ETV Bharat / bharat

1857 में 27 क्रांतिकारियों की फांसी का गवाह है ये पेड़, आज भी है जिंदा, पास जाने से लगता है डर - NEEMUCH BANYAN TREE HISTORY

देश की आजादी में मध्य प्रदेश के नीमच जिले का बहुत योगदान रहा है. यहां मौजूद एक पेड़ शहीदों का चश्मदीद गवाह है.

NEEMUCH BANYAN TREE HISTORY
1857 में 27 क्रांतिकारियों की फांसी का गवाह है ये नीमच का पेड़ (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 24, 2025, 10:46 PM IST

Updated : Jan 24, 2025, 11:01 PM IST

नीमच (मनीष बागड़ी): 1857 की क्रांति के दौरान नीमच से भाग लेने वाले क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था. यहां सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. जिसमें 27 क्रांतिकारियों को तो एक पेड़ पर फांसी पर लटका दिया गया था. 168 साल बाद वह बरगद का पेड़ आज भी नीमच में जिंदा है. इस पेड़ के पास जाने में आज भी कई लोगों को डर लगता है. इस पेड़ की रक्षा आर्मी, नेवी और एयरफोर्स से रिटायर्ड लोग करते हैं. शहीद दिवस, कारगिल दिवस, 15 अगस्त और 26 जनवरी को यहां कई आयोजन भी होते हैं. इस दौरान यहां वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है.

इतिहासकार ने बताया कि "3 जून 1857 को पहली गोली अंग्रेजों को खिलाफ नीमच में ही चली थी. जिसमें महिला क्रांतिकारी भी शामिल थी. जिसका का गौरव नीमच को ही प्राप्त है.

आजादी का गवाह नीमच का यह पेड़ (ETV Bharat)

शहीदों का चश्मदीद गवाह है पेड़

इतिहासकार व प्रोफेसर डॉ सुरेंद्र सिंह शक्तावत ने ईटीवी मध्य प्रदेश को जानकारी देते हुए बताया कि "अंग्रेजों से लड़ाई में नीमच जिले का विशेष योगदान रहा है. अंग्रेजों ने आजादी के लिए आवाज उठाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर लटकाया था. यहां आज भी वो पेड़ है, इस पेड़ का एक गौरवमय इतिहास है. ये पेड़ 1857 की क्रांति के उन शहीदों का चश्मदीद गवाह है. 1857 की क्रांति में नीमच से भाग लेने वाले क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था. उनकी संख्या सैकड़ों में थी. फांसी की सजा पाने वाले 27 क्रांतिकारी थे, जो रामरतन खत्री, प्‍यारे खान पठान, केसर सिंह बैंस, दिलीप सिंह जैसे कई नाम महत्वपूर्ण हैं."

रिटायर सैनिक करते देखरेख

जहां पर यह पेड़ है, उस स्थान पर 2003 में विधायक दिलीप सिंह परिहार ने आसपास हो रहे अतिक्रमण को हटाकर उस स्थान पर शहीद पार्क बना दिया. इसकी देखरेख के लिए अब पूर्व सैनिक संकल्पित हैं. बता दें बरगद के पेड़ के ऊपर चढ़ा दिए गए अनेक क्रांतिकारियों को गोलियों से भून दिया गया था, तो कुछ को तोप के मुंह से बंद करके उड़ा दिया गया था. उनमें ठाकुर केसरी सिंह, राम रतन खत्री और उसके साथ में ही अन्य अनेक लोग थे. सलीम खान पठान के साथ-साथ में एक रूप सिंह ऐसे कई लोगों ने यहां पर फांसी के फंदे पर चढ़कर अपने प्राणों को न्यौछावर किया है.

27 Revolutionaries Hanged on Tree
दीवारों पर क्रांतिकारियों के बलिदान की कहानी (ETV Bharat)

अली बेग ने क्रांति का आगज किया

नीमच का गौरवशाली इतिहास इस दृष्टि से है कि 3 जून 1857 को मोहम्मद अली बेग ने क्रांति का आगाज किया था. 1857 की क्रांति पूरे मध्य भारत की क्रांति है. पूरे मध्य प्रदेश में 1857 के क्रांति में पहली गोली चलने का गौरव केवल और केवल नीमच को प्राप्त है.

3 जून 1857 से 24 नवंबर तक चली लड़ाई

इतिहासकार सुरेंद्र बताते हैं कि "यहां क्रांति की लड़ाई बहुत लंबी चली. 3 जून 1857 से प्रारंभ हुई और 24 नवंबर तक लड़ाई चलती रही. अलग-अलग स्थान पर लड़ाई होती रही. यहां के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को न केवल हराया, बल्कि उनको यहां से भगाया भी था.

महिला क्रांतिकारी भी हुई शामिल

इतिहासकार शक्तावत बताते हैं कि इस क्रांतिकारी युद्ध में महत्वपूर्ण बात है कि महिला क्रांतिकारी भी थीं. जिन्होंने अपने हाथ में तलवार लेकर युद्ध किया. दिल्ली में नीमच की महिला का विशेष जिक्र होता है. महिदपुर में क्रांति हुई, उसके साथ में ही इंदौर में क्रांति हुई. यहां के क्रांतिकारियों को दबाने के लिए अंग्रेजों को इंग्लैंड से सेना बुलानी पड़ी.

History of Banyan Tree in Freedom Movement
बरगद के पेड़ पर क्रांतिकारियों को दी गई थी फांसी (ETV Bharat)

तो 90 साल पहले हो जाते आजाद

इतिहासकार ने कहा कि दुर्भाग्यवश क्रांतिकारी समय पर संगठित नहीं हो सके. इस कारण से हमारी पराजय हुई, वरना भारत 90 साल पहले ही आजाद हो जाता. आजादी का सूर्योदय हम बहुत पहले देख चुके होते. इसके बाद का अंतराल भी देखा जाए तो 90 साल में यहां क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानियों की लंबी संख्या रही है. सीताराम जाजू, रामेश्वर गर्ग से लेकर के धनीराम सागर और चिरंजीवी क्रांतिकारियों की भूमिका रही.

आपको बता दें नीमच के इतिहास की इस घटना पर जिले के शिक्षाविद डॉ सुरेंद्र सिंह शक्तावत ने एक किताब लिखी है. जिसका विमोचन मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया था. इस किताब में नीमच के इतिहास से जुड़ी और स्वतंत्रता की कई महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख है. इसी किताब में स्वतंत्रता की पहली गोली चलाने का उल्लेख भी किया गया है. साथ ही बताया है कि मूल पेड़ 1977 के करीब बारिश और आंधी की वजह से गिर गया था. इसके बाद उसकी एक शाखा को पास में ही लगा दिया गया. नीमच के इतिहास को दीवारों पर भी सजाया गया है. जिससे कि आने वाली पीढ़ी को भी यहां का इतिहास याद रहे.

नीमच (मनीष बागड़ी): 1857 की क्रांति के दौरान नीमच से भाग लेने वाले क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था. यहां सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. जिसमें 27 क्रांतिकारियों को तो एक पेड़ पर फांसी पर लटका दिया गया था. 168 साल बाद वह बरगद का पेड़ आज भी नीमच में जिंदा है. इस पेड़ के पास जाने में आज भी कई लोगों को डर लगता है. इस पेड़ की रक्षा आर्मी, नेवी और एयरफोर्स से रिटायर्ड लोग करते हैं. शहीद दिवस, कारगिल दिवस, 15 अगस्त और 26 जनवरी को यहां कई आयोजन भी होते हैं. इस दौरान यहां वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है.

इतिहासकार ने बताया कि "3 जून 1857 को पहली गोली अंग्रेजों को खिलाफ नीमच में ही चली थी. जिसमें महिला क्रांतिकारी भी शामिल थी. जिसका का गौरव नीमच को ही प्राप्त है.

आजादी का गवाह नीमच का यह पेड़ (ETV Bharat)

शहीदों का चश्मदीद गवाह है पेड़

इतिहासकार व प्रोफेसर डॉ सुरेंद्र सिंह शक्तावत ने ईटीवी मध्य प्रदेश को जानकारी देते हुए बताया कि "अंग्रेजों से लड़ाई में नीमच जिले का विशेष योगदान रहा है. अंग्रेजों ने आजादी के लिए आवाज उठाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर लटकाया था. यहां आज भी वो पेड़ है, इस पेड़ का एक गौरवमय इतिहास है. ये पेड़ 1857 की क्रांति के उन शहीदों का चश्मदीद गवाह है. 1857 की क्रांति में नीमच से भाग लेने वाले क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था. उनकी संख्या सैकड़ों में थी. फांसी की सजा पाने वाले 27 क्रांतिकारी थे, जो रामरतन खत्री, प्‍यारे खान पठान, केसर सिंह बैंस, दिलीप सिंह जैसे कई नाम महत्वपूर्ण हैं."

रिटायर सैनिक करते देखरेख

जहां पर यह पेड़ है, उस स्थान पर 2003 में विधायक दिलीप सिंह परिहार ने आसपास हो रहे अतिक्रमण को हटाकर उस स्थान पर शहीद पार्क बना दिया. इसकी देखरेख के लिए अब पूर्व सैनिक संकल्पित हैं. बता दें बरगद के पेड़ के ऊपर चढ़ा दिए गए अनेक क्रांतिकारियों को गोलियों से भून दिया गया था, तो कुछ को तोप के मुंह से बंद करके उड़ा दिया गया था. उनमें ठाकुर केसरी सिंह, राम रतन खत्री और उसके साथ में ही अन्य अनेक लोग थे. सलीम खान पठान के साथ-साथ में एक रूप सिंह ऐसे कई लोगों ने यहां पर फांसी के फंदे पर चढ़कर अपने प्राणों को न्यौछावर किया है.

27 Revolutionaries Hanged on Tree
दीवारों पर क्रांतिकारियों के बलिदान की कहानी (ETV Bharat)

अली बेग ने क्रांति का आगज किया

नीमच का गौरवशाली इतिहास इस दृष्टि से है कि 3 जून 1857 को मोहम्मद अली बेग ने क्रांति का आगाज किया था. 1857 की क्रांति पूरे मध्य भारत की क्रांति है. पूरे मध्य प्रदेश में 1857 के क्रांति में पहली गोली चलने का गौरव केवल और केवल नीमच को प्राप्त है.

3 जून 1857 से 24 नवंबर तक चली लड़ाई

इतिहासकार सुरेंद्र बताते हैं कि "यहां क्रांति की लड़ाई बहुत लंबी चली. 3 जून 1857 से प्रारंभ हुई और 24 नवंबर तक लड़ाई चलती रही. अलग-अलग स्थान पर लड़ाई होती रही. यहां के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को न केवल हराया, बल्कि उनको यहां से भगाया भी था.

महिला क्रांतिकारी भी हुई शामिल

इतिहासकार शक्तावत बताते हैं कि इस क्रांतिकारी युद्ध में महत्वपूर्ण बात है कि महिला क्रांतिकारी भी थीं. जिन्होंने अपने हाथ में तलवार लेकर युद्ध किया. दिल्ली में नीमच की महिला का विशेष जिक्र होता है. महिदपुर में क्रांति हुई, उसके साथ में ही इंदौर में क्रांति हुई. यहां के क्रांतिकारियों को दबाने के लिए अंग्रेजों को इंग्लैंड से सेना बुलानी पड़ी.

History of Banyan Tree in Freedom Movement
बरगद के पेड़ पर क्रांतिकारियों को दी गई थी फांसी (ETV Bharat)

तो 90 साल पहले हो जाते आजाद

इतिहासकार ने कहा कि दुर्भाग्यवश क्रांतिकारी समय पर संगठित नहीं हो सके. इस कारण से हमारी पराजय हुई, वरना भारत 90 साल पहले ही आजाद हो जाता. आजादी का सूर्योदय हम बहुत पहले देख चुके होते. इसके बाद का अंतराल भी देखा जाए तो 90 साल में यहां क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानियों की लंबी संख्या रही है. सीताराम जाजू, रामेश्वर गर्ग से लेकर के धनीराम सागर और चिरंजीवी क्रांतिकारियों की भूमिका रही.

आपको बता दें नीमच के इतिहास की इस घटना पर जिले के शिक्षाविद डॉ सुरेंद्र सिंह शक्तावत ने एक किताब लिखी है. जिसका विमोचन मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया था. इस किताब में नीमच के इतिहास से जुड़ी और स्वतंत्रता की कई महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख है. इसी किताब में स्वतंत्रता की पहली गोली चलाने का उल्लेख भी किया गया है. साथ ही बताया है कि मूल पेड़ 1977 के करीब बारिश और आंधी की वजह से गिर गया था. इसके बाद उसकी एक शाखा को पास में ही लगा दिया गया. नीमच के इतिहास को दीवारों पर भी सजाया गया है. जिससे कि आने वाली पीढ़ी को भी यहां का इतिहास याद रहे.

Last Updated : Jan 24, 2025, 11:01 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.