घाट के बालाजी मंदिर के बारे में जानिए जयपुर.राजधानीजयपुर की बसावट से पहले बना करीब 500 साल पुराना घाट के बालाजी मंदिर को प्राचीन काल से ही शहर का कुल देवता कहा गया है. बताया जाता है कि यहां भगवान हनुमान का विग्रह स्वयं प्रकट है. यहां जलने वाली अखंड ज्योत के चलते इसे जलती ज्योत का मंदिर भी कहा जाता है. जयपुर की विरासत में शामिल इस मंदिर के इतिहास और मान्यताओं से आपको रूबरू कराते हैं.
मुंडन संस्कार, सवामणि, सुंदरकांड होते हैं यहां: आगरा रोड पर पहाड़ियों से घिरे घाट के बालाजी के नाम से मशहूर भगवान हनुमान का ये मंदिर जितना प्राचीन है, उतना ही चमत्कारी भी है. मान्यता है कि यहां आकर मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है. मंदिर महंत स्वामी सुरेश कुमार ने बताया कि यहां बालाजी स्वयं प्रकट हुए थे. मंदिर में पवनसुत की प्रतिमा दक्षिणमुखी है, जिन्हें जीवन के सभी दुखों का नाश करने वाला माना जाता है. घाट के बालाजी को जयपुर का कुल देवता माना जाता है. यही वजह है कि सातों जाति के लोग यहां बच्चे के जन्म से जुड़े मुंडन संस्कार, सवामणि, सुंदरकांड जैसे आयोजनों के लिए पहुंचते हैं.
पढ़ें. भरतपुर के इस मंदिर में होती है काले हनुमान जी की पूजा, यहां पूजा करने से होती है पुत्र प्राप्ति
12 बजे से 3 बजे तक भगवान स्वयं विराजमान होते हैं :उन्होंने बताया कि प्राचीन समय में मंदिर के आस-पास कई तालाब और पानी के कई घाट हुआ करते थे, जिसके कारण यहां बजरंगबली को घाट के बालाजी के नाम से पुकारा जाने लगा. मंदिर में सुबह 5 बजे बालाजी का जागरण होता है, उन्हें स्नान कराया जाता है और पूरे शृंगार के बाद 7 बजे पहली आरती होती है. ऐसी मान्यता है कि दिन में दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक भगवान स्वयं यहां विराजमान होते हैं. ऐसे में इस दौरान बालाजी के दर्शन करने वालों को बालाजी जल्द मनचाहा वरदान देते हैं. वहीं, रात 10 बजे आरती के बाद भोग लगाकर मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं.
जयपुर के कुल देवता माने जाते हैं बालाजी दीवारों पर उकेरा गया है जीवन चरित्र : स्वामी सुरेश कुमार ने बताया कि यहां भगवान की सिंदूरी चोला धारण करे भगवान की विशाल मूर्ति है, जिस पर हर दिन चांदी के वर्क का शृंगार होता है. मीनाकारीयुक्त मुकुट पर श्रीराम लिखा है और मुख्यमूर्ति के बाईं ओर हनुमान की छोटी मूर्ति भी विराजित है. मंदिर में ऊपर जाने पर वहां एक शिव मंदिर और पंचगणेश भी विराजित हैं. दीवारों पर भगवान राम और हनुमान जी का जीवन चरित्र प्राकृतिक रंगों से उकेरा हुआ है. कहीं अंजना मां का दुलार पाते बाल हनुमान, कहीं रथ में राम लक्ष्मण के साथ जानकी, कहीं पर्वत उठाए उड़ रहे पवनसुत तो कहीं राम दरबार में सेवक की भूमिका निभाते बजरंग बली. ये चित्र इतने मनोरम हैं कि एकाएक आंखें इन पर आकर स्थिर हो जाती है.
पढ़ें. अयोध्या के कनक भवन की तर्ज पर बना जयपुर का प्राचीन राम मंदिर, यहां परिवार के साथ विराजमान है प्रभु
मंदिर के प्रवेश द्वार पर पीतल की बड़ी घंटियां :मंदिर में सफेद संगमरमर का फर्श है. बीच-बीच में काले चौक लगे हुए हैं और सभी चौकों के बीच चांदी के पुराने झाड़शाही सिक्के लगाए गए हैं. मंदिर महंत ने बताया कि यहां कुछ भक्त ऐसे भी हैं, जिनकी मनोकामना पूरी होने पर उन्होंने मंदिर परिसर में कई कार्य कराए हैं. इन्हीं में से एक रामसहाय ने करीब 70 साल पहले ये सिक्के जड़वाए थे. मंदिर के प्रवेश द्वार पर पीतल की बड़ी घंटियां लटकी हुई हैं. इनके बजने पर टंकार की ध्वनि पास की पहाड़ियों से टकराकर घाटी में गूंजने लगती है.
नागर शैली में बना मंदिर : घाट के बालाजी का मंदिर का भवन प्राचीन नागर शैली में बनी हवेली जैसा प्रतीत होता है, जो यहां की विरासत को आज भी जीवंत रखे हुए है. मंदिर का मुख्यद्वार झरोखायुक्त शैली से बना है. ये पुरानी हवेलियां मुख्यद्वार की तरह हैं. पहाड़ी की तलहटी पर बना होने के कारण मंदिर परिसर दो भागों में बना है. मुख्यद्वार से प्रवेश करने पर एक खुला कच्चा चौक मंदिर का पहला परिसर है. चौक परिसर की प्राचीरों के दोनों कोनों पर छतरियां भी बनी हुई हैं. इस बड़े चौक से सीढ़ियां हवेलीनुमा मंदिर परिसर तक पहुंचती है. तीन मंजिला इस मंदिर के बीच के भाग में सिंहद्वार, हर मंजिल पर गोखोंयुक्त झरोखों से सुसज्जित हैं और अंदर तिबारीनुमा जगमोहन में घाट के बालाजी विराजित हैं. मुख्य मंदिर के तल वाले बरामदों को जाली से कवर किया गया है. वहीं, मंदिर के मेहराब, झरोखे, कंगूरे, गोखे सभी हिन्दू नागर शिल्प शैली का उदाहरण हैं.
हर वर्ग के लोग मांगते हैं मन्नत : खास बात ये है कि यहां सातों जाति और हर वर्ग के लोग अपनी मनोकामना मांगने के लिए पहुंचते हैं और मनौती पूर्ण होने पर जागरण, अनुष्ठान, रामायण पाठ और धार्मिक कार्यक्रम भी कराते हैं. लक्खी पौषबड़ा, फागोत्सव, अन्नकूट, शरदपूर्णिमा, रूपचतुर्दशी और हनुमान जन्मोत्सव यहां प्रमुखता से मनाए जाते हैं. गलता तीर्थ में डुबकी लगाने वाले श्रद्धालु यहां मत्था जरूर टेक कर जाते हैं. विरासत और परंपराओं का ताना-बाना बुनते इस मंदिर मान्यता समय के साथ-साथ बढ़ती जा रही है.