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शीतकालीन सत्र: पहले सप्ताह में लोकसभा में 54 मिनट और राज्यसभा में 75 मिनट से भी कम कार्यवाही हुई

संसद के दोनों सदनों में जारी गतिरोध से आहत लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडी थंकप्पन आचार्य ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता आपस में बात करें और उचित संवाद बनाए रखें तो सदन सुचारू रूप से चलेगा. ईटीवी भारत संवाददाता गौतम देबरॉय की रिपोर्ट.

Lok Sabha and Rajya Sabha
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा अध्यक्ष जगदीप धनखड़ (ANI and AFP)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 30, 2024, 6:10 PM IST

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने कहा है कि, संसद का शीतकालीन सत्र 26 दिनों की अवधि में 19 बैठकें आयोजित करेगा. हालांकि, चालू सत्र के पहले एक सप्ताह में विपक्षी दलों ने विभिन्न मुद्दों पर कार्यवाही स्थगित कर दी. बता दें कि, पहले सप्ताह में लोकसभा में 54 मिनट से भी कम समय तक और राज्यसभा में 75 मिनट तक कार्यवाही चली.

संसद के दोनों सदनों में मौजूदा गतिरोध पर लोकसभा के पूर्व महासचिव और वरिष्ठ संवैधानिक विशेषज्ञ पीडी थंकप्पन आचार्य ने ईटीवी भारत के समक्ष अपनी राय दी. उन्होंने कहा कि,प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता दोनों को एक-दूसरे से बात करनी चाहिए और उचित संवाद बनाए रखना चाहिए ताकि सदन बिना किसी हंगामे के सुचारू रूप से चल सके.

आचार्य ने कहा कि, विपक्ष के नेता को विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से परामर्श करना चाहिए और इस बात पर सहमति बनानी चाहिए कि कौन से मुद्दे उठाए जाएं. विपक्ष के नेता को बाद में अध्यक्ष के विचार के लिए मुद्दा उठाना चाहिए."

उन्होंने कहा कि, चर्चा के लिए अनुकूल माहौल तैयार करना सरकार की जिम्मेदारी है, यह कहते हुए आचार्य ने कहा कि, चूंकि सरकार का काम प्राथमिकता पर है, इसलिए विपक्ष की ओर से अलग-अलग महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की मांग भी जरूरी है. पीडी थंकप्पन ने आगे कहा कि, विपक्ष को उन मुद्दों को उठाने का अधिकार है और सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इन मुद्दों पर जवाब दे.

25 नवंबर को पहले दिन लोकसभा में मुश्किल से छह मिनट कामकाज हुआ. इसके बाद बुधवार को 16 मिनट, गुरुवार को 14 मिनट और शुक्रवार को 20 मिनट की कार्यवाही हुई. इसी तरह, राज्यसभा में 33 मिनट, 13 मिनट, 16 मिनट और 13 मिनट काम हुआ. 26 नवंबर को सरकार ने 1949 में भारतीय संविधान को अपनाने के सम्मान में संविधान दिवस मनाया.

इससे पहले संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि, इस सत्र के दौरान विधायी कार्य के16 और वित्तीय कार्य के 1 मद की पहचान की गई है. पूरे सप्ताह में केवल चार बैठकें हुईं और कार्यवाही पूरी तरह से ठप रही. वह इसलिए, क्योंकि विपक्षी दलों ने अडानी मुद्दे, मणिपुर मुद्दे और उत्तर प्रदेश के संभल में हिंसा पर तत्काल चर्चा की मांग को सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किए जाने के बाद विरोध प्रदर्शन किया.

सप्ताह के दौरान लोकसभा में कुछ प्रश्न उठाए गए, जबकि संसद ने विवादास्पद वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति का कार्यकाल बढ़ा दिया. संसद के दोनों सदनों में विपक्षी सांसदों ने अडानी, मणिपुर और संभल पर नोटिस प्रस्तुत किए, जिन पर लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति दोनों ने विचार नहीं किया.

विपक्षी दलों द्वारा लगातार विरोध और सदन में व्यवधान से स्तब्ध राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि नियम 267 को हमारे सामान्य कामकाज में व्यवधान और बाधा उत्पन्न करने के तंत्र के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. नियम 267 किसी विषय पर तत्काल चर्चा के लिए कामकाज को स्थगित करने की मांग करता है.

धनखड़ ने विपक्षी दलों से अपील करते हुए संसद सदस्यों से गहन चिंतन का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि," नियम 267 को हमारे सामान्य कामकाज में व्यवधान और बाधा उत्पन्न करने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. इसकी सराहना नहीं की जा सकती. उन्होंने आगे कहा कि, "मैं अपनी गहरी पीड़ा व्यक्त करता हूं... हम एक बहुत ही खराब मिसाल कायम कर रहे हैं."

उन्होंने कहा कि, "हम इस देश के लोगों का अपमान कर रहे हैं... हम उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं और हमारे कार्य जन-केंद्रित नहीं हैं जो कि पूरी तरह से लोगों को नापसंद हैं. जगदीप धनखड़ ने कहा, "हम अप्रासंगिक होते जा रहे हैं, लोग हमारा उपहास उड़ा रहे हैं. दरअसल हम हंसी का पात्र बन गए हैं.

वहीं, आचार्य ने कहा कि, दोनों सदनों के अध्यक्षों को विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए कार्य मंत्रणा समिति (बीएसी) की बैठक बुलानी चाहिए. आचार्य ने कहा, "सभी दलों के सदस्य वहां मौजूद रहें. एक बार सरकार एजेंडा तय कर दे, तो विपक्ष भी अपने सुझाव दे सकता है और फिर उन्हें यह कहते हुए एक समझौते पर पहुंचना चाहिए कि कुछ मुद्दों पर चर्चा के लिए एक या दो दिन दिए जाएंगे."

उन्होंने कहा कि, लोकतंत्र में सत्ताधारी और विपक्षी दल एक दूसरे के दुश्मन नहीं बल्कि राजनीतिक विरोधी होते हैं. सत्ताधारी और विपक्षी दलों को आचार्य ने एक गाड़ी के दो पहिए कहते हुए आगे बताया कि, गाड़ी दो पहियों पर ही चल सकती है. अगर एक पहिया निकल जाए तो गाड़ी नहीं चलेगी.

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