नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बेटी को अपनी शिक्षा जारी रखने का मौलिक अधिकार है. कोर्ट ने गुरुवार को एक दंपती के विवाद को लेकर सुनवाई करते हुए अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, बेटी को अपने माता-पिता से पढ़ाई के लिए खर्च वसूलने का पूरा अधिकार है.
अदालत ने जोर देते हुए कहा, 'बेटी की पढ़ाई के लिए माता-पिता को अपने वित्तीय संसाधनों की सीमा के भीतर आवश्यक धनराशि उपलब्ध कराने के लिए बाध्य किया जा सकता है. 26 साल से अलग रह रहे दंपति के मामले में जस्टिस सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा कि, उसका मानना है कि पिछले 26 सालों से अलग रह रहे एक दंपत्ति की बेटी कानून के अनुसार 43 लाख रुपये की हकदार है.
26 साल से अलग रह रहे दंपती के मामले में सुनवाई
बेंच ने 2 जनवरी को पारित आदेश में कहा कि, बेटी होने के नाते उसे अपने माता-पिता से शिक्षा का खर्च प्राप्त करने का अविभाज्य, कानूनी रूप से लागू करने योग्य, वैध और वैध अधिकार है. बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा, "हम केवल इतना ही मानते हैं कि बेटी को अपनी शिक्षा जारी रखने का मौलिक अधिकार है, जिसके लिए माता-पिता को अपने वित्तीय संसाधनों की सीमा के भीतर आवश्यक धनराशि उपलब्ध कराने के लिए बाध्य किया जा सकता है."
बेटी आयरलैंड में पढ़ रही है
बेंच ने कहा कि पक्षकारों की बेटी वर्तमान में आयरलैंड में पढ़ रही है और उसने अपनी गरिमा बनाए रखने के लिए अपने पिता द्वारा उसकी शिक्षा पर खर्च की गई 43 लाख रुपये की राशि को अपने पास रखने से इनकार कर दिया है. बेंच ने आगे कहा कि, ऐसा लगता है कि बेटी ने अपने पिता को वह राशि वापस करने पर जोर दिया, हालांकि पिता ने यह राशि लेने से इनकार कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बेटी को इस राशि को अपने पास रखने का अधिकार है
बेंच ने कहा कि, पिता ने बिना किसी ठोस कारण के पैसे दिए जिससे पता चलता है कि वह अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए वित्तीय सहायता देने के लिए आर्थिक रूप से सक्षम है. कोर्ट ने यह भी कहा कि बेटी को इस राशि को अपने पास रखने का अधिकार है. इसलिए उसे अपनी मां या फिर पिता को रकम वापस करने की आवश्यकता नहीं है. वह इसे अपनी इच्छानुसार उचित रूप से खर्च कर सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणियां एक वैवाहिक विवाद में कीं, जिसमें अलग हुए जोड़े की बेटी ने अपनी मां को दिए जा रहे कुल गुजारा भत्ते के हिस्से के रूप में अपने पिता द्वारा उसकी पढ़ाई के लिए दिए गए 43 लाख रुपये को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. पीठ ने पिछले साल नवंबर में अलग रह रहे दंपति द्वारा किए गए समझौते का हवाला दिया, जिस पर बेटी ने भी हस्ताक्षर किए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति ने अपनी पत्नी और बेटी को कुल 73 लाख रुपये देने की सहमति दी थी. इसमें से 43 लाख रुपये उसकी बेटी की शिक्षा के लिए थे. जबकि शेष राशि पत्नी के लिए थे. कोर्ट ने बताया कि, पत्नी को उसके हिस्से के 30 लाख रुपये मिल चुके हैं. पति-पत्नी पिछले 26 साल से अलग-अलग रह रहे हैं. इसलिए बेंच को आपसी सहमति से तलाक का आदेश न देने का कोई कारण नहीं दिखता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आपसी सहमति से तलाक का आदेश देकर विवाह को भंग करते हैं
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि, 'हम संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत आपसी सहमति से तलाक का आदेश देकर विवाह को भंग करते हैं.' साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि अब दोनों (दंपती) को एक-दूसरे के खिलाफ कोई अदालती मामला नहीं चलाना चाहिए और अगर किसी फोरम के समक्ष कोई मामला लंबित है, तो उसे समझौते के अनुसार निपटाया जाना चाहिए. इस आदेश के हिस्से में, दोनों का भविष्य में एक दूसरे के खिलाफ कोई दावा नहीं होगा और वे समझौते की नियमों और शर्तों का पालन करेंगे.
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