बगहाःऐसा पहली बार नहीं है कि बांग्लादेश राजनीतिक अस्थिरता और हिंसाकी चपेट में हैं. 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद तो कई बार ऐसे हालात पैदा हुए ही हैं, बांग्लादेश बनने से पहले भी तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में कई बार ऐसे हालात पैदा हुए जिनके कारण बड़ी संख्या में हिंदू परिवारों को भारत में शरण लेनी पड़ी. पश्चिमी चंपारण जिले में भी बड़ी संख्या में बांग्लादेशी शरणार्थियों का परिवार रहता है और बांग्लादेश के ताजा हालात को लेकर खासी चिंता में है.
3000 से ज्यादा बांग्लादेशी शरणार्थी परिवारःपश्चिमी चंपारण जिले के विभिन्न गांवों में 3000 से ज्यादा बांग्लादेशी शरणार्थी परिवार बसे हुए हैं. तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में 1956 और 1965 में हुई हिंसा के दौरान शरणार्थी शिविरों में शरण ली और फिर वहां से विस्थापित होने के बाद सभी को जिले के 39 गांवों में बसाया गया.
खेतीबाड़ी और बीड़ी बनाने के कारोबार से गुजाराःपश्चिमी चंपारण के चौतरवा, परसौनी, सेमरा, भेड़िहारी, तिनफेडिया, दुधौरा सहित दूसरे गांवों में बसे इन बांग्लादेशी शरणार्थियों का परिवार खेतीबाड़ी और बीड़ी बनाने के कारोबार से जुड़ा है और इतने सालों बाद भी कई मुश्किलों का सामना कर रहा है. हालांकि इनका कहना है कि मोदी सरकार के आने के बाद इनकी सुविधाओं में बढ़ोतरी हुई है लेकिन अभी भी जाति प्रमाण पत्र नहीं बनाया जाता है और न ही जमीन का रैयतीकरण किया जाता है.
चौतरवा के बंगाली कॉलोनी में 300 परिवारों का बसेराःबगहा इलाके के चौतरवा गांव में करीब 300 बांग्लादेशी परिवारों के लोग रहते हैं जो कई मुश्किलों के बाद भी अपनी सांस्कृतिक पहचान बरकरार रखी है. शुद्ध रूप से सनातनी ये परिवार धार्मिक आयोजनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. खासकर दुर्गा पूजा और काली पूजा के दौरान तो इनका उत्साह देखते ही बनता है.
बांग्लादेश के हालात पर चिंतितः चौतरवा में रहनेवाले बांग्लादेशी शरणार्थी बांग्लादेश के ताजा हालात को लेकर काफी चिंतित हैं. उन्होंने बांग्लादेश में चल रहे हिंसा के दौर को कट्टरपंथियों की साजिश का नतीजा बताया है. उन्हें इस बात का बेहद अफसोस है कि जिस परिवार ने बांग्लादेश का निर्माण किया और उसे प्रगति की राह दिखाई, उन्हें हिंसा का शिकार होना पड़ा.
"बहुत दुःखद घटना है. जिसने बांग्लादेश का निर्माण किया, उन्ही बंगबंधु की मूर्ति को तोड़ा जा रहा है. जिसने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया, उस शेख हसीना को बांग्लादेश से पलायन करना पड़ा.जान बचाकर भागना पड़ा. जान बचाकर नहीं भागतीं तो इतिहास है कि उनके परिवार के 18 लोगों को वहां की मिलिट्री ने एक रात में मौत के घाट उतार दिया था. उन्हें हिंदुस्तान में शरण मिली है. हमें उम्मीद है कि भारत सरकार इस हालात में उचित निर्णय लेगी."-श्रीकांत हलदार, बांग्लादेशी शरणार्थी