देहरादून (नवीन उनियाल): उत्तराखंड में पौधारोपण के जरिए हर साल लाखों पौधों का रोपण किया जाता है, और इसमें लाखों रुपए खर्च भी होते हैं. लेकिन हैरानी बात ये है कि इतनी बड़ी संख्या में होने वाले पौधारोपण में अधिकतर पौधे जीवित ही नहीं बच पाते. वन विभाग द्वारा पौधारोपण को लेकर जो सर्वाइवल रेट रहता है वो उम्मीद से बेहद कम है. हैरानी की बात ये है कि वन विभाग भी पौधारोपण की असफलता को मानता है, बावजूद इसके इसमें कोई सुधार नहीं कर पाता. ताजा कैग (नियंत्रक महालेखा परीक्षक) रिपोर्ट में ये बात सामने आई है.
पौधों का सर्वाइवल रेट बेहद कम: उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सदन में पेश कैग (CAG- Comptroller and Auditor General of India) की रिपोर्ट में ये बात उजागर हुई है कि क्षतिपूर्ति वनीकरण के दौरान लाखों पौधे तो लगाए जाते हैं, लेकिन इसमें जीवित बच पाने वाले पौधों की संख्या बेहद कम होती है. बता दें कि, क्षतिपूर्ति वनीकरण के तहत वनों को विभिन्न विकास कार्यों के कारण जो क्षति होती है उसके एवज में किसी क्षेत्र का चिन्हीकरण किया जाता है जहां पर पेड़ों को लगाए जाने की संभावना दिखती है. इसके साथ ही जिन क्षेत्रों में पेड़ों को नुकसान होता है उसके आसपास के इलाके में भी भूमि का निर्धारण करते हुए वृक्ष लगाए जाते हैं. कुल मिलाकर वनों की क्षति होने पर उसके कंपनसेशन के रूप में लगाए जाने वाले वृक्षों को क्षतिपूर्ति वनीकरण कहते हैं.
CAG रिपोर्ट के अनुसार-
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अधिकारी द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रमाण पत्र गलत: रिपोर्ट में कहा गया कि क्षतिपूर्ति वनीकरण के लिए बेहतर भूमि को चिन्हित करना प्रभागीय वनाधिकारी की जिम्मेदारी होती है. जब भूमि चयन को लेकर जांच की गई तो पता चला कि 5 वन प्रभागों में 1204.04 हेक्टेयर भूमि इस काम के लिए उपयुक्त नहीं थी. इससे साफ है कि अधिकारी द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रमाण पत्र गलत थे और भूमि की वास्तविक स्थिति को जाने बिना ही इन्हें जारी किया गया था.
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इसके बावजूद भी डीएफओ के खिलाफ कोई कार्रवाई शुरू नहीं की गई. बड़ी बात यह है कि इस मामले में वन विभाग के अधिकारियों ने जवाब देते हुए कहा कि वृक्षारोपण खड़ी ढलान, घने जंगलों में हुआ था इसलिए पौधारोपण के लिए यह भूमि उपयुक्त नहीं थी.
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कैग रिपोर्ट में हुआ खुलासा: वृक्षारोपण को लेकर सर्वाइवल रेट कम होने की भी कैग रिपोर्ट में वजह भी बताई गई है. इसमें बताया गया है कि-
- वृक्षारोपण से पहले मिट्टी की गुणवत्ता को लेकर होने वाले कार्यों को ही विभाग ने संपादित नहीं किया.
- नैनीताल संभाग का जिक्र करते हुए बताया गया कि साल 2019 से 21 के दौरान सड़क किनारे वृक्षारोपण के लिए एडवांस सॉइल वर्क 78.80 हेक्टेयर भूमि पर किया गया, लेकिन अगले साल इसमें कोई वृक्षारोपण हुआ ही नहीं.
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सिर्फ कागजों में हुआ वनीकरण: खास बात यह है कि कैग की रिपोर्ट में पौधारोपण सर्वाइवल को लेकर यह रिकॉर्ड वन अनुसंधान संस्थान की रिपोर्ट से लिया गया है. जिसे साल 2021 में FRI ने वन विभाग को सौंपा था. वनीकरण को लेकर जो रिपोर्ट सामने आई है उसका डाटा विभिन्न प्रभावों में किए गए वनीकरण से लिया गया है. इसमें रुद्रप्रयाग, नैनीताल और पिथौरागढ़ प्रभाग में हुआ वनीकरण शामिल है.
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कैग रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि निरीक्षण के दौरान 5 वन प्रभागों में अधिकारियों ने 43.95 हेक्टेयर वनीकरण होना दिखाया, जबकि धरातल पर वनीकरण सिर्फ 23.82 हेक्टेयर भूमि पर ही पाया गया. जबकि बाकी 20.13 हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण सिर्फ कागजों में ही हुआ था. इसके लिए विभाग ने 18.77 लाख रुपए खर्च किए थे. जिन क्षेत्रों में यह गड़बड़ी पाई गई उनमें नैनीताल, अल्मोड़ा, मसूरी, रुद्रप्रयाग और चकराता वन प्रभाग शामिल था.
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जानिए वन मंत्री सुबोध उनियाल ने क्या कहा: उत्तराखंड सरकार में वन मंत्री सुबोध उनियाल से ईटीवी भारत ने कैग रिपोर्ट और इस पूरे मामले पर बातचीत की.
विभाग के अधिकारी पौधारोपण का सर्वाइवल रेट 30 से 35% ही बताते हैं. इसलिए वन विभाग के अधिकारियों को पौधारोपण के दौरान इसकी लाइव लोकेशन को डिजिटल रूप में रखने के लिए कहा है. इसके जरिए वन विभाग के भीतर फेक प्लांटेशन जैसी स्थिति से बचा जा सकेगा. इसके अलावा अधिकारियों को पौधारोपण का सर्वाइवल रेट बढ़ाने के भी सख्त निर्देश जारी किए हैं.
- सुबोध उनियाल, वन मंत्री, उत्तराखंड -
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