भुज :प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि देश की न्यायिक प्रणाली में 'स्थगन का चलन' वादियों की पीड़ा को बढ़ाता है, और अदालतों को मामलों पर फैसले सुनाने के लिए नागरिकों के मरने का इंतजार नहीं करना चाहिए. उन्होंने यह भी चिंता जताई कि 'जमानत नियम है, जेल अपवाद है' का दीर्घकालिक सिद्धांत कमजोर हो रहा है, क्योंकि जिला अदालतें व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों से निपटने में झिझक रही हैं. गुजरात के कच्छ जिले के धोर्डो में अखिल भारतीय जिला न्यायाधीशों के सम्मेलन में अपने उद्घाटन भाषण में, प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि लंबित मामले न्याय के कुशल प्रशासन के लिए 'एक गंभीर चुनौती' पेश करते हैं.
उन्होंने कहा कि एक बड़ा मुद्दा स्थगन का चलन है. कार्यवाही में देरी के लिए बार-बार अनुरोध करने के इस चलन का हमारी कानून प्रणाली की दक्षता और अखंडता पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि स्थगन के चलन के बारे में आम लोगों का मानना है कि यह न्यायिक प्रणाली का हिस्सा बन गया है. यह वादियों की पीड़ा को बढ़ा सकती है और मामलों के लंबित रहने के चक्र को कायम रख सकती है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एक किसान के कानूनी उत्तराधिकारियों के कानूनी कार्यवाही में उलझने के उदाहरण का हवाला देते हुए कहा कि हमें अपने नागरिकों के मामले के फैसले के लिए उनके मरने का इंतजार नहीं करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि मामलों के लंबित पड़ने की समस्या को दूर करने के लिए प्रणालीगत सुधार, प्रक्रियात्मक सुधार और प्रौद्योगिकी के उपयोग को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अदालती प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने, मामले के निस्तारण में तेजी लाने और वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र को बढ़ावा देने में जिला न्यायाधीश की भूमिका महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि ऐसी आशंका बढ़ रही है कि जिला अदालतें व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित मामलों पर विचार करने को अनिच्छुक होती जा रही हैं.