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माओवादी संबंध मामला: बॉम्बे हाई कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर साईबाबा समेत 5 अन्य को बरी किया

Maoist links case: दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा को आज बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने बरी कर दिया है. कोर्ट ने इस मामले में 5 अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया है. 90 प्रतिशत शारीरिक रूप से अक्षम जीएन साईबाबा को 2014 में गढ़चिरौली पुलिस ने गिरफ्तार किया था. पढ़ें पूरी खबर...

Mumbai High court Nagpur Bench
माओवादी संबंध मामला

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Mar 5, 2024, 1:25 PM IST

नागपुर : बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने मंगलवार को माओवादी संबंध मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी. एन. साईबाबा को बरी कर दिया. अदालत ने उनकी उम्रकैद की सजा रद्द कर दी. न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति वाल्मीकि एस.ए. मेनेजेस की खंडपीठ ने मामले में पांच अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया. पीठ ने कहा कि वह सभी आरोपियों को बरी कर रही है क्योंकि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ संदेह से परे मामला साबित करने में विफल रहा.

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उसने गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा प्राप्त मंजूरी को भी 'अमान्य' करार दिया. हालांकि, अभियोजन पक्ष ने उच्च न्यायालय से उसके आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध नहीं किया, लेकिन उसने कहा कि वह तुरंत उच्चतम न्यायालय में अपील दायर कर सकता है. उच्च न्यायालय की एक अन्य पीठ ने 14 अक्टूबर, 2022 को इस बात का संज्ञान लेते हुए साईबाबा को बरी कर दिया था कि यूएपीए के तहत वैध मंजूरी के अभाव में मुकदमे की कार्यवाही 'अमान्य' थी.

महाराष्ट्र सरकार ने उसी दिन फैसले को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. शीर्ष अदालत ने शुरू में आदेश पर रोक लगा दी और बाद में अप्रैल 2023 में उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और साईबाबा द्वारा दायर अपील पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया. शारीरिक असमर्थता के कारण व्हीलचेयर पर रहने वाले 54 वर्षीय साईबाबा 2014 में मामले में गिरफ्तारी के बाद से नागपुर केंद्रीय कारागार में बंद हैं.

वर्ष 2017 में, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने कथित माओवादी संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए साईबाबा, एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के एक छात्र सहित पांच अन्य को दोषी ठहराया था. सत्र अदालत ने उन्हें यूएपीए और भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था.

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