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Chaitra Navratri 2023: मां सुरकंडा देवी मंदिर में जुटी श्रद्धालुओं की भीड़, यहीं गिरा था माता सती का सिर - सुरकंडा देवी मंदिर में जुटी श्रद्धालुओं की भीड़

टिहरी के कद्दूखाल स्थित मां सुरकंडा देवी की महिमा दूर-दूर तक है. माना जाता है कि यहां माता सती का सिर का भाग गिरा था. जिसकी वजह से यह स्थान सिद्धपीठ कहलाया. ये भी माना जाता है, यहां कोई भी श्रद्धालु आता है, मां उसकी झोली भर देती हैं. जानिए कैसे पहुंचे सुरकंडा देवी मंदिर और  क्या है महिमा...

Maa Surkanda Devi temple
मां सुरकंडा देवी मंदिर में जुटी श्रद्धालुओं की भीड़
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Published : Mar 30, 2023, 4:26 PM IST

Updated : Mar 30, 2023, 6:41 PM IST

मां सुरकंडा देवी मंदिर में जुटी श्रद्धालुओं की भीड़

टिहरीः चैत्र नवरात्रि पर सिद्धपीठ मां सुरकंडा देवी के मंदिर में भारी भीड़ उमड़ी रही. मां सुरकंडा के दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु टिहरी के कद्दूखाल पहुंचे. माना जाता है कि मां सुरकंडा देवी के दर्शन करने से भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती है. यही वजह है कि खासकर नवरात्रि के मौके पर श्रद्धालुओं का हुजूम सुरकंडा देवी मंदिर में उमड़ता है.

बता दें कि उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है. यहां चारधाम, पंच बद्री, पंच केदार, पंच प्रयाग के अलावा कई सिद्धपीठ भी मौजूद हैं. इन्ही में से एक सिद्धपीठ सुरकंडा देवी मंदिर भी है. स्कंद पुराण के केदारखंड में भी सुरकंडा देवी सिद्धपीठ का वर्णन मिलता है. इस सिद्धपीठ की महिमा दूर-दूर तक है. माना जाता है कि जो भी भक्त माता के दरबार में आता है, वो कभी निराश नहीं लौटता है.

सिद्धपीठ सुरकंडा देवी मंदिर की महिमाः पौराणिक कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था. जिसमें उन्होंने अपनी बेटी सती के पति शिव को छोड़कर सभी को बुलाया था. ऐसे में यज्ञ में अपने पति यानी भगवान शिव को न बुलाने पर माता सती ने इसे अपमान समझा और यज्ञशाला में खुद की आहुति दे दी. जिसके बाद भगवान शिव क्रोधित हो गए और तांडव मचाना शुरू कर दिया. साथ ही भगवान शिव माता सती की देह को लेकर हिमालय की ओर बढ़ने लगे.

वहीं, भगवान शिव के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने मां सती के देह को सुदर्शन चक्र से काट दिए. ऐसे में जहां-जहां मां सती के अंग गिरे, वो सभी स्थान सिद्धपीठ कहलाए. माना जाता है कि सुरकंडा मंदिर में भी माता सती का सिर का भाग गिरा था. जिसके बाद इसे सुरकंडा के नाम से जाने जाना लगा. इस सिद्धपीठ को लेकर लोगों की बड़ी आस्था है. टिहरी के लोग मां सुरकंडा को अपना कुलदेवी मानते हैं.
ये भी पढ़ेंः 22 अप्रैल को खुलेंगे गंगोत्री धाम के कपाट, ये रहेगा शुभ मुहूर्त और द्वार खुलने का समय

कहा जाता है कि जब भी किसी बच्चे पर बाहरी छाया भूत प्रेत आदि का प्रकोप लगता है तो यहां आकर उसे मुक्ति मिलती है. इसके अलावा यहां के हवन कुंड की राख का टीका लगाने मात्र से भी कष्ट दूर हो जाते हैं. जिनकी शादी में देरी हो रही है, वो लोग मंदिर प्रांगण में उगे रांसुली के पेड़ पर माता की चुन्नी बांधते हैं. माना जाता है कि इससे उस शख्स की शादी होने के योग बढ़ जाते है. यहां श्रद्धालु मा सुरकंडा देवी प्रसन्न करने के लिए श्रृंगार का सामान चुन्नी, श्रीफल, पंचमेवा आदि चढ़ाते हैं.

कैसे पहुंचे सुरकंडा देवी मंदिरः सुरकंडा मंदिर के दर्शन के लिए सबसे पहले ऋषिकेश से चंबा पहुंचना होता है, फिर चंबा से कद्दूखाल तक बस या छोटी गाड़ियों से यहां पहुंच सकते हैं. दूसरा रास्ता देहरादून से मसूरी, धनौल्टी होते हुए कद्दूखाल का है. कद्दूखाल से सुरकंडा देवी मंदिर तक जाने के लिए अब रोपवे की सुविधा भी है. हालांकि, जिनकी आस्था माता के प्रति ज्यादा होती है, वो पैदल ही मां सुरकंडा के दरबार पहुंचते हैं.

मां सुरकंडा देवी मंदिर में जुटी श्रद्धालुओं की भीड़

टिहरीः चैत्र नवरात्रि पर सिद्धपीठ मां सुरकंडा देवी के मंदिर में भारी भीड़ उमड़ी रही. मां सुरकंडा के दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु टिहरी के कद्दूखाल पहुंचे. माना जाता है कि मां सुरकंडा देवी के दर्शन करने से भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती है. यही वजह है कि खासकर नवरात्रि के मौके पर श्रद्धालुओं का हुजूम सुरकंडा देवी मंदिर में उमड़ता है.

बता दें कि उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है. यहां चारधाम, पंच बद्री, पंच केदार, पंच प्रयाग के अलावा कई सिद्धपीठ भी मौजूद हैं. इन्ही में से एक सिद्धपीठ सुरकंडा देवी मंदिर भी है. स्कंद पुराण के केदारखंड में भी सुरकंडा देवी सिद्धपीठ का वर्णन मिलता है. इस सिद्धपीठ की महिमा दूर-दूर तक है. माना जाता है कि जो भी भक्त माता के दरबार में आता है, वो कभी निराश नहीं लौटता है.

सिद्धपीठ सुरकंडा देवी मंदिर की महिमाः पौराणिक कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था. जिसमें उन्होंने अपनी बेटी सती के पति शिव को छोड़कर सभी को बुलाया था. ऐसे में यज्ञ में अपने पति यानी भगवान शिव को न बुलाने पर माता सती ने इसे अपमान समझा और यज्ञशाला में खुद की आहुति दे दी. जिसके बाद भगवान शिव क्रोधित हो गए और तांडव मचाना शुरू कर दिया. साथ ही भगवान शिव माता सती की देह को लेकर हिमालय की ओर बढ़ने लगे.

वहीं, भगवान शिव के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने मां सती के देह को सुदर्शन चक्र से काट दिए. ऐसे में जहां-जहां मां सती के अंग गिरे, वो सभी स्थान सिद्धपीठ कहलाए. माना जाता है कि सुरकंडा मंदिर में भी माता सती का सिर का भाग गिरा था. जिसके बाद इसे सुरकंडा के नाम से जाने जाना लगा. इस सिद्धपीठ को लेकर लोगों की बड़ी आस्था है. टिहरी के लोग मां सुरकंडा को अपना कुलदेवी मानते हैं.
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कहा जाता है कि जब भी किसी बच्चे पर बाहरी छाया भूत प्रेत आदि का प्रकोप लगता है तो यहां आकर उसे मुक्ति मिलती है. इसके अलावा यहां के हवन कुंड की राख का टीका लगाने मात्र से भी कष्ट दूर हो जाते हैं. जिनकी शादी में देरी हो रही है, वो लोग मंदिर प्रांगण में उगे रांसुली के पेड़ पर माता की चुन्नी बांधते हैं. माना जाता है कि इससे उस शख्स की शादी होने के योग बढ़ जाते है. यहां श्रद्धालु मा सुरकंडा देवी प्रसन्न करने के लिए श्रृंगार का सामान चुन्नी, श्रीफल, पंचमेवा आदि चढ़ाते हैं.

कैसे पहुंचे सुरकंडा देवी मंदिरः सुरकंडा मंदिर के दर्शन के लिए सबसे पहले ऋषिकेश से चंबा पहुंचना होता है, फिर चंबा से कद्दूखाल तक बस या छोटी गाड़ियों से यहां पहुंच सकते हैं. दूसरा रास्ता देहरादून से मसूरी, धनौल्टी होते हुए कद्दूखाल का है. कद्दूखाल से सुरकंडा देवी मंदिर तक जाने के लिए अब रोपवे की सुविधा भी है. हालांकि, जिनकी आस्था माता के प्रति ज्यादा होती है, वो पैदल ही मां सुरकंडा के दरबार पहुंचते हैं.

Last Updated : Mar 30, 2023, 6:41 PM IST
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