गया : बिहार के गया में कुख्यात नक्सल क्षेत्र गुरारू के एक युवक ने एमबीबीएस की डिग्री लेकर इतिहास रचा है. खास बात यह है कि युवक, रवि कुमार चंचल एक पूर्व नक्सली के घर में पला-बढ़ा है. उनके पिता सुधीर कुमार उर्फ विनोद मरांडी, जो एक समय में नक्सल संगठन के सुप्रीमो थे, अब मुख्यधारा में लौटकर समाज सेवा में जुटे हैं.
पूर्व नक्सली कमांडर का बेटा डॉक्टर : रवि के पिता ने खुद को मुख्यधारा से जोड़कर अपने जीवन को न सिर्फ सुधारा बल्कि अपने बेटे की पीढ़ी को भी संवार दिया. रवि की सफलता न केवल उनके उनके खुद के संघर्ष को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि शिक्षा और सकारात्मक सोच के द्वारा किसी भी परिस्थिति को मात दी जा सकती है.
नक्सलगढ़ में 'नई क्रांति' : रवि कुमार चंचल का जन्म गुरारू के डीहा गांव में हुआ, जो नक्सलियों का गढ़ माने जाते थे. उनके पिता विनोद मरांडी एक समय में भाकपा माओवादी संगठन के बड़े कमांडर थे. 1997 में वे नक्सलवाद से जुड़े, लेकिन 2005 में उन्होंने एक नया नक्सली संगठन 'आरसीसी' (रिवॉल्यूशनरी कम्युनिस्ट सेंटर) का गठन किया और इसके सुप्रीमो बने. हालांकि, 2009 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन बाद में वे कोर्ट से बरी हो गए. फिर नक्सलवाद से दूर होते हुए, उन्होंने राजनीति में भी किस्मत आजमाई.
शिक्षा से बदली परिवार की दशा : रवि और उनके भाई को बचपन से ही नक्सलवाद से दूर रखा गया. रवि ने अपनी स्कूलिंग झारखंड के बोकारो में की और आठवीं कक्षा से ही डॉक्टर बनने का सपना देखा. उनके माता-पिता ने उन्हें हमेशा शिक्षा की दिशा में प्रेरित किया. रवि बताते हैं कि उनके पिता चाहते थे कि वे वकील बनें, लेकिन रवि का सपना था कि वह डॉक्टर बनें. इस सपने को पूरा करने में उनके माता-पिता ने हमेशा उनका साथ दिया, और रवि ने कठिनाईयों के बावजूद अपनी पढ़ाई पूरी की.
विदेश से MBBS की डिग्री : रवि ने बोकारो से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की और फिर दिल्ली में नीट परीक्षा की तैयारी शुरू की. दो बार असफल होने के बाद, उन्होंने हार नहीं मानी और 2018 में यूक्रेन से एमबीबीएस करने के लिए निकल पड़े. उस वक्त उनके पिता जेल में थे, लेकिन रवि का आत्मविश्वास और संघर्ष उन्हें सफलता की ओर ले गए.
''बोकारो से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की और फिर दिल्ली में नीट परीक्षा की तैयारी शुरू की. दो बार असफल होने के बाद, मैने हार नहीं मानी और 2018 में यूक्रेन से एमबीबीएस करने के लिए निकल गया. उस वक्त मेरे पिता जेल में थे. एक बार मेरी मां को लगा कि कैसे हो पाएगा लेकिन पिता ने हौसला बढ़ाया और सबकुछ हो गया.'' - रवि कुमार चंचल
क्या होती है FMGE? : 2024 में यूक्रेन से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करने के बाद, उन्होंने भारत में एफएमजीई की परीक्षा दी और उसे सफलता पूर्वक पास किया. अब वे इंटर्नशिप की तैयारी कर रहे हैं. FMGE यानी Foreign Medical Graduate Examination के माध्यम से विदेशी चिकित्सा विद्यार्थियों को पास होने पर देश में प्रैक्टिस करने की परमीशन दी जाती है. इसकी अर्हता पास होना जरूरी है.
पिता का बदलाव और परिवार का सहयोग : रवि कहते हैं कि उनकी सफलता में उनकी मां, सुनीता देवी का सबसे बड़ा योगदान है. वे अपनी मां की कठिनाइयों को याद करते हुए कहते हैं कि ''मेरी मां ने हमेशा मेरी शिक्षा के लिए संघर्ष किया. मां ने हमेशा चाहा कि उनका बेटा अच्छा बने और परिवार का नाम रोशन करे. मेरे पिता के नक्सली होने के बावजूद, माता-पिता का एक ही सपना था कि बच्चों को बुराई के रास्ते पर न चलने दें.''
समाज में बदलाव का प्रतीक : रवि की सफलता इस बात का प्रतीक है कि कोई भी परिस्थिति किसी व्यक्ति को उसके सपनों को पूरा करने से नहीं रोक सकती. उनके पिता का नक्सलवाद से मुख्यधारा में लौटना और उनके द्वारा समाज सेवा में जुटना, इस परिवार के लिए एक नई शुरुआत का संकेत है. रवि अब समाज सेवा की दिशा में भी काम करना चाहते हैं, और उन्होंने यह संकल्प लिया है कि वे अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद अपने पिता के साथ मिलकर क्षेत्र के लोगों की सेवा करेंगे.
नक्सलवाद से मुख्यधारा तक एक प्रेरणादायक यात्रा : रवि की यात्रा और सफलता ने यह साबित कर दिया कि बदलाव और शिक्षा से किसी भी कठिन परिस्थिति को पार किया जा सकता है. आज, न केवल रवि, बल्कि उनके परिवार का समूचा परिवर्तन नक्सलवाद की काली छांव से बाहर निकलकर एक सकारात्मक दिशा की ओर बढ़ने का उदाहरण है.
मुख्यधारा में जुड़ने का मिला एडवांटेज : विनोद मरांडी ने नक्सलबाड़ी का रास्ता छोड़कर न सिर्फ अपने जीवन को सुधार लिया बल्कि अपने परिवार को यातनाओं से बचा लिया. आज वह मुख्य धारा में समाज के साथ जुड़कर, उसका हिस्सा बनकर परिवार के साथ, बच्चों का भविष्य गढ़कर आनंद का जीवन व्यतीत कर रहे हैं. अभी कई ऐसे नक्सली हैं जो छटपटाहट भरी जिंदगी जी रहे हैं. ये परिवार उनके लिए मिसाल है.
ये भी पढ़ें- जिस गांव ने माओवादियों को दिया था महिला दस्ता, उस गांव को बदलेगी तस्वीर, डीसी ने किया दौरा