैसे निर्णय लेते हैं और सबसे ऊपर, उन मामलों पर जिन्हें हम निर्णय लेने के लिए चुनते हैं.'

उन्होंने कहा कि यदि हम इन गंभीर मुद्दों को हल करने के लिए कठोर विकल्प नहीं चुनते हैं और कठिन निर्णय नहीं लेते हैं तो अतीत से उत्पन्न उत्साह अल्पकालिक हो सकता है.

उन्होंने कहा कि 'लिंग, दिव्यांगता, नस्ल, जाति और कामुकता पर सामाजिक कंडीशनिंग द्वारा पैदा किए गए अपने अवचेतन दृष्टिकोण को दूर करने के लिए अदालतों के न्यायाधीशों को शिक्षित और संवेदनशील बनाने के लिए संस्था के भीतर से प्रयास किए जा रहे हैं.'

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि इस अदालत की वैधता नागरिकों के इस विश्वास से भी मिलती है कि यह विवादों का एक तटस्थ और निष्पक्ष मध्यस्थ है जो समय पर न्याय देगा. विभिन्न मुद्दों पर पीठों के बीच असहमति पर सीजेआई ने कहा कि विभिन्न पीठों के बीच इस संवाद प्रक्रिया में ही संवैधानिक ढांचे के सबसे करीब निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है.

उन्होंने कहा कि 'हम अनेक स्वरों में वर्तमान और भविष्य दोनों के बारे में बात करते हैं. हम, जैसा कि इसे कभी-कभी कहा जाता है, एक बहुभाषी न्यायालय हो सकते हैं. लेकिन हमारी बहुभाषी प्रकृति की ताकत विचारों के संश्लेषण को एक साथ लाने में एक प्रक्रियात्मक उपकरण के रूप में संवाद को अनुकूलित करने की क्षमता में निहित है. हमारे न्यायालय में संश्लेषण, विविधता और समावेशन का सम्मान करता है.'

उन्होंने कहा कि असहमति के लिए जगह हमेशा खुली रहती है, और वास्तव में इस अदालत के सबसे मजबूत न्यायशास्त्रीय विकास वर्षों के दौरान मुकदमेबाजी के कई दौर से गुजरे हैं, जहां अदालत ने कानून के सवालों पर अलग-अलग विचार रखे हैं.

उन्होंने कहा कि 'यह अदालत अपनी सर्वोच्चता के प्रति कम ध्यान दे रही है और इस तथ्य से अधिक परिचित है कि अदालत, हालांकि अंतिम है, अचूक नहीं है. इसने न केवल खुद को आलोचना के लिए खोल दिया है, बल्कि अपने काम की आलोचना के लिए जगह बनाने के लिए सकारात्मक कदम भी उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने स्वर्ण जयंती समारोह के लिए 'सुप्रीम बट नॉट इनफॉलिबल' (Supreme but not Infallible) नामक पुस्तक प्रकाशित की, जो सुप्रीम कोर्ट के काम का जश्न मनाने और आलोचना करने वाले प्रमुख प्रैक्टिसनर्स द्वारा लिखे गए निबंधों का संकलन है.'

2022 में लगभग 1,15,120 पत्र याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की गईं. उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि आम व्यक्ति का मानना ​​​​है कि वे इन हॉलों में न्याय सुरक्षित करने में सक्षम होंगे.

उन्होंने कहा कि 'ये सभी प्रकार के पत्र हैं - जिनमें से कुछ न्यायिक कार्य के दायरे में आते हैं और अन्य जो नहीं आते हैं. न्यायाधीशों के रूप में हमें यह जानने की जरूरत है कि न्यायिक कार्य के भीतर और बाहर क्या है.' उन्होंने कहा, अदालतों तक पहुंच में वृद्धि जरूरी नहीं कि न्याय तक पहुंच में तब्दील हो.

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