पटना: नीतीश कुमार ने 2005 में जब सत्ता संभाली थी तब शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिए 2006 में पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दुबे की अध्यक्षता में कॉमन स्कूल सिस्टम कमीशन बनाया था. शिक्षा विभाग के सचिव भी उसमें शामिल थे. कमीशन ने 1 साल के अंदर ही रिपोर्ट नीतीश सरकार को सौंप दी थी. उस रिपोर्ट को तैयार करने वाले पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दुबे अब नहीं रहे. उनकी रिपोर्ट 17 साल से ठंडे बस्ते में पड़ी है. मुचकुंद दुबे जब भी बिहार आते तो उस रिपोर्ट को लागू करने के लिए सरकार से अपील करते थे.
रिपोर्ट लागू करने में क्या थी परेशानीः तत्कालीन शिक्षा मंत्री वृषिण पटेल का कहना है कि रिपोर्ट को लेकर वे लोग बहुत गंभीर थे. क्योंकि नीतीश कुमार ने उस रिपोर्ट को तैयार करवाई थी. जून 2007 में हम लोगों को रिपोर्ट मिल गई थी लेकिन रिपोर्ट के आधार पर जब हम लोगों ने अध्ययन करवाया कि कितनी राशि खर्च होगी तो वह राशि काफी बड़ी थी. उस समय बिहार की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी. शिक्षकों की भी कमी थी, स्कूल भवन भी नहीं था तो कई मोर्चे पर काम करना था.
सरकार ने कई स्कीम शुरू कीः वृषिण पटेल का कहना है कि हम लोग तो चाहते थे कि रिपोर्ट पर चर्चा हो और पूरे देश में एक माहौल बने लेकिन ऐसा हो नहीं सका. यदि वह रिपोर्ट लागू हो जाती तो बिहार की शिक्षा में मूलचूल सुधार होता और बिहार पूरे देश के लिए एक नजर बन जाता. वृषिण पटेल का कहना है कि भले ही रिपोर्ट लागू नहीं हुई लेकिन उस समय सरकार ने बच्चों को अधिक से अधिक स्कूल में लाने के लिए कई स्कीम की घोषणा की, जिसका असर हुआ है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञः ए एन सिन्हा इंस्टीच्यूट के प्रोफेसर डॉ विद्यार्थी विकास का कहना है 'कॉमन स्कूल सिस्टम कमीशन की रिपोर्ट में शिक्षा की एक ऐसी प्रणाली जो जाति, पंथ, समुदाय, भाषा, लिंग, आर्थिक स्थिति, सामाजिक स्थिति और शारीरिक और मानसिक क्षमता से परे सभी बच्चों को समान गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करती है उसे लागू करने के लिए कहा था. किसी सरकारी स्कूल की बात नहीं की गई थी और जो सरकारी स्कूल है उसमें भी एक ही तरह का सिलेबस पढ़ाया जाए और सरकार सारा खर्च उठाए.' विद्यार्थी विकास के अनुसार कॉमन स्कूल सिस्टम कमीशन की रिपोर्ट यदि लागू हो जाती तो क्रांतिकारी बदलाव आता.