भोपाल: मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार शहरों में मौजूद झुग्गी बस्तियों को खत्म करना चाहती है, जिससे यहां रहने वाले लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने के साथ उन्हें बेहतर जीवन स्तर प्रदान किया जा सके. इसके लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गरीबों को सस्ते और निशुल्क पक्के मकान उपलब्ध करा रही है. इसके बावजूद लोगों का मोह झुग्गी बस्तियों से नहीं छूट रहा है. हितग्राही सरकार के दबाव में पक्का मकान तो ले लेते हैं, लेकिन वो झुग्गियों में रहना नहीं छोड़ते.
डेढ़ लाख हितग्राहियों ने सरेंडर किए पीएम आवास
मध्य प्रदेश के नगरीय निकायों में झुग्गी उन्मूलन के लिए गरीबों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के मकान बनाकर दिए जा रहे हैं. लेकिन हितग्राही पक्के मकानों में रहने से परहेज कर रहे हैं. बीते 7 सालों में मध्यप्रदेश के अंदर करीब डेढ़ लाख से अधिक हितग्राही हैं, जिन्होंने पक्के मकान लेने के बाद उसे सरकार को वापस सरेंडर कर दिया है. बता दें कि साल 2015 में मध्यप्रदेश सरकार ने प्रदेश के 413 नगरीय निकायों के लिए 11 लाख 52 हजार पीएम आवास की डिमांड की थी. इनमें से 9 लाख आवासों के लिए प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार को भेजा गया था. उसमें भी करीब डेढ़ लाख यानि करीब 14 प्रतिशत लोग पीएम आवास लेने के बाद उसे वापस कर चुके हैं.
पानी-बिजली का बिल नहीं भरना चाहते हितग्राही
नगरीय निकायों से झुग्गी बस्तियां खत्म नहीं होने के 2 बड़े कारण हैं. इसमें सरकारी अधिकारी हितग्राहियों से बिना अनुमति लिए उन्हें मकान स्वीकृत कर देते हैं. वहीं मकान आवंटन होने के बाद भी झुग्गी बस्ती खाली नहीं कराते. ऐसे में लोग पीएम आवास लेने के बाद भी झुग्गी में रहने चले जाते हैं. दूसरा कारण झुग्गी में रहने वाले लोगों को टैक्स नहीं चुकाना है. दरअसल जब तक वो झुग्गी में रहते हैं, उन्हें पानी और बिजली का बिल नहीं चुकाना पड़ता है. वहीं पीएम आवास में आने के बाद उन्हें पानी-बिजली के साथ सोसायटी के अन्य खर्च भी उठाने पड़ते हैं.
पीएम आवास लेने के बाद वसूल रहे किराया
भोपाल नगर निगम की बात करें तो शहर के विभिन्न क्षेत्रों में अब तक 8500 से अधिक प्रधानमंत्री आवासों का आवंटन किया जा चुका है. लेकिन इसमें 40 प्रतिशत लोग ही रहे रहे हैं. जबकि 60 फीसदी लोग या तो ऐसे थे, जिनके पास पहले से ही मकान था या फिर ऐसे लोग जो झुग्गी से विस्थापित होकर पीएम आवास का आवंटन तो करा लिया, लेकिन अब फिर किसी अन्य स्थान पर झुग्गी बनाकर रह रहे हैं. जो मकान उन्हें आवंटित हुआ है, उसे किराए पर चढ़ाकर हर महीने 3 से 5 हजार रुपये किराया वसूला जा रहा है. इधर शहर में स्मार्ट सिटी समेत अन्य परियोजनाओं के कारण एक दर्जन से अधिक झुग्गी बस्तियों को विस्थापित किया जाना है, लेकिन पर्याप्त मकान नहीं होने से इनको पीएम आवास नहीं मिल रहा.