छिंदवाड़ा।स्कूल में शिक्षक का काम है पढ़ाना और वह पढ़ाएगा भी तभी जब स्कूल में बच्चे होंगे, और यदि स्कूल में एक भी बच्चा नहीं हो तो फिर ऐसे स्कूल में भला शिक्षक का क्या काम. खैर अधिकारियों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि स्कूल में बच्चे हैं या नहीं क्योंकि ये सरकारी स्कूल है और यहां पदस्थ शिक्षक को भी इस बात से लेना देना नहीं है कि स्कूल में बच्चे नहीं हैं उनका काम है बस प्रतिदिन स्कूल आना है और शाम ढलते ही घर चले जाना है. छिंदवाड़ा से महज 7 किमी दूर एक ऐसा ही सरकारी स्कूल है जहां पदस्थ शिक्षक खानापूर्ती के लिए सिर्फ ड्यूटी बजाने पहुंचते हैं.
बच्चे नहीं तो क्या टीचर तो हैं पदस्थ
छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर दूर थुनिया उदना गांव में पहली से पांचवी तक सरकारी स्कूल है. पढ़ाई का स्तर गिरता गया तो धीरे-धीरे परिजनों का स्कूल से मोह भंग हो गया और धीरे-धीरे सभी ने अपने बच्चों को यहां पढ़ाना बंद कर दिया. अब हालात यह है कि पहली से पांचवी तक स्कूल में एक भी बच्चे का एडमिशन नहीं है लेकिन एक टीचर की पोस्टिंग जरूर है. ग्रामीणों का कहना है कि हर दिन स्कूल में शिक्षक आते हैं और शाम को घर चले जाते हैं.
गांव में हैं करीब 500 बच्चे
थुनिया उदना गांव में करीब 1500 की जनसंख्या है और गांव में करीब 500 बच्चे हैं. ये सभी बच्चे निजी और गांव के बाहर के दूसरे सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं. गांव के सरपंच सुनील यदुवंशी ने बताया कि "स्कूल में पढ़ाई का स्तर ठीक नहीं होने की वजह से कोई भी ग्रामीण अपने बच्चों का इस स्कूल में दाखिला नहीं करवाता है, इसी कारण अब स्कूल खाली हो गया है. धीरे-धीरे गांव वालों ने अपने बच्चों को यहां से निकालकर निजी स्कूलों में या आसपास के दूसरे सरकारी स्कूलों में शिफ्ट कर दिया है. गांव के स्कूल में सिर्फ एक शिक्षक हैं जो बीएलओ का काम करते हैं."
3 बच्चों के लिए 3 टीचर
जिले के सिर्फ थुनिया उदना गांव के स्कूल का ही ऐसा हाल नहीं है बल्कि शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर सारना गांव के स्कूल के भी हालात ऐसे ही हैं. यहां के सरकारी स्कूल में 3 बच्चे हैं और 3 बच्चों को पढ़ाने के लिए यहां 3 शिक्षकों की पोस्टिंग है. बताया जाता है कि छिंदवाड़ा शहर में रहने वाले अधिकतर शिक्षकों की पोस्टिंग ग्रामीण और आदिवासी अंचलों के स्कूलों में है लेकिन जुगाड़ के चलते अधिकतर शिक्षक शहर के नजदीक स्कूलों में अटैचमेंट करवा लेते हैं ताकि उन्हें दूर जाकर काम ना करना पड़े वहीं दूर दराज के क्षेत्रों में कई स्कूल ऐसे हैं जहां पर बच्चे तो हैं लेकिन एक भी शिक्षक नहीं है.