Amarwara Congress Dheeransha Result: अमरवाड़ा विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस को मिली हार केवल कमलनाथ की खत्म होती सियासत का संदेश नहीं दे रही. ये नतीजे ये भी बता गए हैं कि अमरवाड़ा के मतदाताओं ने धर्म गुरु को राजनीति के फ्रंट से नकार दिया है. क्या धीरन शाह की हार इस बात का संकेत नहीं कि जिसके आगे सिर झुकाया उस धर्म गुरु को सियासत के मैदान में नकार दिया वोटर ने. जिस आंचलकुंड धाम के आगे नतमस्तक होते रहे आदिवासी उसी सियासत में उस धाम का दखल मतदाता को मंजूर ही नहीं. कांग्रेस जिस आस्था के दांव के भरोसे अमरवाड़ा की जीत को अमर करने का बीड़ा उठाए थी आखिर क्या वजह थी कि वो दांव उल्टा पड़ गया. अमरवाड़ा के वोटर्स ने आंचलकुंड धाम को दिल दिया पर वोट नहीं.
सियासत में अस्वीकार हुआ आंचलकुंड धाम
जीत का मार्जिन भले ही छोटा रहा हो बेशक. भले ही धीरन शाह ने कई राउंड में बीजेपी के उम्मीदवार कमलेश शाह को कड़ी टक्कर दी हो और पीछे भी किया हो लेकिन राजनीति में तो जो जीता वही सिकन्दर होता है. अमरवाड़ा सीट पर कांग्रेस को मिली हार केवल कांग्रेस संगठन पर सवाल नहीं है, केवल कमलनाथ की राजनीति पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाती बल्कि ये हार आंचल कुंड की आस्था को लेकर भी बड़ा झटका है. आस्था अब भी होगी वोटर की लेकिन ये नतीजे बता रहे हैं कि अमरवाड़ा की जनता ने आस्था में बहकर फैसला नहीं लिया है.
वरिष्ठ राजनीतिक विशलेषक प्रकाश भटनागरकहते हैं कि "देखिए वोटर अब बेहद जागरुक हो चुका है, वो किस करवट बैठेगा कहना बिल्कुल मुश्किल है. आस्था के मामले तो पलट ही रहे हैं. अयोध्या इसकी मिसाल है. अमरवाड़ा में भी कांग्रेस को लगा था कि आंचलकुंड के मुख्य सेवादार धीरन शाह को कांग्रेस उम्मीदवार बनाकर आस्था के नाम पर बड़ा दांव पार्टी ने खेल दिया है लेकिन नतीजों ने बता दिया कि आस्था का खेल जनता ने मंजूर नहीं किया. मिलावट भी मंजूर नहीं की. नतीजा ये कि धीरन शाह चुनाव हार गए."
तो क्या सेवादार सियासत में मंजूर नहीं हुआ
छिंदवाड़ा में विधानसभा से लेकर लोकसभा सीट तक के फैसले कमलनाथ की मुहर पर ही होते रहे हैं लेकिन ये नतीजे बता रहे हैं कि कमलनाथ की ढलती राजनीति में अब धर्म गुरु भी उनके काम नहीं आए. वरना ये हैरान करने वाली बात है कि जिनके चरणों में आम लोग नहीं बड़े-बड़े राजनेता झुकते हों. जिनकी हर बात की मान्यता हो वोटर के बीच. आखिर क्या वजह रही कि उस धाम की नुमाइंदगी राजनीति में वोटर को पसंद नहीं आई. धर्म गुरु अनिलानंद महाराजकहते हैं कि "कई बार ये होता है कि जनता धर्म गुरु को उसी रुप में देखना चाहती है. इसे इस तरह से मत लीजिए कि उनका सम्मान कम हुआ है लेकिन जनता ने वोट ना देकर ये बता दिया कि आप को हम एक राजनेता के तौर पर नहीं देखना चाहते."