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तानसेन की खट्टी इमली खाकर निकलते हैं मीठे राग, खुद संगीत सम्राट भी चबाते थे इस पेड़ की पत्तियां - TANSEN TAMARIND TREE CONNECTION

ऐसी किवदंती है कि ग्वालियर में तानसेन की समाधि के पास एक इमली का पेड़ है जिसकी पत्तियां संगीत सम्राट चबाते थे.

TANSEN TAMARIND TREE CONNECTION
इमली के पेड़ की पत्तियां चबाते थे तानसेन (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 27, 2024, 10:09 PM IST

ग्वालियर:संगीत और ग्वालियर का नाता सदियों पुराना है क्योंकि यह क्षेत्र संगीत नगरी के नाम से जाना जाता है. संगीतकारों में सर्व विख्यात नाम तानसेन है जिन्हें संगीत सम्राट की उपाधि दी गई है. उनका जन्म इसी ग्वालियर की धरा पर हुआ और यहीं उनकी समाधि भी है. इसी समाधि स्थल पर खड़ा है वह पेड़ जिसने संगीत सम्राट को सुरीला बनाया. आइए जानते है कि आखिर पेड़ और तानसेन के बीच संगीत का क्या कनेक्शन है.

ग्वालियर में हुआ था तानसेन का जन्म

संगीत सम्राट तानसेन की नगरी ग्वालियर, यह वह जगह है जिसे लेकर कहा जाता है कि यहां बच्चा भी रोता है तो सुर में और पत्थर भी लुढ़के ताल में. और ऐसा हो भी क्यों न जब इस क्षेत्र की फिजा में सैकड़ों सालों से संगीत बह रहा है. कई प्रसिद्ध संगीतकार इस धारा ने दिए हैं. बात अगर संगीत सम्राट की करें तो उनका तो जन्म भी ग्वालियर में हुआ और मृत्यु भी इसी धरा पर. ग्वालियर शहर के हजीरा में स्थित मोहम्मद गौस के मकबरे के पास ही तानसेन की भी समाधि है.

तानसेन के मकबरे के पास आज भी मौजूद है इमली का पेड़ (ETV Bharat)

बड़े बड़े संगीतकार लेते हैं यहां तानसेन से प्रेरणा

तानसेन की समाधि स्थल से जुड़ी एक कहानी भी है. किवदंती है कि तानसेन के मकबरे के ठीक बगल में एक इमली का पेड़ है और इस पेड़ की पत्तियां संगीत सम्राट अपने रियाज के दौरान चबाया करते थे. माना जाता था कि इस इमली के पेड़ की पत्तियों को चबाने से तानसेन की आवाज और सुरीली होती थी. आज भी जब देश विदेश से बड़े-बड़े कलाकार और संगीतकार तानसेन की समाधि पर पहुंचते हैं तो वे इस पेड़ की पत्तियां जरूर चबाते हैं.

ग्वालियर के हजीरा में तानसेन का मकबरा (ETV Bharat)
तानसेन के मकबरे के पास इमली का पेड़ (ETV Bharat)

पुराना पेड़ गिरा तो उसी जगह उगा दूसरा पेड़

तानसेन समाधि के केयरटेकर सैयद जाउल हुसैन कहते हैं कि "संगीत सम्राट तानसेन के मकबरे के ठीक बगल में लगा यह इमली का पेड़ बहुत ही महत्व रखता है. इमली के पेड़ के नीचे ही बैठकर तानसेन रियाज करते थे. कहा जाता है कि इस पेड़ की पत्तियों को चबाने से गले के रोग दूर होते थे और आवाज सुरीली और मधुर हुआ करती थी. इसलिए खुद तानसेन भी इसकी पत्तियां चबाया करते थे. आज पुराना पेड़ तो गिर चुका है लेकिन उसी जगह एक नया पेड़ निकला है जो वर्तमान में मौजूद है. लोग गले के रोगों के लिए और संगीतकार अपनी आवाज सुरीली और मधुर बनाने के लिए इस पेड़ की पत्तियों का सेवन करने आते हैं."

तानसेन के मकबरे की जानकारी (ETV Bharat)

ग्वालियर संगीत और तानसेन एक दूसरे के पर्याय

ग्वालियर के संगीत विश्वविद्यालय राजा मानसिंह विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. स्मिता सहस्त्रबुद्धे कहती हैं कि "ग्वालियर संगीत और तानसेन ये तीनों एक दूसरे के पर्याय हैं. जब ग्वालियर का नाम आता है तो संगीत का नाम आता है और जब संगीत की बात होती है तो तानसेन का नाम आता है क्योंकि यहां संगीत सम्राट तानसेन हुए."

मोहम्मद गौस का मकबरा (ETV Bharat)

'इमली की पत्तियां चबाते थे तानसेन'

कुलपति प्रो. स्मिता सहस्त्रबुद्धेकहती हैं कि "तानसेन एक ऐसा नाम है जिन्होंने संगीत के क्षेत्र में संगीत की विधा में बहुत बड़े काम किए. द्रुपद शैली का परिष्कार, परिवरधन, प्रचार प्रसार सभी कुछ ग्वालियर से संगीत सम्राट तानसेन के द्वारा हुआ. ऐसे में इतने बड़े व्यक्तित्व को लेकर कई किंवदंतियां सामने आती हैं. ऐसा कहा जाता है कि जिस जगह तानसेन की समाधि उनका मकबरा है वहां एक इमली का पेड़ है और अपने समय में तानसेन उसकी पत्तियों को चबाते थे. आज भी यह मान्यता है कि उस पेड़ की पत्तियों को चबाने से गला अच्छा हो जाता है, हालांकि इसका कोई पुष्ट आधार तो नहीं है इसलिए हम इसे किवदंती के रूप में मानते हैं."

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