टीकमगढ: आमतौर पर दूल्हे की बारात घोड़ी पर निकलती है. लेकिन कोई दूल्हा अगर सज धजकर बकरे पर बैठा नजर आए, तो इसे क्या कहेंगे. लेकिन टीकमगढ शहर में ऐसा ही नजारा देखने मिला. जब एक दूल्हा बना लड़का घोड़ी की जगह पर बकरे पर बैठा नजर आया. जब बकरे वाले दूल्हे की सच्चाई जानने की कोशिश की, तो पता चला कि ये कोई शादी का मामला नहीं, बल्कि लोहिया समाज की 400 साल पुरानी परम्परा है.
इस परंपरा में कर्णवेधन संस्कार को शादी समारोह की तरह मनाया जाता है. जिस बच्चे का कर्णवेधन होता है, उसकी बकरे पर बारात निकाली जाती है. बाद में सांकेतिक तौर पर भाभी से शादी भी करायी जाती है. फिलहाल जिसको भी इस रिवाज का अंदाजा नहीं था, वो बकरे वाले दूल्हे को देखकर देखता ही रह गया है.
क्या है 400 साल पुरानी परंपरा
दरअसल टीकमगढ़ शहर में निवास करने वाली लोहिया समाज की ये अनोखी परम्परा पिछले कई सालों से चली आ रही है. बुजुर्ग बताते हैं कि लोहिया समाज इस परम्परा को 400 साल से बखूबी निभा रहा है. जिसमें परिवार के बेटे के कर्णवेधन संस्कार को शादी समारोह की तरह मनाया जाता है. इसी कड़ी में टीकमगढ़ के ताल दरवाजा इलाके में रहने वाले प्रकाश अग्रवाल के 12 साल के पोते राघव अग्रवाल का कर्णवेधन संस्कार था. 2 जनवरी 2025 गुरुवार को राघव अग्रवाल का कर्णवेधन संस्कार समारोह आयोजित था.
परंपरा है कि जिस युवक का कर्णवेधन होता है, वो दूल्हा बनता है और उसकी सांकेतिक शादी भी होती है. एक शादी में जो कुछ होता है, वैसा ही लोहिया समाज के कर्णवेधन संस्कार में होता है. परम्परा के अनुसार, राघव को दूल्हा बनाया गया. लेकिन इसी परम्परा के अनुसार दूल्हे को घोड़ी पर नहीं, बल्कि बकरे पर बिठाया गया और बारात निकाली गयी. बारात में शादी की तरह रिश्तेदार और दोस्त यार भी शामिल हुए. बाराती बैंड बाजे और डीजे पर नाचते नजर आए, तो शादी में होने वाली आतिशबाजी भी की गयी है.
भाभी से हुई बकरे वाले दूल्हे की शादी
लोहिया समाज के कैलाश अग्रवाल ने बताया कि, ''हमारे समाज और परिवार में ये परंपरा पीढ़ियों से अनवरत चली आ रही है. कर्णवेधन संस्कार की परंपरा को हमारे यहां शादी की तरह धूमधाम से मनाया जाता है. हमारे समाज में 18 साल से पहले बेटों के कर्णभेदन संस्कार कराया जाता है. यह सनातन समाज में 16 संस्कारों में से एक प्रमुख संस्कार है. इसमें बाकायदा बारात निकाली जाती है और सांकेतिक तौर पर शादी भी करायी जाती है. आमतौर पर जिस युवा का कर्णवेधन होता है, उसकी भाभी से सांकेतिक शादी भी करायी जाती है.''
- गर्भ में तय होते हैं रिश्ते, बालिग होने पर रचाते हैं विवाह, बुरहानपुर की अनोखी परंपरा
- घोड़ी या कार नहीं ऊंटनी पर सवार होकर निकले दो दूल्हे, भोपाल के सगे भाईयों की अनोखी बारात को देखते रहे लोग
सात स्थानों से बारात का गुजरना जरूरी
सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा को निभाते आ रहे कैलाश अग्रवाल बताते हैं कि, ''जब उन्होंने अपने बडे बेटे का कर्णवेधन कराया था, तो परंपरा अनुसार बकरे पर बारात निकाली गयी थी, जो परंपरा आज भी निभायी जा रही है. परंपरा के अनुसार, बकरे पर बैठे दूल्हे को सात स्थानों से गुजरना होता है. जिसमें खुद का घर, कुलदेवता का दरवाजा, मंदिर का दरवाजा जैसी सात जगहें होती हैं. इस कार्यक्रम में रिश्तेदार के अलावा मोहल्ले के लोग और परिचित लोग भी शामिल होते हैं.