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5वीं अनुसूची से ही बच सकते है 'पहाड़'! यूपी ने छीन लिए थे जल, जंगल और जमीन से जुड़े कई अधिकार - 5TH SCHEDULE UTTARAKHAND

Uttarakhand 5th Schedule Demand, Uttarakhand land laws, Dehradun Latest News, Uttarakhand Latest News: अपनी संस्कृति, विरासत, जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए उत्तराखंड में एक बार फिर से आंदोलन की सुगबुगाहट होनी शुरू हो गई है. एक तरफ जहां उत्तराखंड में सख्त भू-कानून की मांग की जा रही है तो वहीं इस राज्य को संविधान में निहित 5वीं अनुसूची में शामिल करने का मुद्दा भी उठने लगा है. आखिर क्या है भारत के संविधान में निहित 5वीं अनुसूची और उत्तराखंड के इससे कैसे लाभ मिलेगा? ब्रिटिश सरकार ने भी 1931 में पहाड़ को ये स्टेट्स दिया था, लेकिन यूपी ने छीन लिया था. इसी के बारे में आज ईटीवी भारत आपको बताएगा.

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उत्तराखंड को 5वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग. (ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 30, 2024, 9:51 PM IST

Updated : Sep 30, 2024, 10:46 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में सख्त भू-कानून और भारत के संविधान में निहित 5वीं अनुसूची में शामिल करने मांग जोरशोर से उठने लगी है. पहाड़ में इन दोनों मांगों को लेकर अब लोग सड़कों पर उतरने लगे हैं. अब सवाल यही है कि उत्तराखंड को भारत के संविधान निहित 5वीं अनुसूची में शामिल होकर क्या लाभ मिलेगा? इसी पर ईटीवी भारत ने कुछ एक्सपर्ट से बात की और इसके बारे में विस्तार से जाना.

ब्रिटिश सरकार ने भी दिया पहाड़ी इलाकों को दिया था विशेष दर्जा: यूपी के पहाड़ी जिलों को ब्रिटिश काल से ही ट्राइब स्टेट्स मिला हुआ था, लेकिन आजादी के बाद यूपी सरकार ने पहाड़ी जिलों से ट्राइब स्टेट्स छीन लिया था, जो उत्तराखंड को अलग राज्य बनने के बाद भी नहीं मिला है. साल 1931 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भी तब के यूपी के पहाड़ी जिलों (आज के उत्तराखंड) में Scheduled Districts Act 1874 (अनुसूचित जिला अधिनियम 1874) यानी ट्राइब स्टेट्स लागू किया था. कुल मिलाकर उत्तराखंड को ब्रिटिश सरकार में वही अधिकार मिले थे, जो आज के संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची में है. ब्रिटिश काल में पहाड़ में दो जिले थे, एक अल्मोड़ा और दूसरा ब्रिटिश गढ़वाल. वहीं टिहरी अलग से रियासत थी.

5वीं अनुसूची से ही बच सकते हैं 'पहाड़'! (ETV Bharat)

यूपी सरकार ने खत्म कर दिया था पहाड़ का ट्राइब स्टेट्स: संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची में राज्यवासियों को जल, जंगल और जमीन के लिए कुछ अतिरिक्त अधिकार मिले हैं. लेकिन भारत के आजाद होने के बाद साल 1971 में तत्कालीन यूपी सरकार ने अपने पहाड़ी जिलों यानी आज के उत्तराखंड का वो स्टेट्स खत्म कर दिया था. यानी उत्तराखंड को संविधान की 5वीं अनुसूची से बाहर कर दिया गया था, जो अधिकारी कभी अंग्रेजी हुकुमत ने भी पहाड़ के लोगों को दिए थे. हालांकि, उत्तराखंड के हिमाचल से लगे जौनसार बाबर क्षेत्र में आज भी इस तरह के कुछ कानून लागू हैं, जिस कारण बाहरी लोगों को वहां जमीन खरीदना मुश्किल है. वहीं नौकरी में भी उन्हें चार प्रतिशत का आरक्षण मिलता है. जौनसार बाबर ट्राइब क्षेत्र है.

यूपी सरकार ने खत्म कर दिया था पहाड़ के लोगों का आरक्षण: इतना ही नहीं, तत्कालीन यूपी सरकार ने 1995 में पहाड़ी जिले (गढ़वाल और कुमाऊं) के लोगों को नौकरी में मिलने वाले 6 प्रतिशत आरक्षण को भी खत्म कर दिया था. तभी से पहाड़ में यूपी से अलग उत्तराखंड (उत्तरांचल) राज्य की मांग उठने लगी थी. धीरे-धीरे अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन तेज होने लगा था. आखिर में सरकार को जनता के सामने झुकना पड़ा और साल 2000 में यूपी के अलग होकर उत्तराखंड गठन का नाम (उत्तरांचल) का जन्म हुआ, लेकिन अभीतक भी उत्तराखंड को संविधान की 5वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग पूरी नहीं हुई. मोटे तौर कहें तो उत्तराखंड को छोड़कर संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची सभी पहाड़ी राज्यों में लागू है. धारा 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर संविधान की 5वीं और 6वीं सूची से बाहर था.

संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची में शामिल होने के फायदे: उत्तराखंड के 5वीं अनुसूची में शामिल होने से न सिर्फ यहां जल, जगल और जमीन बचेगी, बल्कि यहां के युवाओं को केंद्रीय शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में 7.5 प्रतिशत आरक्षण का लाभ भी मिलेगा. जानकारों की मानें तो यदि उत्तराखंड को भारत के संविधान में निहित 5वीं अनुसूची में शामिल किया जाता तो ये पहाड़ के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करेगा. आज जिस तरह के उत्तराखंड के संसाधनों का दोहन हो रहा है, उस पर लगाम लग सकेगी. इस बारे में उत्तराखंड हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट सीके शर्मा विस्तार से बताया.

उत्तराखंड में लंबे समय से सख्त भू-कानून लागू करने की मांग की जा रही है. (ETV Bharat)

एक्सपर्ट की राय: सीनियर एडवोकेट सीके शर्मा के मुताबिक, भारत के संविधान का अनुच्छेद 244 देश के राष्ट्रपति को शक्ति देता है कि वो भौगोलिक या फिर अन्य परिस्थितियों में किसी भी राज्य को ट्राइबल (जनजातिय) स्टेट घोषित कर सकते हैं. इसका मुख्य फायदा उस राज्य के लोगों को ही होता है, ताकि वहां से लोग अपनी संस्कृति और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा कर सकें. बाहरी लोग उस राज्य में जमीन नहीं खरीद सकते हैं. नियमों के तहत ही कोई बाहरी व्यक्ति प्रदेश में जमीन खरीद सकता है.

क्या ट्राइबल स्टेट बनने से राज्य को कोई नुकसान भी हो सकता है? इस सवाल पर सीनियर एडवोकेट सीके शर्मा का कहना है कि उत्तराखंड के 5वीं अनुसूची में शामिल होने से प्रदेश को नुकसान नहीं, बल्कि फायदा होगा. क्योंकि यहां पहाड़ के लोगों के अधिकार सुरक्षित होंगे.

वहीं, उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार भगीरथ शर्मा के अनुसार, उत्तराखंड में भू कानून और राज्य को 5वीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग लंबे समय से चलती आ रही है. इसकी शुरुआत नारायण दत्त तिवारी सरकार में ही हो गई थी. तब लोगों को यह लगा था कि उत्तराखंड को एक अलग राज्य का दर्जा मिलने के साथ ही 5वीं अनुसूची में भी शामिल किया जाएगा. 2003 में नारायण दत्त तिवारी सरकार ने यूपी जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा 154 में संशोधन किया.

तिवारी सरकार ने पहली बार किया था यूपी से चल आ रहे कानूनों में बदलाव:संशोधित कानून के अनुसार बाहरी व्यक्ति आवासीय उपयोग के लिए उत्तराखंड में 500 वर्ग मीटर से ज्यादा जमीन नहीं ले सकता था. इसके साथ ही अगर कोई बाहरी व्यक्ति कृषि भूमि खरीदता है तो उसमें भी कई तरह के प्रावधान रखे गए थे. कमर्शियल यूज के नाम पर लैंड लेने वाले व्यक्ति को दो साल के अंदर अपना काम शुरू करना होगा. यदि लैंड दो सालों तक खाली पड़ी रही थी तो उसे सरकार को जवाब देने होगा.

2007 में खंडूरी में फिर से भू-कानून में संशोधन किया: साल 2007 में भाजपा की सरकार बनी और भुवन चंद्र खंडूड़ी मुख्यमंत्री बने. तब उन्होंने भी भू कानून को लेकर कई तरह के नियम और कायदे कानून बनाए थे. तत्कालीन सीएम खंडूड़ी ने भू-कानून में संशोधन करके उसे और भी कड़ा बना दिया था. यानी आवासीय भूमि अगर कोई 500 वर्ग मीटर खरीदना चाहता था, तो उसे घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया था. इसी तरह से और भी बाहरी व्यक्तियों के लिए कानून में संशोधन किए गए थे.

हालांकि साल 2017 में बनी त्रिवेंद्र सरकार ने इसमें कई तरह के परिवर्तन किए गए, लेकिन अब मौजूदा सरकार इस दिशा में अलग-अलग प्रयासों से राज्य की जनता को आकर्षित करने की कोशिश में लगी हुई है. साल 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भू कानून की मांग को देखते हुए एक समिति का गठन किया था और बीते दिनों जमीन की खरीद फरोख्त को लेकर भी धामी सरकार ने एक समिति का गठन किया है, जो बाहरी व्यक्तियों द्वारा खरीदी गई जमीन के बारे में एक रिपोर्ट राज्य सरकार को देगी.

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Last Updated : Sep 30, 2024, 10:46 PM IST

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