नई दिल्ली: सरकार ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में साइबर घोटाले केंद्रों में फंसे 2 हजार से अधिक भारतीयों को बचाने में कामयाबी हासिल की है. हालांकि, सरकार द्वारा सलाह जारी करने और जागरूकता अभियान चलाने के बावजूद देश के लोगों के ऐसे रैकेट में फंसने का खतरा अभी भी जारी है.
शुक्रवार को लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा कि, अब तक सॉफ्टवेयर इंजीनियरों सहित 2,358 भारतीय नागरिकों को तीन दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से बचाया गया है. कंबोडिया से 1,091, लाओ पीडीआर से 770 और म्यांमार से 497 इंजीनियरों को बचाया गया है.
सिंह ने आगे कहा कि, सरकार इस खतरे को रोकने के लिए हर संभव कदम उठा रही है, लेकिन फर्जी भर्ती नौकरी की पेशकश में शामिल संदिग्ध फर्म भारतीय नागरिकों को ज्यादातर सोशल मीडिया चैनलों के जरिए कंबोडिया, म्यांमार, लाओ पीडीआर सहित दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में फंसाती है. इसके साथ ही इन इन देशों में संचालित स्कैम सेंटर से उन्हें साइबर क्राइम और अन्य धोखाधड़ी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए मजबूर करती हैं.
कीर्ति वर्धन सिंह ने अपने जवाब में कहा कि, इन देशों में फंसे भारतीय नागरिकों की सही संख्या ज्ञात नहीं है, क्योंकि भारतीय नागरिक धोखाधड़ी,बेईमान भर्ती एजेंटों,एजेंसियों और अवैध चैनलों के माध्यम से अपनी इच्छा से इन घोटाला केंद्रों तक पहुंचते हैं. ये घोटाला केंद्र कैसे संचालित होते हैं? लाओस में भारतीय दूतावास की वेबसाइट पर चल रही एक सलाह के अनुसार, ऐसी नौकरियां लाओस में गोल्डन ट्राइंगल विशेष आर्थिक क्षेत्र में कॉल-सेंटर घोटाले और क्रिप्टो-करेंसी स्कैम में शामिल संदिग्ध कंपनियों द्वारा 'डिजिटल बिक्री और विपणन कार्यकारी' या 'ग्राहक सहायता सेवा' जैसे पदों के लिए हैं.
सलाह में कहा गया है, "इन फर्मों से जुड़े दुबई, बैंकॉक, सिंगापुर और भारत जैसे स्थानों के एजेंट एक साधारण साक्षात्कार और टाइपिंग टेस्ट लेकर भारतीय नागरिकों की भर्ती कर रहे हैं और बढ़िया वेतन, होटल बुकिंग के साथ-साथ वापसी के हवाई टिकट और वीजा सुविधा की पेशकश कर रहे हैं. पीड़ितों को अवैध रूप से थाईलैंड से लाओस में सीमा पार ले जाया जाता है और कठोर और प्रतिबंधात्मक परिस्थितियों में लाओस में गोल्डन ट्राइंगल विशेष आर्थिक क्षेत्र में काम करने के लिए बंदी बना लिया जाता है.
इसमें आगे कहा गया है कि कई बार उन्हें अवैध गतिविधियों में लिप्त आपराधिक गिरोहों द्वारा बंधक बना लिया जाता है और लगातार शारीरिक और मानसिक यातना के तहत कठोर परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है. कुछ अन्य मामलों में, भारतीय श्रमिकों को लाओस के अन्य क्षेत्रों में खनन, लकड़ी के कारखाने आदि जैसे कम लागत वाले कामों में काम करने के लिए लाया गया है. ज्यादातर मामलों में, उनके संचालक उनका शोषण करते हैं और उन्हें अवैध कामों में फंसाते हैं.