शिमला: मैं उस दिन दिल्ली में मौजूद था. मुंबई से गोलीबारी की खबरें आना शुरू हो गई थीं. पहले ये किसी को मालूम नहीं था कि ये आतंकी हमला है. फिर अचानक रात को मेरे पास ट्रूप्स के साथ मुंबई के लिए रवाना होने का आदेश आया. मुंबई पहुंचते ही हमने आतंकियों को मार गिराया, लेकिन आतंकियों के हमले में कई लोग मारे गए उनका क्या कसूर था. कसाब का जिंदा पकड़ा जाना हमारी बहुत बड़ी जीत थी. ये सारी बात ऑपरेशन टॉरनेडो को लीड करने वाले रिटायर्ड ब्रिगेडियर गोविंद सिसोदिया ने 26/11 की रात मुंबई में हुए हमले को याद करते हुए कही.
आज देश की आर्थिक राजधानी से मशहूर मुंबई पर 26/11 को हुए आतंकी हमले की 16वीं बरसी है. ये आतंकी हमला भारत के इतिहास में सबसे भयावह हमलों में से एक है. इसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. इस हमले से भारत ही नहीं पूरे विश्व को हिला दिया था. इस आतंकी हमले में 18 सुरक्षाकर्मियों सहित 166 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. इसके साथ ही 300 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. इस घिनौने खेल के पीछे पाकिस्तान का हाथ था. इसका मास्टरमाइंड आतंकी हाफिज सईद था, जो आज भी पाकिस्तान की आंखों का तारा बना हुआ है.
पाकिस्तान में ट्रेंड आतंकवादी पाकिस्तान के कराची से समुद्री रास्ते के जरिए मुंबई पहुंचे थे. उन्होंने भारतीय मछुआरे की मछली पकड़ने वाली नाव 'कुबेर' को हाइजैक किया और नाव में सवार मछुआरों को मार दिया. इसके बाद सभी आतंकी गेटवे ऑफ इंडिया के पास कोलाबा के मछली बाजार में पहुंचे और 26 नवंबर की रात लगभग 9 बजकर 20 मिनट पर मुंबई में कई जगह अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. लश्कर-ए-तैयबा के ट्रेंड आतंकियों ने मुंबई के ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल, नरीमन हाउस, छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, लियोपोल्ड कैफे, कामा अस्पताल में कई लोगों को मौत की नींद सुला दिया.
समंदर के रास्ते से मुंबई पहुंचे इन 10 आतंकियों को खदेड़ने के लिए NSG को बुलाया गया था. आतंकियों के सफाए के लिए NSG ने ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो शुरू किया था. ब्रिगेडियर गोविंद सिसोदिया ने इस ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो को लीड किया था और जिंदा पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब से पूछताछ की थी.
हिमाचल से है ब्रिगेडियर गोविंद सिसोदिया
ब्रिगेडियर (रि.) सिसोदिया का जन्म हिमाचल प्रदेश में शिमला जिले चौपाल के भरनो गांव में हुआ था. ब्रिगेडियर सिसोदिया के पिता शेर सिंह राजस्व सेवा अधिकारी थे. चार भाइयों में सबसे छोटे गोविंद सिंह सिसोदिया ने मंडी के गवर्नमेंट विजय हाई स्कूल से 10वीं तक की पढ़ाई की और 1975 में भारतीय सेना ज्वाइन करने से पहले इन्होंने एसडी कॉलेज शिमला से पढ़ाई पूरी की. सिसोदिया की टीम के साहस, बलिदान और रणनीति के कारण ही पूरी मुंबई में शांति बहाल हुई थी. मुंबई हमले की बरसी के मौके पर ईटीवी भारत ने कमांडेंट ब्रिगेडियर गोविंद सिसोदिया से कुछ समय पहले खास बातचीत की थी, जिसमें उन्होंने मुंबई हमले की यादों को सिलसिलेवार तरीके से साझा किया था.
रात को मिला था मुंबई पहुंचने का आदेश
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया था कि, 'उस दिन में दिल्ली में मौजूद था तकरीबन 9 बजे मुंबई में फायरिंग की खबरें टीवी पर आना शुरू हुई. हम भी इन खबरों पर नजर रख रहे थे. पहले इसे गैंगवार समझा गया था, लेकिन जैसे ही पता चला कि फायरिंग कई जगह हो रही है ये हमारे लिए भी कंसर्न हो गया था. जैसे ही परिस्थितियां नियंत्रण से बाहर हुई. उसी रात भारत सरकार ने एनएसजी को बुलाने का फैसला लिया था, क्योंकि NSG गृह मंत्रालय का ब्राह्मास्त्र है. रात को मुंबई के लिए एनएसजी कमांडो भेजने का मैसेज मिला. मानेसर से एनएसजी कमांडो पहुंचे और हम तीन बजे दिल्ली एयरपोर्ट से चले थे और 5 बजे मुंबई पहुंचे थे. मुंबई पहुंचने से पहले हमारे पास कोई पुख्ता जानकारी नहीं थी. तत्कालीन गृह मंत्री भी हमारे साथ दिल्ली से मुंबई गए थे'.
10 में से 9 आतंकियों को किया गया था ढेर
ब्रिगेडियर सिसोदिया ने बताया कि,'मुंबई तक पहुंचने का समय हमारे लिए ब्लैंक पीरियड था. हवाई जहाज में कोई सूचना नहीं आ रही थी. फ्लाइट में कोई संचार साधन नहीं था, लेकिन हमने फ्लाइट में मुंबई पहुंचने से पहले ही रास्ते में प्लानिंग शुरू कर दी थी. फ्लाइट में ही उन्होंने इस ऑपरेशन को ब्लैक टॉरनेडो का नाम दिया था. मुंबई पहुंचने पर उन्हें पुलिस और आर्मी ने ब्रीफिंग दी थी. उन्हें तीन जगहों पर आतंकियों की सूचना दी गई. जम्मू-कश्मीर, श्रीलंका और अन्य जगहों पर आतंकी गतिविधियों से निपटने का अनुभव होने के कारण ये मेरे लिए ये पैनिक वाली स्थिति नहीं थी. अनुभव के आधार पर मैंने अपनी रणनीति बनाई कि जितना समय ज्यादा लगेगा उतना एक जगह पर घिरे आतंकवादियों पर दबाव बनेगा, जिससे वो गलती करेंगे. इसमें नुकसान इसलिए भी नहीं होगा क्योंकि आतंकी एक जगह पर फंस चुके थे. इसके बाद NSG कमांडोज ने आतंकवादियों को निशाना बनाया. हमें अपने लोगों और सिविलियन को भी बचाना था. संपत्ति और लोगों की जान बचाना भी हमारी प्राथमिकता थी.'
दो कमांडो हुए थे शहीद
ब्रिगेडियर सिसोदिया बताते हैं कि, ओबेरॉय और नरीमन का ऑपरेशन जल्द खत्म हो गया था. ताज होटल में 600 से 700 कमरे होने के कारण उन्हें यहां ऑपरेशन खत्म करने में समय लगा था. ताज में मेजर संदीप उन्नीकृष्णन और नरीमन में हवलदार गजेंद्र बिष्ट इस ऑपरेशन में शहीद हुए थे. दोनों ने जख्मी हालत में भी आतंकियों पर गोलियां बरसाई थी. उन्होंने ये भी बताया कि कैसे ताज में आतंकियों को ढेर किया गया था. ब्रिगेडियर सिसोदिया बताते हैं कि,'हमने ताज में ऑपरेशन के दौरान हर कमरे की तलाशी बड़ी संजीदगी से की थी. ताज में आतंकी एक कमरे में छिपे थे. रोशनी कम होने के कारण उन्हें आतंकियों की लोकेशन जानने में परेशानी हो रही थी. उन्होंने हथियार से कमरे के शीशे तोड़े और कमरे में थोड़ी रोशनी हुई. आतंकी लगातार हमारे पर फायर कर रहे थे, लेकिन वो घिर चुके थे. हमने आतंकियों के भागने के रास्ते पर गन तैनात कर दी, जैसे ही वो रास्ते से भागने लगे हमने आतंकियों पर फायर कर दिया. जख्मी हालत में आतंकी नीचे हार्बर में छिप गए. हमने उन पर ग्रेनेड फेंके और फायर किया. आखिर में चारों आतंकी मारे गए. आखिरी में हमने 10 आतंकवादियों में से 9 को मार गिराया गया. एक आतंकी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया.'